Post of 27 July 2021
“अमल से ज़िन्दगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है”
इक़बाल का यह शेर उन की नज़म “तुलूए इस्लाम” का एक बंद है। मोहम्मद बदिऊज्जमॉ साहेब ने अपनी किताब “इक़बाल के कलाम मे क़ोरानी तलमिहात और क़ोरानी आयात के मनज़ूम तरजूमे” मे इस का मानी लिखा है।
#ज़मा साहेब लिखते हैं, “इकबाल ने इस शेर के पहले मिसरा मे “अमल” के नोकते को ज़हन नशी कराया है क्योकि इंसान न तो नूरी यानी जन्नती पैदा होता है और न नारी यानि जहन्नमी। वह इन दोनो का हक़दार अपने दिनवी ज़िन्दगी के अमल से होता है। पहले मिसरा यानि अमल की हैसियत पर क़ोरान मे बहुत आयात हैं, जैसे सूरह नेसा 4 की आयत, 123-126, सूरह मरियम की आयत 60, सूरह रोम की 30 की आयत …. और सूरह अल असर मे साफ फ़रमा दिया गया है”:
“वह इंसान हरगिज़ खसारे मे न रहे गा जो ईमान लाया, नेक अमाल किये, एक दूसरे को हक़ की नसीहत और सबर की तलक़ीन की”
#दूसरा मिसरा सूरह तग़ाबिन कि आयत 2 की हुबहू तरजूमानी है:
“वही है जिस ने तुम को पैदा किया, फिर तुम मे से कोई काफ़िर है, कोई मोमीन, और अल्लाह सब कुछ देख रहा है जो तुम करते हो”
#नोट: कल इक़बाल के इस शेर से Jamshed Jamshed साहेब ने बाईडेन पर पोस्ट की शुरूआत की थी। बाईडेन 1972 मे सेनेटर पहली बार बना था और यह डिफ़ेंस कमीटी और फ़ौरन एफेयर्स कमीटी का दस दस साल चेयरमैन रहा है।वैटनाम वार से लेकर, अफगानिस्तान, इराक़, बोसनिया वगैरह सब मे यह मार-काट की सलाह दी और हर राषट्रपति का साथ दिया। ओबामा का आईएसआईएस/दाईश बनाने की सलाह इस ने दिया।
बाईडेन के पूरी ज़िन्दगी का “अमल” जहन्नमी रहा है। यह अब बहुत बे-इज्जत हो गा और अमेरिका को ले डूबे गा।
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29/07/2022 at 9:02 AM
Very nice and proper reasech and also very balance
02/08/2022 at 10:29 AM
Thanks.