Post of 29 January 2019

जो हक़ से करे दुर वह तदबीर भी फितना
औलाद भी अज्दाद भी जागीर भी फितना
नाहक के लिए उठे तो शमशीर भी फितना
शमशीर तो क्या है नारे तकबिर भी फितना
(सरफेराज अहमद ख़ॉ बज़मी)

इस रूबाई पर हम ने कुछ दिन पहले उर्दु मे एक पोस्ट किया था और इस के आख़री दो शेर को सिरिया से जोड़ा कर मिसाल दिया था। जिस मे हम ने मुसलमानों को बुरा-भला कहा था के Obama के बहकाने मे क्यों आ गये।यह भी लिखा था के 99% लोग को इस रूबाई का मतलब समछ मे नही आये गा। मेरी बेटी ने मना किया 99% हटा दिजये लोग बुरा मान जाय गे। हम ने कहा बेटा पिछले हफ़्ता तक हम भी 99% लोग मे थे, जब तक हम ने ईमाम तिरमीजी को इस्लाम के एक वाक़या के सम्बन्ध मे नही पढ़ा था।

आज इस रूबाई का पहला दो शेर पर लिख रहे है और तालिबान ज़िन्दाबाद का नारा लगा रहे है जो 101% के समझ मे आये गा।

तालिबान की अमेरिका के साथ बात चीत मे बहुत शरत थी जिस मे दो अहम था, एक अमेरिकी के फ़ौज के वापसी और दूसरा “funding of militancy”.

1. “America agreed to Taliban demand that US will neither create any militant organisation nor will fund any militant organisation (ISIS) in Afghanistan in future.”

2. “American army will be there in some cities.” (I have also no objection). Now Taliban has shown the world that US is creating everywhere muslim militancy by recruiting mercenaries and funding them to defame muslims.

यह साबित हो गया तालिबान हक़ पर था चाहे उस के लिए जितनी जान गई वह हक़ था वरना अफ़ग़ानिस्तान की जायदाद (तेल, गैस, मिनरलस और मेटल) के लिए अमेरिका ISIS की funding कर बाद मे लड़ाई झगड़ा कर फितना को ज़िन्दा रखता।