FB Post of 22-01-2023

Faisal Mohammad Ali, BBC संवाददाता अपने लेख में लिखते हैं कि भारत में ”पसमांदा, मुसलमान कोई ताज़ा-ताज़ा शब्द नहीं लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा एक सम्मेलन में इसके इस्तेमाल के बाद इस संदर्भ मे दिलचस्पी फिर से जग गई है।” (लिंक कौमेंट में पढ़ें).

मेरा कहना है कि आजकल इसी संदर्भ में बोहरा और पसमांदा मुसलमानों को कुछ लोग ख़ास तौर पर ज़िक्र कई जगहों तथा संघ की पार्टी के लोग कर मुस्लिम तुष्टीकरण करने लगे हैं जबकि यही लोग कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टीकरण का इलज़ाम लगा कर समाज को बाँटते रहे।

फ़ैसल साहेब लिखते हैं कि “पसमांदा फ़ारसी का शब्द है, जिसका अर्थ है वो जो पीछे छूट गए” मगर वह यह नहीं लिखते हैं कि किस ने उन को समाज में आज़ादी के बाद पीछे कर दिया?

आज़ादी के बाद, मुस्लिम “पिछड़े और गरीब” लोगों को हिन्दु बुद्धिजीवियों तथा राजनैतिक पार्टी यही समझाती रही हैं कि अशराफ़ समुदाय सवर्ण हिंदुओं की तरह मुस्लिमों में संभ्रांत समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है, जो बिल्कुल ग़लत है।आज़ादी के बाद मुस्लिम को पसमांदा अशराफ, शेख़, पठान ने नहीं बनाया बल्कि सत्ता में रहे लोगों ने दंगा करा-करा कर उन के पेशा और बिज़नेस को जला जला कर बहुत सारे शहरों में खत्म किया।सूरत में यही बोहरा समाज के बिज़नेस को सत्तर के दशक से लगातार दंगा करा कर आज इन लोग को “पसमांदा” बना दिया।यह लोग अपना राज्य छोड़ कर भोपाल, पटना जैसे दूसरे कई शहरों में जा कर बस गये।

फ़ैसल साहेब ने इस में एक तस्वीर दिया है जिस में बैनर लगा है “पसांदा बुद्धिजीवी सम्मेलन” जिस के मुख्य अतिथि बृजेश पाठक हैं।ज़रा गौर से देखिये गा यह #पसमांदा है मगर अपने को #बुद्धिजीवि भी बता रहे हैं।जब आप बुद्धिजीवि हो तो आप को पसमांदा होने की असल वजह क्यों नहीं पता है?

असल बात यह है कि ग़ैर-सवर्ण समाज चाहता है कि मुस्लिम ग़रीब समाज में भी “एक अमबेदकर” पैदा कर दो जो इस्लाम को अपनी पसमांदगी का ज़िम्मेदार बताये।स्वर्ण भी चाहते हैं कि यही हो ताकि वह कहें कि देखो इस्लाम में भी यही है, हम को क्यों बूरा कहते है, यह तो हर समाज में है।

मगर हिन्दु समाज को पता नहीं है कि यह पसमांदा मुस्लिम मस्जिद का ईमाम भी होता है और अशराफ, शेख़, पठान के बग़ल में खड़ा हो कर नेमाज़ भी पढ़ता है।क्या भारत के किसी मंदिर में एक दलित पुजारी पुजा करा सकता है और उस के हाथ का दिया प्रसाद कोई सवर्ण खा सकता है?

#नोट: अशराफ, शेख़, पठान बहुत ख़ुश होगा अगर पसमांदा को संघ की सरकार सरकारी नौकरी देकर या दंगा बंद कर उन के पेशा या बिज़नेस को फ़्री बैंक लोन दे कर उन का विकास कर देगी।जिन्नाह एक राजपूत परिवार से थे और पसमांदा होने के कारण उन के पिता #बोहरा शिया मुस्लिम हो गये।बाबर एक सून्नी मुस्लिम था और वह बाबरी मस्जिद शिया लोगों की थी मगर उस के तोड़े जाना का विरोध भारतीय मुस्लिम ने किया।उस के टूटने के बाद भारत और मुंबई दंगा मे जान-माल का नुक़सान मुस्लिम का हुआ।अफ़सोस इस बात का है कि बहुसंख्यक समाज को हज़ार साल बाद भी इस्लाम धर्म या समाज समझ में नहीं आया।

https://www.bbc.com/hindi/india-64348976?fbclid=IwAR0BenKYEwVooHqQPLj6hiipLj_VxXuVQoKiJsFhaJML8HDcKP5BKHAOX8k
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Some comments on the Post

Mohammed Seemab Zaman, 1990 मे लालू यादव जब मुख्यमंत्री बने तो “पसमांदा” शब्द हम लोगो ने सूना और आज कल नीतीश कुमार ने दलित के जीतन राम माँझी के तरह मुस्लिम मे भी पसमांदा की खोज कर कुछ नेता बना रहे हैं।संघ ने एक “मुस्लिम मंच” बनाया है जिस मे बेचारे गरीब मुस्लिम जुट रहे हैं। पिछले साल का वाक्या है कि एक आदमी अकसर मस्जिद मे नेमाज़ पढने आते थे मगर दस दिन ग़ायब हो गये तो पूछा कहॉ गायब थे तो वह बोले दिल्ली मे मोहन जी ने संघ के मुस्लिम मंच का सम्मेलन बोलाया है तो “हम को दो बस आदमी ले जाने को कहा गया” उसी मे मशग़ूल थे।संघ की पार्टी ने नकवी और शाहनवाज़ को पैदा किया मगर मुस्लिम संघ के पार्टी से नही जुटा। अब देखना है कि “पसमांदा” के संघ मे जुटने से कितना मुस्लिम संघ के पार्टी से जुटता है या वोट देता है।

Faisal Mohammad Ali Thanks Cha, what you said is right. Will put forth another piece on the politics on/over pasmandas.

Qasim Chaudhary, साहब बड़ी बेचैनी थी कोई इस पर लिखे मेरी ख्वाहिश अल्लाह ने पुरी कर दी ।।साहब ये जो कुछ पसमाँदा लिखते रहें तो ये मुसलमान समझ ले पसमाँदा ओर अशराफ लिख कर आप RSS की पिच पर बैटिंग कर रहे हो ओर आपको खबर भी नही है ।रही बात पसमाँदा की तो इस हिसाब से भारत के सभी मुसलमान पसमाँदा हैं ओर हमको पसमाँदा बनाया कांग्रेस ने क्योंकि आज़ादी से पहले 39.4 % मुसलमान सरकारी नौकरी में थे और आज 1% भी नही है ओऱ एक भाई चले हैं भारत जोड़ने मगर पहले उन्हे मुसलमानों के जख्मों का हिसाब देना पड़ेगा ओर हम सवाल करेंगे। इसी वजह से कांग्रेस को उत्तर प्रदेश के मुसलमान ने छोड़ा था

  • Mohammed Seemab Zaman, Qasim Chaudhary साहेब, आप का कौमेंट बहुत शांदार है। एक एक जुमला सही है। कांग्रेस ने ही मुस्लिम को बरबाद किया दंगा करा करा कर क्योकि कांग्रेस मे संघ के प्रचारक नरसिंह राव, प्रनब मुखर्जी ऐसे लोग भरे पडे थे। हम ने इस मे #सूरत का हवाला दिया है जो बहुत लोगो को समझ मे नही आया होगा। अब जब भारत बर्बाद हो गया तो संघ मुस्लिम न बोल कर “पसमांदा” बोल रहा है। आज जब भारत आठ साल से लिंचिंग हो रहा था और NRC हो रहा था तो सब गायब थे मगर अब कुछ माहौल बदल रहा है तो फिर “पसमांदा” की आवाज़ उठने लगी।
    • Qasim Chaudhary, Mohammed Seemab Zaman सूरत दंगे में इकलौते हिम्मत दिखाई थी चंद्रशेखर जी ने जिन्होंने सूरत विजिट किया था और कहा था मत सताओ इस सीधी क़ौम को इन्हें मत छेड़ो और तुम कितने बहादुर हो ये मैं जानता हुं मै बलिया का ठाकुर हुं मुझें पता है तुम कितने बहादुर हो और इनका मक़सद था वहाँ का बिज़नेस खत्म करना और वो खत्म कर दिया यही काम केन्द्र और राज्यों की कांग्रेस की सरकारों ने मुरादाबाद में और वहां का पीतल का मुसलमानों का काम खत्म कर दिया।।हर फसाद की जड़ कांग्रेस है.

Kamil Khan, बहुत जबरदस्त पोस्ट, और आखिर मे जो नोट लिखा है वो तो कमाल है. इस वक़्त शहरों मे जो पसमंदा मुस्लिम बोले जाते हैं वो सब पैसा कमाने के मामले मे शेख पठान सैयद से बेहतर स्थिति मे हैं, बस पढाई लिखाई मे थोड़ा पीछे हैं जो एक दो पीढी मे कवर कर लेंगे, इन जाति वादियों की दाल हमारे लोगों मे कभी नहीं गलेगी, ये मुंगेरी लाल के सपने देख रहे हैं

  • Mohammed Seemab Zaman, नोट मे हम ने संघीतकारो और पसमांदा को एक बहुत “गहरी बात” लिख कर समझाने की कोशीश किया है। अगर पसमांदा इस को समझ ले तो बृजेश पाठक को Chief Guest बनाने की बेवक़ूफ़ी नही करे गें।

Mozaffar Haque बहुत बेहतरीन लिखा है फ़ैसल साहब ने और उस पर आपकी टिपण्णी भी बेहतरीन है … पिछले कुछ सालों से (एक दो साल से शायद) self proclaimed और तथा कथित बुद्धिजीवी (उर्दू नाम वाले) अपनी जहालत और सरकारी लाभ या दान की आशा में, सोशल मीडिया पर ख़ूब “भसड़” मचा रखी थी जिसमें ख़ास कर सर सैयद को बुरा भला कहना और गालियाँ देना अपनी शान और अपना हक़ समझा जा रहा था … मैं ने लिखा भी था कि सर सैयद की बनाई हुई मुस्लिम यूनिवर्सिटी का लाभ असल में “पसमानदा” को ही पहुँचा है क्योंकि “अशराफ़” जिन्हें कहा जाता है वह पहले भी लंदन से बैरिस्टर बन बन कर आते थे.. और बेशक अक्सरियत उन्हीं लोगों की थी जिन्हों ने सर सैयद के साथ मिल कर और अपना समय, अपना धन, संपत्ति उन लोगों की तालीम के लिए लगाई जो “पसमानदा” थे … और उन अशराफ़ के बच्चे सालों साल अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में एक कोर्स के बाद दूसरा सिर्फ़ इस लिए करते थे कि वहाँ रह कर उनलोगों की पढ़ाई का ख़र्च उठाते रहें जो आर्थिक रूप से ग़रीब परिवार के थे … ख़ैर अब उम्मीद है मोदी जी उन पसमानदा लोगों का sanskritization कर के उन्हें “पसमान्दा” से “अशराफ़” बना देंगे …

  • Mohammed Seemab Zaman, यह लोग “अमबेदकर” बन्ना चाह रहा है।

Shalini Rai Rajput ब्रिटिश ने अमबेदकर दिया हिन्दुओं को दो फ़ाड़ करने के लिए। अब ब्रिटिश के फ़र्ज़न पसमांदा अमबेदकर देने की कोशिश कर रहे हैं। तोड़ना इनकी फितरत है।

  • Mohammed Seemab Zaman आप ब्रिटिश को अपनी गलती का क़सूरवार क्यो बता रही है? क्या उस वक्त हमारे पास बूद्धिजीवियों की कमी थी: गोलवरकर, सावरकर, शयामा प्रसाद, गॉधी, नेहरू, पटेल…. नही थे। इन लोगो ने समाज तोडा और अमबेदकर पैदा किया, आज मुस्लिम को तोड़ने की कोशीश कर रहे हैं, मगर यह कामयाब नही होंगें। नक़वी, शाहनवाज़ संघ मे कामयाब नही हुऐ, यह लोग भी संघ मे कामयाब नही होंगे।

Tur Khan इस्लाम धर्म अगर समझ में आ जाता तो आज ये मुस्लिमों को सबसे ज्यादा तवज्जों देते ग़लत काम की उम्र ज्यादा नहीं होती है और इनका और इनके मालिकों के ग़लत कामों का अब बुढ़ापा चल रहा है मुस्लिमो को चाहिए कि एक दूसरे की तरक्की में खूब सपोर्ट करें।

  • Mohammed Seemab Zaman, यहॉ तो 1935 (भागलपुर) से दंगा करा करा कर 85% मुस्लिम को “पसमांदा” बना दिया। अल्लाह का शुक्र किजये की मीडिल ईस्ट तरक्की किया तो लोग काम करने जाने लगे और बहुत सा घर सँभल गया वरना क्या हालत होता वह अल्लाह ही जानता है।

Aftab Yousufzai ये जो इनका मनुवाद है, ये ख़ुद तो इससे बाहर निकल नही सकते.. बल्कि इस गंदगी को हर जगह बिखर करके ये ख़ुद को हलका महसूस करना चाहते हैं. वैसे इनका मनुवाद ही इनकी रोज़ी रोटी का भी जुगाड़ भी है.. इसके खत्म न होने की असल वजह भी यही है.

Mohd Shoaib मेरी शॉप के पास में एक लड़का आता है जो संघ को ज्वाइन किए हुए पंडित है अभी कुछ दिन पहले बोल रहा था जैसे हम हिंदू को दलित तेली चमार एससी एसटी ओबीसी में बांटे है वैसे कुछ समय रुक जाए । मुस्लिमो को भी हम इसी तरह तकसीम कर देंगे आज जब आपकी पोस्ट पढ़ी तो उसकी बात याद आ गई पर ये हमारी ही न अहली है जो पशमंदा तहरीक चला रहे है कॉम को किस्तो में तकसीम कर रहे है।

  • Mohammed Seemab Zaman, इस पोस्ट पर मेरा कौमेंट पढिये। यह पसमांदा पैसा लेकर बस भर भर कर मोहन जी का भाषण सूनने जा रहा हैं। वह लडका गलत नही बोला।

Mohd Chaudhary, शिया सुन्नी का खेल खत्म होने के बाद इन्होंने मुस्लिमो में बढ़ती राजनीतिक जागरूकता को कुंद करने तथा मुस्लिमो का हितैषी दिखने के लिए पसमांदा वर्सेज अशरफ कार्ड खेला है । इसमें मुस्लिम राष्ट्रीय मंच से लेकर गांव के संघी सरपंच तक सब एक ही भाषा बोल रहे है और अफसोस की कुछ फेसबुकिए नौजवान इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा भी ले रहे है।

  • Mohammed Seemab Zamanगॉव के संघी सरपंच भी बोलने लगे, वाह। इस का मानी यह बहुत organised way मे फितना फैलाया जा रहा है ताकि वोट बट कर यूनिटी ख़त्म कर दिया जाये।
    • Mohd Chaudhary, Mohammed Seemab Zaman हज़रत बहुत ही ऑर्गेनाइज्ड वे में यह फितना फैलाया जा रहा है । और इस तरह की बातें वह सिर्फ उन्ही लोगो से करते है जिन्हे न तो दीन पता है और न दुनिया की खबर है । आखिरी लाइन होती है सारे धर्म में यही हाल है । उदाहरण के रूप में वह दो चार बालीवुड फैमिली या राजनीतिक फैमिलियो का नाम गिना देते है.

Syed Shaad, पसमांदा पॉलिटिक्स पर आपने शानदार लिखा है। पसमान्दा पॉलिटिक्स करने वाले लोग वक़्तिया कामयाब हो सकते हैं लंबे समय तक नहीं। खुदा इन्हें कभी हमेशा के लिए कामयाब होने नहीं देगा।

  • Mohammed Seemab Zaman, खुदा नही यह खुद कामयाब नही होंगें। इन्के ही लोग एक दूसरे का पैर खैंच कर गिरा दें गें। इस मे जो लोग कुर्सी पर बैठे हैं उन को गौर से देखये, सब खाया पिया पेट है। एक आदमी जो हाथ बाँधे बैठे हैं वह 20,000-25,000 हजार की टोपी पहने बैठे हैं।

Shalini Rai Rajput, ब्रिटिश ने अमबेदकर दिया हिन्दुओं को दो फ़ाड़ करने के लिए। अब ब्रिटिश के फ़र्ज़न पसमांदा अमबेदकर देने की कोशिश कर रहे हैं। तोड़ना इनकी फितरत है।

  • Mohammed Seemab Zaman, आप ब्रिटिश को अपनी गलती का क़सूरवार क्यो बता रही है? क्या उस वक्त हमारे पास बूद्धिजीवियों की कमी थी: गोलवरकर, सावरकर, शयामा प्रसाद, गॉधी, नेहरू, पटेल…. नही थे। इन लोगो ने समाज तोडा और अमबेदकर पैदा किया, आज मुस्लिम को तोड़ने की कोशीश कर रहे हैं, मगर यह कामयाब नही होंगें। नक़वी, शाहनवाज़ संघ मे कामयाब नही हुऐ, यह लोग भी संघ मे कामयाब नही होंगे।

Lalit Mohan पोस्ट के आधार पर अगर समझें तो पसमांदा का असल मतलब पिछड़ा या बैकवर्ड क्लास है।पिछड़ा या बैकवर्ड उसका विकास के दौर में पीछे रह जाना है। ना कि उसके बौद्धिक क्षमता या विकास में पिछड़ जाना है।सदियों से अधिकतर आंदोलनों के जनक पिछड़ा समाज के लोग रहे हैं, क्योंकि वास्तव में वे नई व्यवस्था में श्रमिक या म्यूट से अधिक कुछ नहीं होते।गांव के गंवार या अनपढ़ लोग बहुत बार शानदार फैसले दे देते हैं। उसका मतलब अनपढ़ या विकास में पिछड़ गया व्यक्ति बुद्धिमान नही है। यही भ्रांति भारत में अनुसूचित जाति, जनजाति के बारे में भी सदियों से बैठाई गई है।कृपया मुस्लिम समाज पिछड़ गई जातियों को अधिक मौके दे और उन्हें बराबरी पर लाने के लिए भरपूर समर्थन दे।वरना एक बीमार मछली पूरे तालाब को गंदा कर सकती है।

Sirajuddin Zainul Khan ओ आपकी कमजोरी तलास्ते है फिर आपपे वार करते है. दबे स्वर में पसमांदा 50 सालो से सर्वण मुस्लिम से बुग्ज़ रखता है ,उसमे सर्वण की भी गलती मैं मानता हु. दंगा करा कर हिंदू मुस्लिम मंदिर मस्जिद करके सरकारी नौकरियों में 0 करके कुछ उखाड़ नही पाए तो अब ये हथियार इस्तेमाल करके उखाड़ना चाहते है मुसलमानो में नफरत डाल कर पसमनदा अशराफ. आज श्रवण मुस्लिम पसमानदा से कमजोर स्तिथि में है,फिर भी नफरत करवाने में कुछ हद तक ये लोग कामयाब होते दिख रहे है.

Anish Akhtar शानदार..क्या ये माना जाये कि भारतीय राजनीति एक ओर फिरका खड़ा करने की कोशिश में है जबकि हम सबको फिरकेबाज़ी का विरोध करना चाहिये