Post of 7th November 2022
#BBC Hindi के क़ाबिल, रिसर्चर, निष्पक्ष संवाददाता रेहान फ़ज़ल ने अपने #विवेचना मे जनसत्ता के पूर्व संपादक प्रभाष जोशी की जीवनी “लोक का प्रभाष” में नरसिंह राव के हवाले से 6 दिसंबर 1992 बाबरी मस्जिद शहादत मे दावा किया गया है कि उन्होंने उस समय जो किया, “सोच समझकर किया.”
रेहान फ़ज़ल कहते हैं कि अयोध्या मामले में प्रभाष जोशी संघ परिवार के सरसंघचालक रज्जु भैया (राजेन्द्र सिंह) और नरसिंह राव के बीच बातचीत का हिस्सा रहे थे।4 दिसंबर 1992 तक पीवी नरसिंह राव और संघ प्रमुख रज्जू भैया में जो बातचीत चली, उसमें यही कहा जा रहा था कि ढाँचा बना रहेगा और कारसेवा होगी।प्रभाष जी के सामने रज्जू भैया का रघुकुल वचन था।
मगर 6 दिसंबर की घटना से प्रभाष जोशी के मन में बड़ा कौतूहल था।वे (पत्रकार) निखिल चक्रवर्ती के साथ नरसिंह राव से मिले।उन दोनों ने प्रधानमंत्री नरसिंह राव से पूछा कि “6 दिसंबर को आपने जो रवैया अपनाया, उससे बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने से रोका नहीं जा सका।ऐसा आपने क्या सोचकर किया?”
प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने उन लोगों से कहा, “क्या आप लोग समझते हैं कि मुझे राजनीति नहीं आती? मैंने जो किया, वह सोच-समझकर किया।मुझे भाजपा की मंदिर राजनीति को समाप्त करना था, वह मैंने कर दिया।”
6 दिसंबर 1992 के साजिश के तहत तोड़ा गया, प्रभाष जोशी इस धोखे से आहत थे।इसलिए प्रभाष जोशी संघ परिवार के लिए “धतकरम” शब्द गढ़ा और अपने कई संपादकीय में इसका इस्तेमाल किया।प्रभाष जोशी, अटल बिहारी वाजपेयी जो आजीवन संघ के प्रचारक रहे उन को “संघ का मुखौटा” लिखते थे।
#नोट: नरसिंह राव 18 भाषा जानने वाले विद्वान और भारत के विदेशमंत्री रहे मगर बाबरी मस्जिद को उडाने मे अपने को राजनीति का चाणक्य समझते थे।नरसिंह राव बाबरी तोडवाने के बाद अगस्त 1993 मे चीन को 350 km जमीन लिख कर दे कर आ गये, और आज चीन विस्तारवादी हो गया।आज तीस साल से भारतीय लोग विश्व के सब से बडे Labour Market मिडिल ईस्ट जाकर रोज़ी रोटी कमाने लगे।
इतिहासकार जब आज़ाद भारत के 21वी सदी मे बरबादी का इतिहास लिखे गें तो रज्जु भैया, अडवाणी या वाजपेयी का नाम बाद मे लिखें गें मगर पहला नाम नरसिंह राव का लिखे गें।
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