अल्लाह कुरान में कहता है: “जो एक मानव जीवन को बचाता है, वह ऐसा है जैसे उसने सारी मानव जाति को बचाया है” – (5:32)
हकीम बू अली सीना का जन्म 980 में बोखारा (उज्बेकिस्तान) के एक गाँव में हुआ, उस समय बोखारा इरान का हिस्सा था। इब्न सिना 1037 में हमादान (ईरान) में मरे और वहीं दफन हुऐ। वह अपने समय और इस्लामिक स्वर्ण युग (8 वीं से 14 वीं शताब्दी) के सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण चिकित्सक, खगोलशास्त्री, तर्कशास्त्री, लेखक और दार्शनिक थे। उन्होंने कई किताबें लिखी हैं और उनकी प्रसिद्ध रचनाएं “शिफा”, “इशारात” और “क़ानून” हैं।
“इल्म कलाम” को इमाम राज़ी के बाद फाराबी ने और फाराबी के बाद बू अली सीना ने काफ़ी फैलाया। इस्लामी शरीयत का एक बडा हिस्सा जो बू अली सीना ने हल किया वह “मोएज्ज़ात और आदात” के तहत था।बू अली सीना ने अरस्तू और फाराबी के ज्ञान से हासिल किया।इस वजह कर मुस्लिम हकीम उन्हें “मोअल्लीम सानी” भी कहते हैं।
इब्न सीना को यूरोप में एविसेना के रूप में जाना जाता था। उन को संदेह था कि कुछ रोग सूक्ष्मजीवों द्वारा फैल रहे थे, … और मानव-से-मानव संदूषण को रोकने के लिए, वह 40 दिनों के लिए लोगों को अलग करने की विधि का पहली बार प्रयोग किया।उन्होंने इस पद्धति को “अल-अरबिया” (द फोर्टी) नाम दिया।
वेनिस (इटली) के व्यापारियों ने उनकी सफल विधि के बारे में सुना और इस ज्ञान को समकालीन इटली में वापस ले गए और इसे “क्वारेंटेना” (इतालवी में चालीसवां) कहा।आज यह दुनिया मे “क्वोरंटाईन/संगरोध” के नाम से प्रयोग किया जाता है।दुनिया में महामारी से लड़ने के लिए वर्तमान में जिस पद्धति का उपयोग किया जा रहा है, उसकी उत्पत्ति इस्लामिक दुनिया में हुई है।
आज भी, इब्न सीना की दूसरी विधि जैसे कैथेटर और ऐमपूटेशन हजारों, शायद लाखों लोगों की जान बचा रही है और उनकी विरासत “बरकाह” से भरी हुई है!
“हेयराँ है बु अली के मै आया कहॉ से हूँ
रूमी ये सोंचता है के जाऊँ किधर को मैं” (इकबाल)
حیراں ھے بو علی کہ میں آیا کہاں سے ہوں
رومی یھ سونچتا ھے کہ جاؤں کدھر کو میں
(Iqbal Khan साहेब ने मेरे पोस्ट BU ALI SINA, IBN SINA का यह हिन्दी अनूवाद किया है, अल्लाह इकबाल खॉ साहेब को इल्म दे)