12 November 2022
भारतीय परम्परा में भगवान माने जाने वाले राम काल्पनिक पात्र नहीं हैं. पर राम कथा एक राम की नहीं, दो रामों की कथा के संयोग से बनी लगती है. जो सार्थवाहों या व्यापारी काफिलों की वार्ताओं के साथ मध्य एशिया, भारत, श्रीलंका, कम्बोडिया, जावा, सुमात्रा और फिलिप्पीन द्वीप समूह तक व्याप्त हो गयी. जैसा लोक गाथाओं में होता है, प्रायः हर पीढ़ी उसमें कुछ न कुछ जोडती रहती है या कुछ रूपान्तर कर देती है, राम कथा के साथ भी यही हुआ लगता है.
जितना मैं खोज पाया, इस कथा में दो महान राजाओं की कीर्ति कथा की संयुति लगती है. इनमें से एक राजा हैं, मैसोपोटामिया या प्राचीन ईराक के उत्तरपूर्व में स्थित लारसा राज्य के राजा और वरदसिन (भरत श्री) के भाई रिमसिन (रिमश्री-रामश्री) और दूसरे हैं मिस्र के महानतम फराओं रेमेसिस द्वितीय. रिमसिन ईसा से 1800 साल पहले जन्मे थे और रेमेसिस द्वितीय ईसा से लगभग 1300 साल पहले. दोनों ही नरेश दीर्घजीवी रहे और दोनों ने ही सत्तर साल के लगभग राज्य किया था.
लारसा का इतिहास बताता है कि वरदसिन ने 13 वर्ष राज्य किया, पर उन्होंने कभी अपने आप को राजा नहीं राज्य का संरक्षक ही माना. लारसा में यह परम्परा थी कि राज्य के मुख्य मंदिर की प्रधान पुजारिन राजा की बेटी ही हो्ती थी. लेकिन वरदसिन ने उस पद पर अपनी बहिन को पदस्थापित किया. 13 साल के उपरान्त उन्होंने राज्य का भार आपने भाई रिमसिन को सौंप दिया.
लारसा का इतिहास बताता है कि रिमसिन एक लोकरंजक राजा थे. उन्होंने प्रजा के सुख और संमृद्धि के लिए अनेक कार्य किये. अपने राज्य में सूखे से निपटने के लिए नदियों से अनेक नहरें निकालीं, जिनमें से एक नहर तो समुद्र तक पहुँचती थी. राज्य की रक्षा का सुदृढ़ प्रबन्ध किया. कर प्रणाली को सुधारा. उनके राज्यकाल तक राजस्व वसूली मंदिरों के महन्तों के अधीन थी और इससे प्रायः प्रजा का उत्पीड़न होता था. रिमसिन ने राजस्व संग्रहण राज्य के अधिकार में ले कर उसमें सुधार किया. बाहरी आक्रमण से निपटने के लिए उन्होंने राजधानी के परकोटों को सुदृढ़ किया, अनेक भव्य मन्दिर बनवाये, अपने पूर्व पुरुषों और अपने भाई वरदसिन की भी भव्य मूर्ति स्थापित की.
उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार किया, अनेक युद्ध लड़े, पर विजित राज्यों की प्रजा पर कोई आँच नहीं आने दी. वह भी उस युग में जब विजित राज्य की प्रजा को लूटमार द्वारा तबाह कर देना आम बात थी.
रिमसिन और राम के राज्य के अन्त की घटनाएँ भी मिलतीजुलती हैं. वाल्मीकि रामायण के अनुसार राम अंत में अपने सभासदों के साथ सरयू में विलीन हो कर स्वर्गारोहण करते हैं और उनके बाद अयोध्या उजाड़ हो जाती है जिसे दीर्घ कालान्तराल के बाद ऋषभ नामक राजा फिर से बसाया. रिमसिन को भी बेबिलोनिया के राजा हम्बूराबी द्वारा मारी? की सहायता से लारसा पर किये गये भीषण आक्रमण से पराजित हो कर देश छोड़ कर भागना पड़ा.
हम्बूराबी ने उन्हें पराजित तो किया पर वह उनके प्रशासनिक सुधारों और लोकरंजक नीति से इतना प्रभावित हुआ कि उसने अपने राज्य में भी वही प्रशासनिक व्यवस्था लागू की. बाद में उनके वंशज रिमसिन द्वितीय ने हम्बूराबी के पुत्र समसीएलेना को परास्त कर अपने दादा की हार का बदला लिया.
राम के जीवन की अनेक घटनाओं में मिश्र के महानतम फराओं रेमेसिस द्वितीय के जीवन की घटनाओं की छाया सी प्रतिबिम्बित होती है. रैमेसिस भी अपनी पत्नी नेफरतारी से इतना प्यार करता था कि, अपने हरम में सौ रानियों के होते हुए भी उसके रंगमहल में किसी अन्य रानी को, यहाँ तक पड़ोेस के शक्तिशाली खत्ती राजा हत्तिसाली की पुत्री को, जिसका रेमेसिस से विवाह दो प्रतिस्पर्धी राज्यों के बीच की संधि को वैवाहिक सम्बन्धों द्वारा और भी मजबूत करने के लिए हुआ था, को भी प्रवेश की अनुमति नहीं थी. नेफरतारी से वह इतना प्रेम करता था कि उसके देहावसान के बाद उसने न केवल उसका अपने पितरों की भूमि अब्दु (अवध से तुलनीय) में एक भव्य मन्दिर स्थापित किया, अपितु उसकी भव्य मूर्ति स्थापित करते हुए उसेे संसार की सबसे सुन्दर और आदर्श नारी के रूप अंकित किया.
इस संधि से पहले इन दो राज्यों में कदोस नामक स्थान पर भ्यंकर युद्ध हुआ था जिसमें रेमेसिस को पराजय से बचने के लिए पीछे हटना पड़ा था और नयी कुमुक के आ जाने से ही उसे कदोस के युद्ध में विजय मिली थी. (कदोस खरदूषण और उसके सहायक तुरगोस और त्रिषिरा, तथा राम का खरदूषण के साथ युद्ध में तीन पग पीछे हट्ना तुलनीय)
रेमेसिस द्वितीय के जीवन की दूसरी घटना नूबिया के राजा को, बालि नामक स्थान पर, अकेले (बहुत कम सैनिकों के सहयोग से) परास्त करना थी जो रामकथा के बालि वध से मिलतीजुलती है.
रैमेसिस द्वितीय के जीवन की तीसरी घटना, वर्षों से आसपास के राज्यों के व्यापारी के जहाजों की लूटमार करने वाले समुद्री डाकुओं को परास्त कर उन्हें अपना गुलाम बना लेना और समुद्री डकैती का अन्त कर देना थी. क्या यह नहीं लगता कि राम द्वारा समुद्र के आतंक को समाप्त कर उसे अपने अधीन बना लेने में इस घटना की छाया है?
रैमेसिस ने अपने राज्यकाल के तीसवें वर्ष में एक विशाल धार्मिक उत्सव ( जिसे मिस्री भाषा में सेद उत्सव कहा गया है) आयोजित किया जिसमें उसे औपचारिक रूप से भगवान मान लिया गया. उसके बाद हर तीसरे साल ऐसा उत्सव मनाते हुए उसने अपने जीवन काल में 14 महोत्सव आयोजित किये.
रैमेसिस के जीवन का अन्तिम चरण भी बहुत दुखद रहा. वह 91 साल जिया. उसके जीवन काल में ही उसके अधिकतर पुत्र, रानियाँ और बन्धुबान्धव स्वर्ग सिधार गये. युद्धों में लगे आघातों के कारण वह संधिवात से बुरी तरह ग्रस्त हो गया. पर उसके जीवन की सबसे बड़ी ऐतिहासिक उपलब्धि उसके और खत्ती राजा हत्तुशालि के बीच संधि है, जिसे विश्व के दो राज्यों के बीच की अब तक की सबसे आदर्श संधि मानते हुए संयुक्त राज्य संघ के मुख्य सभागार में सुशोभित है।
राम के बारे में कहा गया है कि उनका अवतार धर्म की पुनर्स्थापना के लिए हुआ था. रैमेसिस का सबसे बड़ा योगदान भी प्राचीन मिस्री धर्म साधना की पुनस्र्थापना है. उसके पूर्ववर्ती फराओं एखनेटोन ने प्राचीन मिस्री धर्म साधना को प्रतिबन्धित कर एक नयी धर्म साधना प्रचलित कर दी थी. यह नयी धर्म साधना प्रजा को रंच मात्र भी स्वीकार्य नहीं थी. पर यह उन पर राज्य की ओर से बलात थोपी जा रही थी. प्राचीन मिस्री धर्म साधना से जुड़े मंदिर तोड़े जा रहे थे, उनके पुजारी कारागार में डाले जा रहे थे. रैमिसिस ने गद्दी पर बैठते ही इस नयी धर्म साधना को अवैध घोषित कर पुरानी धर्म साधना को पुनर्स्थापित किया.—
राम जहाँ भी जिस रूप में अवतरित हुए हों पर इसमें कोई सन्देह नही है कि वे लोकरजक राजा थे. उन्होंने स्वयं दुख उठाया पर कभी भी प्रजा को कष्ट नहीं होने दिया. पर उनके तथाकथित स्वयंभू उत्तराधिकारी और प्रचंड अनुगामी क्या जनता को दुख के अलावा कुछ और दे रहे हैं? ऐसे महान लोकरंजक महापुरुष का स्मारक निरीह जनता की लाशों पर बनेगा क्या?
या इलाही ये माजरा क्या है?