FB Post of 24th August 2021
तालेबान द्वारा 40 साल बाद अफगानिस्तान की आजादी के, कल उजबेकिस्तान के राजदूत ने पाकिस्तान के साथ मिल कर मोगल बादशाह ज़हीरउद्दीन “बाबार” और मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग “गालिब” पर एक यादगार फिल्म बना कर उस पूरे खित्ते मे टूरिज़म को फ़रोग़ देने की योजना पर बल दिया है।
पहले मोगल बादशाह बाबार और गालिब दोनो उज़बेकिस्तान के थे।आज भी बाबर का मोजस्समा ताशकंद और समरकंद के चौराहों पर लगा नज़र आता है।बाबर बाप के तरफ से तैमूरी और मॉ चंगेजी नस्ल की थीं।ग़ालिब तुर्क नस्ल के थे।ग़ालिब ने मोगल सल्तनत का पतन 1857 मे दिल्ली मे अपने ऑंखो से देखा।
“बाबर ख़ूबियों का ख़ज़ाना था, बेमिसाल बहादुर और जंगजू, बेहतरीन कमांडर, अपने परिवार से बेहद मुहब्बत करने वाला इतनी कि अपने बेटे हुमांयूँ के लिए अपनी जान क़ुर्बान कर दी, उसकी आटोबाइग्राफी दुनिया की चुनिंदा किताबों में एक है, लाजवाब शायर, बेहतरीन इंसान, जब इब्राहिम लोदी उसके साथ जंग करते हुए मारा गया तब बाबर लोदी की मां के पास पुरसे के लिए गया, अल्लाह में उसका भरोसा ग़ज़ब का था, ऐसे इंसान से लोगों को कुछ सीखना चाहिए।।
#बाबर के लिये इकबाल का एक शेर है:
“एका एक हिल गई खाके समरकंद
उठा तैमूर की तुरबत से एक नूर”
#गालिब का एक मशहूर शेर है:
“बाज़िचये अतफाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-व-रोज़ तमाशा मेरे आगे”
———————————
Some related comments of FB friends on the Post
#Syed Abid Naqvi
“ख़ूबियों का ख़ज़ाना था बाबर, दुनिया के बादशाहों को जितना मैंने पढ़ा है बाबर की ख़ूबियों के आगे कोई नहीं टिकता, ज़बर्दस्त जिस्मानी ताक़त, बेमिसाल बहादुर, बेजोड़ जंगजू, बेहतरीन कमांडर, अपने परिवार से बेहद मुहब्बत करने वाला इतनी कि अपने बेटे हुमांयूँ के लिए अपनी जान क़ुर्बान कर दी, बेजोड़ राईटर उसकी आटोबाइग्राफी दुनिया की चुनिंदा किताबों में एक है, लाजवाब शायर, बेहतरीन इंसान, जब इब्राहिम लोदी उसके साथ जंग करते हुए मारा गया तब बाबर लोदी की मां के पास पुरसे के लिए गया, अल्लाह में उसका भरोसा ग़ज़ब का था, ऐसे इंसान से लोगों को कुछ सीखना चाहिए”
#Mozaffar Haque
बाबर की मौत आगरा में हुई थी और उसे आगरा में ही आराम बाग़ में दफ़न भी किया गया था, बाद में तक़रीबन 14-15 साल के बाद बाबर की लाश को काबुल शिफ़्ट किया गया और बाग़ ए बाबर में दफ़न किया गया .. मैं जब अलीगढ़ से दिल्ली जाता था तो निज़ामुद्दीन में रुकता था और अमीर ख़ुसरो के यहाँ फ़ारसी कलाम सुनने भी चला जाता था, हुमायूँ का मक़बरा वहाँ से क़रीब ही है, एक बार उधर चला गया, कुच्छ tourists भी आए हुए थे, एक ग्रूप के guide एक सरदार जी थे .. उन्हों ने एक ख़ूबसूरत जुमला बोला कि “Babur is buried in Kabul, (फिर एक तरफ़ इशारा कर के कहा कि) it’s his barber’s tomb”……
Tuzuk-e-Baburi (तुज़ुक ए बाबरी) जो बाबर की autobiography है originally तुर्की ज़बान में लिखी गई और सब से पहले इसका तर्जुमा अकबर ने ही अब्दुररहीम ख़ान ए ख़ानाँ से फ़ॉर्सी में करवाया था … बाबर एक बहुत ही पढ़ा लिखा और बाकमाल आदमी था.. उसे तुर्की ज़बान का दूसरा सब से बड़ा शायर भी माना गया है .. बाबर ने हुमायूँ को जो वसीयत की है वो सारे भारत वासियों को ज़रूर पढ़ना चाहिए .. उस में उस ने जो अपनी रयाया के आदर और सम्मान और इंसाफ़ करने, उनकी भावनाओं का ख़्याल रखने की जो बात कही है वोह तो practically डेमोकरैटिक गवर्न्मेंट में भी नहीं किया जाता है …
#Misbah Siddiki
चौधरी सर साहेब,बिरयानी से लेकर मुगलों ने बादाम और पिलाफ(पुलाव), समोसा, गुलाब जल, कबाब और कोरमा पेश किए। पुलाव की अवधारणा मुगलों के साथ भारत में आई। मुगल प्रसिद्ध समोसे और मध्य पूर्वी पेस्ट्री भी साथ लाए जो मध्ययुगीन काल में सूखे मेवे, मेवे और कीमा बनाया हुआ मेमने से भरे हुए थे। बल्कि मुग़लई क्यूज़ीन की एक ज़ायके व नफ़ासत से भरीपूरी रवायत क़ायम करा दी।हींग के बारे में भी कहा जाता है कि मुग़ल लेकर आये थे क्योंकि हींग अभी तक अपने मुल्क में कल्टीवेट नही की जाती है अब सरकारी कोशिशें हो रही है।
#Syed Abid Naqvi
Salimuddin Ansari भाई, हर क्षेत्र में मुग़लों का योगदान है, बाबर ने आम के लिए लिखा है कि यहां एक फल होता है जिसे “अंबा” कहा जाता है तुर्शी लिए होता है बहुत से खाओ तो एकाध अच्छा होता है, और आज के आम देखिए इसका मतलब क़लम की टेक्नीक भी वही लाए और बाग़वानी को एक नया आयाम दिया।।
#Misbah Siddiki
Salimuddin Ansari साहेब,जलेबी का याद था मुझे लेकिन मेरी जानकारी में था कि मुल्क में जलेबी तुर्किश लोग लाये थे और जलेबी अरबी व फारसी ज़बान से निकला लफ़्ज़ हैभारत में जलेबी पश्चिम एशिया से आई है. माहिरीन के मुताबिक, जलेबी अरबी लफ्ज़ ‘जलाबिया’ या पर्शियन लफ्ज़ ‘जलिबिया’ से आया है. A Baghdad Cookery Book: The Book of Dishes (‘किताब-अल-तबीक़’) में ‘जलाबिया’ का ज़िक्र है. यह ईरान में ‘जुलाबिया या जुलुबिया’ नाम से जानी जाती है. इतिहास के पन्नों को पलटते हैं, तो 10वीं शताब्दी की अरबी पुस्तक में ‘जुलुबिया’ बनाने की कई रेसिपीज़ मौजूद हैं।नादिर शाह के बारे में कहा जाता है कि उसे जलेबी बहुत पसंद थी और भारत आक्रमण प्रवास के वक़्त ईरान से जलेबी के कारीगर साथ लाये थे।वैसे कुछ सयाने जलेबी को ‘जल-वल्लिका’ और ‘कुंडिलका’ कह कर ख़ुद को मीठी झूठी तसल्ली देते हैं।
#Misbah Siddiki
Lubna Khan साहिबा,निहारी, आज आम ओ ख़ास की पसंदीदा नॉनवेज डिश है, शुरुआत शाहजहां (मुग़ल) के वक़्त लालक़िले की तामीर के दौर में कामगारों कारीगरों के लिए हुई थी आहिस्ता आहिस्ता घटते बढ़ते मसालों के साथ नज़ाकत नफ़ासत व ज़ायक़ा बढ़ता गया। और हर गोश्त खाने वाले की पसंदीदा डिश बन चुकी है।
Equestrian statue of Zakhiriddin Mohammad Babur, an outstanding writer, poet, and scholar, a talented military leader and statesman, born in 1483 in Andijan. He laid the basis for the Mughal dynasty in the Indian subcontinent and became the first Mughal emperor. He was a direct descendant of Turco-Mongol conqueror Timur (Tamurlane) from the Barlas clan, through his father, and also a descendant of Genghis Khan through his mother.