Post of 23 August 2023

Khursheeid Ahmad साहेब ने गुलाम नबी आज़ाद के आदम एलैहिस्सलाम और “घर वापसी” वाले मुद्दा के ब्यान पर एक शांदार पोस्ट किया।हम ख़ुर्शीद साहेब के पोस्ट और Athar Ali Khan साहेब के कौमेंट को जोड कर यह पोस्ट कर रहे हैं।

आज के मुस्लिम लोग सेकुलर बन्ने के चक्कर मे हम सब आदम के औलाद हैं का नारा लगाने लगें हैं।किसी को यह इल्म ही नही है कि कुरआन और शरियत के बेगैर कोई मुस्लेमिन नही है।

दुनिया मे दीन (ईमान,मज़हब,मसलक) के “असूली तालीम और बुनियादी अक़ायद” तो आदम एलैहिस्सलाम के वक्त से है, जो वक्त के साथ मसख/बदलता गया और फिर नबियों का सिल्सिला आखरी नबी मोहम्मद सललाहो अलैहे वसल्लम तक चलता रहा।

मुस्लिम उम्मते मोहम्मद को कहते हैं यानी मुस्लिम वह शख्स है जो अल्लाह को अपना रब व मोहम्मद को अपना रसूल मानता हो और कुरान पर ईमान है और जिस की अपनी एक शरियत है।उम्मत मोहम्मदी के लिए अल्लाह का इरशाद है कि ہُوَ سَمَّاکُمُ الْمُسْلِمِیْ यानि मुस्लमीन नाम से मौसूम किया है।

यहुदी और इसाई धर्म के मानने वाले को “साहबे किताब” माना जाता है मगर मुस्लिम नहीं कहा जा सकता है जब तक वह हज़रत मोहम्मद सललाहो अलैहे वसल्लम को नबी व रसूल न मान लें।आदम का हवाला नही ब्लकि इस फर्क को समझना जरूरी है।

इस में कोई शक नहीं कि दुनिया या भारतीय उपमहाद्वीप के मुस्लिम के पूर्वज ला-दीन थे, या आग के पूजा करने वाले थे, यहूदी थे या ईसाई थे, बुद्धिष्ठ या हिन्दू थे मगर अल्लाह ने उन्हें आखरी बार मोहम्मद सललाहो अलैहे वसल्लम के ज़रिये हिदायत दी और अलहमदुल्लिलाह आज हम मुस्लिम हैं, अल्लाह की इस नेमत पर हम जितना शुक्र अदा करें कम है।

इस पोस्ट को इक़बाल के शेर पर ख़त्म करते हैं,

بتاؤں تجھ سے مسلماں کی زندگی کیا ہے
یہ ہے نہایت اندیشہ و کمال جنوں

“बताऊँ तुझ से मुस्लमॉ की ज़िंदगी क्या है
यह है निहायत अंदेशह व कमाले जनूँ”
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Some comments on the Post

Gafoor Hussain सर मैं जानता था इस संबंध में आप पोस्ट ज़रूर करेंगे.

  • Mohammed Seemab Zaman हम कई सालों से रोज़ मग़रीब के नेमाज़ के बाद 21 बार “अल्लाह हुम्मा मग़फिरलील मोमेनिना वल मोनमेनात, वल मुसलेमिना वल मुस्लेमात” पढते हैं।पढते हैं तो फ़र्क़ और importance तो मालूम ही है।आप ने गौर किया हो गा, बहुत से ईमाम जुमा के दूसरे खुतबा मे यह दुआ मॉगतें हैं।
    • ActiveGafoor HussainMohammed Seemab Zaman सर कई सालों से आपको पढ़ रहा हूं और आपकी जानकारियों को समझता हूं.

Zeenat Khan आज आपने वोह लिख दिया जो आप कभी नहीं लिखते हैँ आप दीनी या मज़हबी टॉपिक को मुद्दा नहीं बनाते..बेहद उम्दा तहरीर.

Zaheda Parween Alhamdollillah kuze main samander

Sahaab Ansari Dadda माशा अल्लाह, बहुत बेहतरीन तरीके से और बहुत कम अल्फाजों में सब समझा दिया सर. अल्लाह आपको उम्र दराज़ करे अच्छी सेहत और कामयाबी हासिल हो सलाम आपकी लेखनी को

Kamil Khan हम खुद मानते हैं इस्लाम मज़हब 1400 साल पुराना है, पर इस मज़हब् को समझने के लिए काबे को समझना होगा, काबे की बुनियाद आदम अल ने रखी मगर फिर उसका नामोनिशां मिट गया फिर दोबारा काबे की तामीर हज़रत इब्राहिम अल की , पर इब्राहिम अल के बाद काबा एक बुत खाने मे तब्दील हो गया उसके बाद अल्लाह ने हमारे रसूल सल को दुनिया मे भेजा और इब्राहिम अल सलाम के काबे को मुसलमानो ने अपनी जबीनों से आबाद किया, कुल मिला कर इस्लाम तो आदम अल वाला ही है पर उसको फिर सही रूप देने वाले मोहम्मद सल अल्लाह के आखरी रसूल ही हैं, और आखरी रसूल को फालो करने वाले मुसलमान कहलाये, हँलांकि रसूल ने खुद कहा है के मै कोई नया मज़हब लेकर नहीं आया हूँ, दूसरी बात तमाम नबियों और रसूलों पर हमारा इमान है, इस हिसाब से अगर देखें तो रसूल ने कोई नया मज़हब नहीं बनाया बल्कि आदम अल और इब्राहिम अल के मज़हब को फिर से स्थापित किया कुछ नई शरीयतों के साथ जो ज़माने के बदलाव के हिसाब से थी, इन बदली हुई शरियत और इब्राहिम अल की शरियत को मिलाकर इस्लाम पूरा मुकमल होता है, और ये सब 1400 साल पहले हुआ है,

  • Zeenat Khan, Kamil Khan इस्लाम और मुसलमान का मतलब ही आदम अलैसालाम से लेकर नबी ए करीम तक सारे नबी और रसूल पे ईमान लाना उनको बरहक़ मानना यही इस्लाम है सब नबियों पे ईमान लाने वाला मुसलमान.

Gul Mohammad Gujjar नबी अलैहिस्सलाम के ऐलाने नबुअत के बाद सारी पुरानी शरियत खत्म कर दी गई, अब सिर्फ कुरान और आखरी नबी अलैहिस्सलाम की सुन्नतों पर अमल करना है, जिसके भी पास पैगामे हक पहुंचा वो अगर आखरी कलमा नहीं पड़ता तो वो हक पर नहीं है न इस्लाम में है चाहे वो अहले किताब ही क्यो न हो।
आखरी नबी सारे कायनात की तरफ भेजे गये है किसी एक इलाके य एक कबीले के लिए नहीं, इसलिए बिना इनकी शरियत और कुरान को माने हक पर हो ही नहीं सकते.

Adil Khan मैं आपसे ये जानना चाहता हूं, कि यहूदी, ईसाई अहले किताब होंगे मगर मुसलमान नहीं है ये सही है मगर ईसा और मूसा किसके नबी थे, वो किसका पैगाम लाए थे, उनका मज़हब क्या था? आदम से आदमी बना, हम सब आदम और हव्वा की औलाद कहलाए, हज़रत आदम को भी अल्लाह ने भेजा, क्या उनका कोई मज़हब नहीं था। गलतियां रसूल अल्लाह से पहले आए सभी नबियों और रसूल की उम्मत ने की, नबियों ने नहीं। क्या हम उन नबियों से अपना ताल्लुक तर्क कर सकते हैं?
मैं सिर्फ अपनी बेचैनी का जवाब चाहता हूं, आपके इल्म पर सवाल उठाने की मेरी कोई मर्ज़ी नहीं है।

  • Sarfaraz Nadwi, Adil Khan Sahab Ak musalman k liye Muhammad صلى الله عليه وسلم s pehle jitne bhi Rasool ayen hain un par Iman Lana zrori h, unka mazhab bhi wahi tha Jo Quran byan karta h ki wo Ak Khuda ko pojte the, or usi ki poja/ ibadat Karne ki dawat daite the, y bat hame Quran Kareem n batayi h, un ki asal taalimat ko un ke manne wale logon n bhula diya tha, tab akhir m Muhammad صلى الله عليه وسلم tashreef laye, pehle nabi y rasoolon ki Jo taaleem thi Quran n us ko baqi rakha, Quran s pehle jitne bhi kitaben thi unko Cancel / mnsookh qarar diya.
    • Adil Khan, Sarfaraz Nadwi sahab, bilkul sahi kaha, iska ilm hai।mujhe. Mera wahi kehna hai कि taura, जुबूर, इंजील को रद्द किया गया लेकिन रसूल अल्लाह से पहले आने वाले नबियों और रसूल को नहीं। वो सब खुदा ए यकता (एक खुदा यानी अल्लाह) को मानने वाले थे, और उसी का पैगाम सुनाने थे। वो सब भी मुसलमान थे न या उन्हें कुछ और नाम दिया जा सकता है? इस हिसाब से हम सब आदम अलैसलाम की औलाद हुए न