Post of Misbah Siddiki Saheb, 26 July 2022
#अख़्लाक़ के उंसुर हों अगर अस्ल मिज़ाज,
जो क़ौम हो कभी न मुहताज-ए-इलाज।
हो उस को हमेशा ख़र्क़-ए-आदत का ज़ुहूर,
हासिल हो उसे उम्र-ए-अबद की मेराज।।
اخلاق کے عنصر ہوں اگر اصل مزاج
جو قوم ہو کبھی نہ محتاج علاج
ہو اس کو ہمیشہ خرق عادت کا ظہور
حاصل ہو اسے عمر ابد کی معراج
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मोहतरम Mohammed Seemab Zaman साहब की बात पर गौर फरमाएं।
#अखलाक़ और उर्दू समाज
फ़ेस बुक पर सौहार्द बनाये रखें। साम्प्रदायिक और गाली-गलौज के अलफाज़ को यहाँ जगह ना दें। फिर आप मे और WhatsApp Uni या भारतीय टीवी चैनल मे कोई फरक़ नही रहेगा। उर्दु समाज गंदा होता जायेगा और ज़वाल होता जायेगा।
हम हर प्रकार के साम्प्रदायिकता के ज़हर, टीका टिप्पणी, ग़ैर अखलाक़ी लफ़्ज़ को नापसंद करते हैं। हमारे या दूसरो के विचार मे मतभेद हो सकते है मगर उस को “दोगला या दूसरे अपशब्द” से ट्रौल करना कहॉ का इस्लाम है?
कल किसी उर्दु नाम वाले एक लडके का पोस्ट देखा जो मेरे फ़्रेंड लिस्ट मे थे वह “गंदी गाली” पोस्ट पर लिखे हुऐ थे। मेरे कल के Crisis in the classroom वाले पोस्ट पर लोग किसी को “दोगला” कौमेंट मे लिख रहे थे।हम कौमेंट देख कर आजिज़ आ गये और पोस्ट को तीन घंटा बाद ही डिलिट कर दिया।
कुछ उर्दु नाम वाले अपनी तस्वीर केन्द्रीय विश्वविधालय मे पढने की डालते हैं या कोई अपने को पत्रकार बताते हैं मगर पोस्ट मे अकसर “बद-अखलाक़ी” नज़र आता है, या अपने पोस्ट पर दोगला लफ़्ज़ को लिख कर अपने पोस्ट का वज़न बढ़ाते हैं।ऐसे लोग हम को पसंद नही हैं कि वह मेरे फ़्रेंड लिस्ट मे रहें।
हम ने कई पोस्ट इस टौपिक पर किया है और देखा है उर्दु नाम वालो के लेखनी मे फ़र्क़ आया है, उमीद है आईंदा भी मेरी बात पर अमल करें गें।
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“नमाज़े ज़ाहिदां दरअस्ल एक फ़रीज़ा-ए-इनफ्रादी है
जीते जो दिल हुस्ने अख़लाक से वही वक़्त का ग़ाज़ी है” (Islam Hussain)