FB Post of 21st January 2022
अंग्रेजों के बनाये इन्डिया गेट पर अमर जवान ज्योति को बुझा कर दूसरे जगह लगाने पर अफसोस या कलेजा पिटने की क्या जरूरत है। पूरानी यादगार को मिटाने और नाम-पता बदलने का रेवाज तो इघर तीस-चालीस साल से आजाद भारत मे इतिहास लिखने का रेवाज हो गया है।
उस वक्त क्यो नही रोये थे जब बम्बई मे अंग्रेजों के बनाये Victoria Terminus (1887) station का नाम बदल कर 1996 मे छत्रपति शिवा जी टर्मिनस किया गया।उस वक्त शरम नही आया था कि यह आलीशान रेलवे स्टेशन की एमारत अंग्रेजों की बनाई है शिवा जी की नही।
जब तीन सौ साल रहे मोगल शासक के बनाये शहर, रोड का नाम बदला गया था तो बोलना चाहिये था कि इतिहास न बदलें। क्या तीन सौ साल पहले बाबर, अकबर, शाहजहॉ दिल मे प्रज्वलित नही थे, फिर क्यो ज़मींदोज़ किया बाबरी मस्जिद? पूरा बनारस और अयोध्या को 60 फ़ीट कोड दिया गया मगर कोई मूर्ती या यादगार राम जी का नही मिला.
#आज भी 4,000 साल पूराने मेसोपोटामिया मे राजा-रानी के बेटा का जन्म पत्र (Birth Certificate, 2000 BC) और पैर का निशान खोदाई मे मिल रहा है।क्या हजारो साल पहले अयोध्यानगरी मे लिखा पढा नही जाता था?
#इराक़ के कुरदिस्तान मे 5,000 साल पूराना दस मीटर खोदाई पर शहर “ईदू” (Idu) मिल रहा है।कहॉ वह उस का नाम पता बदल रहा है या जमीन दोज़ कर रहा है?
अब तो चीन मेरे जमीन का नाम पता बदल कर नया इतिहास लिख रहा है मगर कोई कुछ नही बोल रहें हैं।मगर अंग्रेजों के बनाये 80,000 भारतीय फौज के लिए यादगार को लोग “symbol of our colonial past” कह कर वहॉ पर जल रहे यादगार #रौशनी को बुझा दिया।
जो मूल्क इतिहास को मिटाता है वह कभी विश्वगुरू नही बना है, उदाहरण चंगेज़ खॉन और उस का देश मंगोलिया है।