#अज्ज_आँखा_वारिसशाह_नूँ

#अमृता_प्रीतम (1919-2005) की पंजाबी भाषा में लिखी यह लाजवाब रचना 1947 के बंटवारे पर आधारित है, इसमें अमृता प्रीतम #वारिस_शाह (1722-1798) से आग्रह करती हैं कि वो अपनी क़ब्र से उठें और पंजाब की इस हालत पर छंद के छंद लिखें।

इस रचना को समझने के लिए पहले हमें वारिस शाह को समझना होगा कि आख़िर अमृता जी उनसे ही आग्रह क्यों कर रही हैं, 1947 पर लिखी गयी यह रचना वारिस शाह को संबोधित है जिन्होंने #हीर लिखी थी, हीर कहानी है हीर के अपने रांझे से बिछुड़ने की, वारिस शाह ने हीर की पीड़ा लिखी थी, यहाँ अमृता उलाहना दे रहीं हैं कि जब पंजाब की एक बेटी #हीर रोई थी तो तुमने इतना बड़ा ग्रन्थ लिख दिया था तो अब जब पंजाब की लाखों बेटियां रो रहीं हैं तो तुम चुप क्यों हो।

अमृता जी ने यह कविता देहरादून से लौटते समय ट्रेन में लिखी थी, उनकी इस कविता ने देश विदेश में लोगों को बंटवारे के दर्द को महसूस करने के लिए मजबूर कर दिया।

आइए पहले इस कविता को इसकी मूल भाषा पंजाबी में देखें:-

अज आखां वारिस शाह नू कितों क़बरां विचो बोल !
ते अज किताब -ऐ -इश्क दा कोई अगला वर्का फोल !

इक रोई सी धी पंजाब दी तू लिख -लिख मारे वेन!
अज लखा धीयाँ रोंदिया तैनू वारिस शाह नू कहन!

उठ दर्दमंदां दिया दर्दीआ उठ तक अपना पंजाब !
अज बेले लास्सां विछियां ते लहू दी भरी चेनाब !

किसे ने पंजा पानीयां विच दीत्ती ज़हिर रला !
ते उन्ह्ना पानियां ने धरती नूं दित्ता पानी ला !

जित्थे वजदी फूक प्यार दी वे ओह वन्झ्ली गई गवाच!
रांझे दे सब वीर अज भूल गए उसदी जाच!

धरती ते लहू वसिया , क़ब्रण पयियाँ चोण!
प्रीत दियां शाहज़ादीआन् अज विच मज़ारां रोण!

अज सब ‘कैदों ’ बन गए , हुस्न इश्क दे चोर!
अज किथों ल्यायिये लब्भ के वारिस शाह इक होर!

अज्ज आखां वारिस शाह नूं कित्तों कबरां विचो बोल !

हिंदी अनुवाद:-

आज वारिस शाह से कहती हूं
अपनी कब्र में से बोलो
और इश्क की किताब का
कोई नया वर्क खोलो
पंजाब की एक बेटी रोई थी
तूने एक लंबी दस्तांन लिखी
आज लाखों बेटियां रो रही हैं,
वारिस शाह तुम से कह रही हैं
ए दर्दमंदों के दोस्तपंजाब की हालत देखो
चौपाल लाशों से अटा पड़ा हैं,
चिनाव लहू से भरी पड़ी है
किसी ने पांचों दरियाओं में
एक जहर मिला दिया है
और यही पानी
धरती को सींचने लगा है
इस जरखेज धरती सेजहर फूट निकला है
देखो, सुर्खी कहां तक आ पंहुंची
और कहर कहां तक आ पहुंचा
फिर जहरीली हवा वन जंगलों में चलने लगी
उसमें हर बांस की बांसुरी
जैसे एक नाग बना दी
नागों ने लोगों के होंठ डस लिये
और डंक बढ़ते चले गये
और देखते देखते पंजाब के
सारे अंग काले और नीले पड़ गये
हर गले से गीत टूट गया
हर चरखे का धागा छूट गया
सहेलियां एक दूसरे से छूट गयीं
चरखों की महफिल विरान हो गयी
मल्लाहों ने सारी कश्तियां
सेज के साथ ही बहा दीं
पीपलों ने सारी पेंगें
टहनियों के साथ तोड़ दीं
जहां प्यार के नगमे गूंजते थे
वह बांसुरी जाने कहां खो गयी
और रांझे के सब भाई
बांसुरी बजाना भूल गये
धरती पर लहू बरसा
कबरें टपकने लगीं
और प्रीत की शहजादियां
मजारों में रोने लगीं
आज सब #कैदों* बन गये
हुस्न इश्क के चोर
मैं कहां से ढूंढ के लाऊं
एक वारिस शाह और..

(#कैदों हीर का मामा था जिसने हीर को ज़हर दे दिया था)

अमृता जी अब बारी आपकी है, आप आइए और भारत के वर्तमान हालात पर भी कुछ कविताएं लिखिए।

FB Post of 8th February 2021 of Syed Abid Naqvi Saheb

Waris Shah (1722-1798) and Amrita Pritam (1919-2005)