अमृता (1919-2005) और साहिर (1921-1980)
बेजोड़ लेखिका, लाजवाब कवियत्री और बेहद ख़ूबसूरत #अमृता_प्रीतम का जन्म 31 अगस्त 1919 को #गुजरांवाला पाकिस्तान में हुआ उन्हें पंजाबी भाषा की पहली कवियत्री माना जाता है, उनकी “अज्ज आंखां वारिस शाह नूँ” 1947 के बंटवारे पर आधारित एक बेमिसाल रचना है जिसमें वो #वारिस_शाह से आग्रह करती है के वे अपनी क़ब्र से उठें और पंजाब के गहरे दुःख-दर्द को कभी न भूलने वाले छंदों में अंकित कर दें, इसके अलावा उनकी आत्मकथा #रसीदी_टिकट एक बेमिसाल रचना है।
अमृता प्रीतम का विवाह मात्र 16 वर्ष की आयु में #प्रीतम_सिंह से हो गया इस बीच 1944 में उनकी ज़िंदगी में मशहूर शायर #साहिर_लुधियानवी आ गए, दिल्ली और लाहौर के बीच #प्रीतनगर नाम की जगह पर दोनों की मुलाक़ात एक मुशायरे में हुई और शुरुआत हुई इस अनोखे प्यार की, उस वक़्त अमृता दिल्ली में रहती थीं और साहिर लाहौर में रहते, इस दूरी को ख़तों ने भरा, अमृता के खतों को पढ़ें तो मालूम होता है कि वो साहिर के इश्क में दीवानी हो चुकी थीं, अमृता उन्हें मेरा शायर, मेरा महबूब, मेरा खुदा और मेरा देवता कहकर पुकारती थीं।
अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट में अमृता प्रीतम ने साहिर के साथ हुई मुलाकातों का जिक्र किया है, वो लिखती हैं कि, ‘जब हम मिलते थे, तो जुबां खामोश रहती थी, नैन बोलते थे, दोनों बस एक टक एक दूसरे को देखा किए’, और इस दौरान साहिर लगातार सिगरेट पीते रहते थे।
मुलाकात के बाद जब साहिर वहां से चले जाते, तो अमृता अपने दीवाने की सिगरेट के टुकड़ों को लबों से लगाकर अपने होठों पर उनके होठों की छुअन महसूस करने की कोशिश करती थीं, और इसी कोशिश में वो भी सिगरेट पीने लगीं।
1947 में बंटवारे के बाद अमृता दिल्ली आ गईं और साहिर मुंबई में रहने लगे, साहिर ने अमृता को जहन में रखकर न जाने कितनी नज्में, कितने गीत, कितने शेर और कितनी गजलें लिखीं, अमृता साहिर के लिए अपने विवाह को भी ख़त्म करने को तैयार थीं और 1960 में उन्होंने प्रीतम सिंह से तलाक़ ले ली लेकिन साहिर पूरी तरह से अमृता को अपनाने के लिए अपने आप मानसिक रूप से तैयार नहीं कर पाए और 1960 में ही साहिर गायिका सुधा मल्होत्रा के इश्क़ में डूब गए।
अमृता भी अपने लंबे वक्त के साथी पेंटर इमरोज़ के साथ रहने लगीं, 1964 में अमृता और इमरोज़ साहिर से मिलने मुंबई गए और शायद यही उनकी आख़िरी मुलाक़ात थी।
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अमृता और साहिर दोनों ही एक दूसरे को अपने दिलों से निकाल नहीं पाए, एक बार संगीतकार जयदेव, साहिर के घर गए, दोनों किसी गाने पर काम कर रहे थे, तभी जयदेव की नजर एक गंदे कप पर पड़ी, उन्होंने साहिर से कहा कि ये कप कितना गंदा हो गया है, लाओ इसे साफ कर देता हूं, तब साहिर ने उन्हें चेताया था, ‘उस कप को छूना भी मत. जब आखिरी बार अमृता यहां आई थी तो उसने इसी कप में चाय पी थी’।
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अमृता और इमरोज़ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगे थे, इमरोज़ एक जगह बताते हैं कि “अमृता जब कभी मेरे साथ स्कूटर पर जातीं तो वो मेरी पीठ पर अपनी उंगली से कुछ लिखती रहतीं और मुझे अच्छी तरह मालूम था कि वो साहिर साहिर लिखती थीं”।
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अमृता प्रीतम से उनके बेटे ने एक बार उनसे पूँछा कि क्या वो साहिर लुधियानवी का बेटा है इस पर अमृता ने जवाब दिया कि “नहीं, लेकिन काश तुम साहिर के बेटे होते।।
©Syed Abid Naqvi साहेब Post on FB on 6th February 2021