Post of 11th May 2021

आज Azmi Bari साहेब से पता चला जनाब अक़ील हैदर साहेब जो 1980 के दश्क मे पटना से कांग्रेस के एम एल ऐ रहे थे, उन का इंतक़ाल हो गया। पढ कर बहुत अफसोस हुआ। इधर उन के रिश्तेदारों मे चार मौत हुई है। अल्लाह इन के खानदान वालो को सबर दे और हर के जान माल को इस वबा से बचा कर महफ़ूज़ रखे।

अकील हैदर साहेब के बडे भाई रज़ी हैदर साहेब उर्दू अखबार “सदाये आम” निकालते थे जो हर पढे लिखे मुस्लिम घर मे आता था। आज से चालीस साल पहले एक मुस्लिम दानिशवर जो अलीग (AMU) हैं (आज भी FB पर एक्टिव हैं) रज़ी हैदर साहेब से पूछा था “आप के अखबार सदाये आम मे कोई सहाफ़ी (उर्दु पत्रकार) 6 महीना से ज्यादा नही टीक पाता है” उस पर रज़ी हैदर साहेब का जवाब था हम उस को 6 महीना मे ट्रेंड कर हटा देते हैं ताकि वह दूसरे जगह काम करे, मेरा उर्दू का अखबार बहुत ज्यादा दिन मेरे बाद नही चल पाये गा। आज “क़ौमी तंजीम” मे सदाये आम अखबार के ही लोग हैं।

पहले के मुस्लिम खांदान के ऐसे लोग थे जिन को पता था मुस्तकबिल मे क्या होगा? यही वजह है मुस्लिम अच्छा खांदान या दानिशवर कांग्रेस से किनारा हो गया क्योंकि उन को पता था कांग्रेस का संघी गोद अब रंग लाये गा।
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अकील हैदर साहेब के ही रिशतेदार उर्दु के मशहूर अदीब मोशररफ आलम ज़ौकी और उन की शायरह बेगम का दस दिन पहले इंतक़ाल हो गया है। मोशररफ साहेब हर उर्दु-दान की मदद करते थे।जब उन का इंतक़ाल हुआ तो राजिस्थान के शायर जो अभी कतर मे काम कर रहे हैं, हम को कहा चार महीना पहले उन्होंने अपनी दिवान करेक्शन करने को मोशररफ साहेब को भेजा तो मोशररफ साहेब ने कहा वह करेक्शन भी कर दें गे और छपवा भी दे गें।

तेरह साल पहले मोशररफ साहेब मेरे वालिद मोहम्मद बदिउज़्ज़मॉ साहेब से मिलने पटना गये तो ज़मॉ साहेब ने कहा देखो मोशररफ हम ने तो ईक़बाल पर 22 किताब छपवा दिया मगर हम चाहते हैं दूसरो के ख़त जो 20 साल से मेरे नाम आया है वह किताबी शक्ल मे छप जाये।मोशररफ साहेब सारे ख़त को लेगये और 6 महीना बाद जामया मिल्या दिल्ली के प्रोफेसर से Preface लिखवा कर किताब छपवा कर मेरे वालिद साहेब को 100 कॉपी भेजवा दी। मेरे वालिद के इंतकाल (2009) के बाद भी उन की आखरी किताब मोशररफ साहेब ने छपवाई थी।