Post of 19 October 2023

कल जहॉ राष्ट्रपति बाईडेन की इसराइल यात्रा मिडिल ईस्ट में युद्ध की लपटों को हवा दे रही थी, वहीं पुतिन और शी जिनपिंग बीजिंग में न्यू वर्ल्ड ऑर्डर का नया अध्याय लिख रहे थे।

अमेरिका जो मानवाधिकार का अपने को मसीहा कहता है वह इसराइल का अंधे हो कर सपोर्ट कर इस सदी के बदले विश्व व्यवस्था में अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मार लिया।

मिडिल ईस्ट का संकट गहराने के बीच पुटिन अपने यूरोप (यूक्रेन) में बिछाये जाल से कामयाब होते नज़र आ रहे हैं क्योंकि पिछले दस दिन में दुनिया यूक्रेन लड़ाई को भूल गई।

कल शी जिनपिंग अपने हस्ताक्षरित BRI योजना में विदेशी कंपनियों को चीन के विशाल बाजार और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए $100 billion के नए वित्तपोषण का वादा किया और पुटिन के साथ बेल्ट और रोड (BRI) फ़ोरम में एकजुटता देखाते हुऐ ग्लोबल साऊथ (Global South) के लीडर बन्ने में कामयाब हो गये।

Some comments on the Post:

Orhan Rajput

अमेरिका एंड कंपनी की समस्या यह है कि इनको यह नहीं दिख रहा है कि इनकी आर्थिक भागीदारी के प्रतिशत में गिरावट आयी है और लगातार कम हो रही है।इनके प्रभाव में भी लगातार गिरावट आ रही है।

ये 70 का दशक सोच रहे हैं जबकि यह 2023 है।

आज चीन-रूस का गठबंधन इनके मजबूत ऑप्शन कर रूप में मौजूद है।चीन को लेकर मिडिल ईस्ट सहित मुस्लिम दुनिया सकारात्मक है जबकि सोवियत संघ को लेकर नहीं था।

सोवियत संघ के प्रति सकारात्मक न होने की वजह से इनको फायदा मिलता रहा है पर अब नहीं मिलने वाला क्योंकि लोग चीन की तरफ जा रहे।बाइडेन के कल के दौरे और एकतरफा ऐलान से धीरे धीरे ही सही पर निर्णायक रूप से अमेरिका मिडिल ईस्ट को खो देगा।

सोवियत संघ कभी वेस्ट का आर्थिक ऑप्शन नहीं बन सका पर चीन सैनिक ऑप्शन के साथ मजबूत आर्थिक ऑप्शन भी है……..शायद वेस्ट को यह चीन याद नहीं है।

मिडिल ईस्ट भी अब बदल चुका है क्योंकि ईरान-सऊदी अरब आज करीब हैं और लगातार आज एक दूसरे से सहयोग कर रहें हैं ……यह बदलाव भी वेस्ट नहीं समझ रहा है।

कुल मिलाकर वेस्ट 60-70 के दशक की मानसिकता से अभी बाहर नहीं आ पा रहा है जबकि रूस-चीन आज उनके बेस्ट ऑप्शन के साथ दुनिया के सामने खड़े है।

#नोट: बाईडेन, मौत के सौदागर जब से अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, पहला हार का मुँह फ़ॉल ऑफ काबुल में देखा, दूसरा रुस का विस्तारवादी होना यूक्रेन में देखा, अब तीसरा मिडिल ईस्ट में देखें गें।
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Some comments on the Post

Kamal Siddiqui बहुत बढ़िया जानकारी वाला पोस्ट सर, शॉर्ट मेमोरी लॉस वाईडन के सामने अपनी डूबती अर्थव्यवस्था और डॉलर का कमज़ोर होना है। इसलिए ये युद्ध के तरफ़ मजबूरी में धकेल रहा है, यहां से भी जलील होकर पीछे हट जायेगा। झेलेगा इस्राएल क्योंकि इस बदलती मिडिल ईस्ट की राजनीति को समझना इसके बस की बात नहीं है।

Orhan Rajput अमेरिका एंड कंपनी की समस्या यह है कि इनको यह नहीं दिख रहा है कि इनकी आर्थिक भागीदारी के प्रतिशत में गिरावट आयी है और लगातार कम हो रही है।इनके प्रभाव में भी लगातार गिरावट आ रही है।ये 70 का दशक सोच रहे हैं जबकि यह 2023 है।
आज चीन-रूस का गठबंधन इनके मजबूत ऑप्शन कर रूप में मौजूद है।चीन को लेकर मिडिल ईस्ट सहित मुस्लिम दुनिया सकारात्मक है जबकि सोवियत संघ को लेकर नहीं था।
सोवियत संघ के प्रति सकारात्मक न होने की वजह से इनको फायदा मिलता रहा है पर अब नहीं मिलने वाला क्योंकि लोग चीन की तरफ जा रहे।बाइडेन के कल के दौरे और एकतरफा ऐलान से धीरे धीरे ही सही पर निर्णायक रूप से अमेरिका मिडिल ईस्ट को खो देगा।
सोवियत संघ कभी वेस्ट का आर्थिक ऑप्शन नहीं बन सका पर चीन सैनिक ऑप्शन के साथ मजबूत आर्थिक ऑप्शन भी है……..शायद वेस्ट को यह चीन याद नहीं है।
मिडिल ईस्ट भी अब बदल चुका है क्योंकि ईरान-सऊदी अरब आज करीब हैं और लगातार आज एक दूसरे से सहयोग कर रहें हैं ……यह बदलाव भी वेस्ट नहीं समझ रहा है।
कुल मिलाकर वेस्ट 60-70 के दशक की मानसिकता से अभी बाहर नहीं आ पा रहा है जबकि रूस-चीन आज उनके बेस्ट ऑप्शन के साथ दुनिया के सामने खड़े है।

  • Mohammed Seemab Zaman, Orhan Rajput साहेब बहुत शानदार लिखा है,“सोवियत संघ कभी वेस्ट का आर्थिक ऑप्शन नहीं बन सका पर चीन सैनिक ऑप्शन के साथ मजबूत आर्थिक ऑप्शन भी है.शायद वेस्ट को यह चीन याद नहीं है”

Abdul Raheem सर अब National Security Advisor Ajit Doval कह रहे हैं कि पाकिस्तान ने भारत का central asia से land access ब्लॉक किया हुआ है. (हमें partition, और “बाबर की जीत जारी है” याद आ गया). Recently, Petroleum & Natural gas minister हरदीप पुरी तेल पर रो-गा रहे थे कि 39 देशों से ले रहे हैं, फिर भी महंगा पड़ रहा है. दुनिया में इतना सब चल रहा है, लेकिन हमें कहीं नहीं शामिल किया जा रहा. बदलते world order में अशोक, अकबर, नेहरू का देश अकेला है.

Anwar Ali अमेरिका का मानवाधिकार का मुखौटा उतर गया है, अब बहुत से देश उससे पल्ला झाड़ते नज़र आयेंगे। वॉरशिप के दम पर आप किसी समूह को हमेशा नहीं दबा सकते। जिन लोगों को फ़लस्तीन की समस्या से सरोकार नहीं वो हमास के प्रतिशोध को नहीं समझ पायेंगे।
बाइडन के अमेरिकी राष्ट्रपति रहते और बेंजामिन नेतन्याहू के इसरायली प्रधानमंत्री रहते विश्वस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था में सेंध बताती है कि फलस्तीनियों की आज़ादी को अधिक समय तक रोकना फ़िज़ूल होगा। बहुत से यहूदी नेतन्याहू से सहमत नहीं हैं और कुछ दिनों बाद उनका आधुनिक सुरक्षा व्यवस्था से मोहभंग होगा और उनका ‘जिओ और जीने दो’ की नीति की तरफ बढ़ना हो सकता है।

BM Prasad आप नाटो के मिन्स्क समझौते का उल्लंघन कर उसके eastward movement को उसके विस्तारवादी design को क्यों नहीं देख पा रहे.?

  • Mohammed Seemab Zaman, BM Prasad साहेब, आप सही कह रहे हैं नाटो का मिन्स्क समझौता का उल्लंघन का नतीजा है, हम इस को मानते हैं। ट्रम्प ने दुनिया में कोई नई लड़ाई शुरू नहीं किया मगर बाईड़ेन जब से राष्ट्रपति बने यूक्रेन को लड़ाई का सामान देना शुरू किया जिस का नतीजा है कि पुटिन विस्तारवादी हो गये। लाखों औरत और बच्चे यूरोप में शरणार्थी बन गये।बाईडेन के राष्ट्रपति रहते सुनाये गा यूक्रेन में कोई मर्द 25-40 साल का नहीं बचा है, औरतें……..

Rahat Husain बाईडेन, मौत के सौदागर जब से अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, पहला हार का मुँह फ़ॉल ऑफ काबुल में देखा, दूसरा रुस का विस्तारवादी होना यूक्रेन में देखा, अब तीसरा मिडिल ईस्ट में देखें गें। इनशा अल्लाह।हम सब लोग बहूत जल्द देखेंगे।

Pankaj Bhau सर आ गये अच्छे दिन, दशहरा मनाने का सही वक्त अब आया जहाँ असुरी शक्तियां बिखरने वाली है.