“अया सोफिया (Hagia Sophia)”


ये ख़ूब चर्चा हो रही है कि इमारत एक चर्च था, जिसे बाइजेंटाइन राजाओं (ऑर्थोडॉक्स ईसाई) ने बनवाया था ऑटोमन्स ने कब्जा कर लिया था मस्जिद बनवा दी थी। नमाज़ शुरू करा दी थी। वगैरह वगैरह।

लेकिन ये नही बताएगा कि इसे बुरी तरह से नुकसान पहुँचाने वाले लोग ईसाई ही थे (मुसलमान या ऑटोमन्स नही)। 13वी सदी की शुरुआत (1204) में कैथोलिक ईसाइयों (यूरोपियन ईसाईयों) ने ही ढाया था और वजह थी ऑर्थोडॉक्स वर्सेज कैथोलिक।

ये कोई नही बतायेगा कि ऑटोमन्स ही थे, जिन्होंने 1453 में कस्तुनतुनिया फतेह कर शहर को इस्ताम्बुल नाम दिया और उस इमारत को तोड़ा नही, मज़ीद नुकसान नही पहुँचाया बल्कि ये सुल्तान महमद द्वितीय ही थे जिन्होंने उस इमारत के ज़्यादातर हिस्सों की मरम्मत व तामीर करा कर दोबारा वही रौनक बख्शी। तब सुल्तान ने नमाज़ जुमा अदा करानी शुरू की।
इतना जान लीजिए कि नमाज़ यूँही कब्ज़ा कर शुरू नही कर दी गयी थी।

वैसे मौजूदा तुर्किश राष्ट्रपति को भी चुनाव लड़ना है। अपने देश के नागरिकों को अपना वोटर्स और अपना भक्त बनाना सब सियासतदानों की ज़रूरत होती है। इसी लिये कहीं सैकड़ों साल से क़ायम मस्जिद शहीद करवा दी जाती है, कहीं सदियों पहले चर्च फिर बने म्यूज़ियम में नमाज़ पढ़वा दी जाती है। रही बात केस अदालत में होने की तो अदालतें अब इंसाफ़ नही करती, ‘#जनभावना‘ के आधार फैसलों/सरकारी फैसलों को जनता पर थोंपने से जज साहब को कोई एहसास जुर्म भी नही होता बल्कि बहुत मुमकिन है कि तुर्की के जज महोदय को ऐसे जनभावनीय फैसले के एवज तुर्किश ग्रैंडनेशनल #असेंबली का मेम्बर बना दिया जाये, या प्रोविंस रूलर (#गवर्नर) बना दिया जाए। क्योंकि अब बहुसंख्यक हित ही में सरकार हित निहित होता है “सरकार हित ही राष्ट्रहित” होता है और “राष्ट्रहित ही सर्वोपरि हित” होता है और बहुसंख्यक हित से सरकार बनती है। इन सब हितों के बीच ही से अपना हित होता है, है न!!!


मैं बात तुर्की की ही कर रहा हूँ, भाईसाहेब। ज़्यादा मत सोचिये।

Aya Sophia (or Hagia Sophia) in Istanbul Turkey #Travelphotography ...
AYA SOFYA