POST ON FB 17TH AUGUST 2021

अज़ान ए सुबह ए आशूरक्या अजब कि सर ज़मीन ए कर्बला ने अपनी तख़लीक़ से पहले ख़ुदा की बारगाह में यह अर्ज़ किया हो कि ऐ मेरे पैदा करने वाले अगर हुसैन का ख़ून ए मुक़द्दस मेरी ख़ाक ओ ज़र्रात में जज़्ब होना मेरा मुक़द्दर बन चुका है तो फिर मेरे सब्र ओ क़रार का तू ने क्या इंतज़ाम फ़रमाया है ? क्या यह शर्मनाक और दर्दनाक वाक़या मुझ को हिला देने को काफ़ी नहीं ? तो परवरदिगार ए आलम ने फ़रमाया होगा कि हाँ, हम ने तुझे बर्दाश्त की क़ुव्वत बख़्श्ने के लिए, सुबह ए अशूरा तेरे लिए एक ऐसा इंआम मुक़र्रर कर रखा है जो अब तक इस ज़मीन को मुयस्सर नहीं आया …

बेचैनी और बेक़रारी के साथ, सर ज़मीन ए कर्बला, आशूर की सुबह की, रोज़ ए अज़ल से मुंतज़िर थी। जब 9 मुहर्रम उल हराम इकसठ हिजरी का दिन गुज़रने के बाद रात ने उस पूरे ख़ित्ते को अपनी काली चादर में समेट लिया तो वादी ए कर्बला ने एक आवाज़ सुनी, जो चरागों को बुझाने के बाद, अपने साथ आने वाले जाँ नसारों से कह रही थी कि कल की सुबह क़यामत की सुबह होगी, शहादत की सुबह होगी, बे सर ओ सामानी की यह सुबह अपने दामन में मौत और तबाही ले कर तुलू हो रही है… तुम में से जो चाहे उसे इजाज़त है कि अपनी सलामती की ख़ातिर, अपने घर वालों की सलामती की ख़ातिर, वापस चला जाए…. यक़ीन जानो तुम में से किसी से भी इस पर जवाब तलब नहीं किया जाएगा ।

सर ज़मीन ए कर्बला ने यह आवाज़ पहचान ली कि यह हुसैन इब्न ए अली की आवाज़ है जो तीन दिन की भूक, प्यास और ख़ैमों में बच्चों की तरफ़ से प्यास की शिद्दत में दिल दहला देने वाली आवाज़ें सुनने के बावजूद पहले से कहीं ज़्यादा पुरअज़्म और बाहौसला है।

सर ज़मीन ए कर्बला, वतन से दूर, इस मुसाफ़िर के हौसले पर हैरान रह गई, कि आने वाला कल जब मैदान ए जंग में बदबख़तों की अकसरियत के मुक़ाबला में मुट्ठी भर इंसानों का यह दस्ता, जंग का एक अजीब ओ ग़रीब मंज़र पेश करने वाला है, यह कैसा इंसान है जो अपने साथियों की तादाद में इज़ाफ़ा की जगह कमी चाह रहा है? होना तो यह चाहिए था कि यह मुसाफ़िर अपनी मदद के लिए फ़ौज तलब करने बहुत पहले अपने क़ासिद भेज चुका होता। लेकिन आज यह अपने साथियों को अपनी मर्ज़ी और ख़ुशी से यहाँ से चले जाने को कह रहा है…………… और फिर सर ज़मीन ए कर्बला ने अपने कान क़दमों की वोह चापें सुनने के लिए लगा दिए जो इस महफ़िल से उठ कर, जान ओ माल की हिफ़ाज़त की ख़ातिर, वापस जाने वालों के क़दमों से पैदा होतीं …. उस के कान जाते हुए क़दमों की आहट के मुंतज़िर रहे और उस की हैरतें बढ़ती रहीं कि यह कैसे लोग हैं जिन्हें अपनी जानों की कोई पर्वाह नहीं ……….. उसे ऐसी कोई आहट सुनाई न दी ……… हाँ, लिबासों की सरसराहट और जिस्म की हरकतों से माहौल में जो हलचल पैदा हो रही थी ….. उनके हिलने जुलने से चाँद की मद्धम रौशनी के असर से बनते ज़ावियों में जो तब्दीलियाँ हो रही थीं, उस से सर ज़मीन ए कर्बला ने यह महसूस किया कि उन में कोई अपने हथियारों का मुआईना कर रहा है, कोई ख़ैमों के गिर्द, पहरादारी के फ़राएज़ अंजाम दे रहा है और कोई आजज़ी और इंकसारी के साथ अल्लाह के सामने सजदे में पड़ा है……… ये कैसी मुक़द्दस ख़ामोशी है ………. शायद सर ज़मीन ए कर्बला इस जलाल और हैबत की ताब न लाकर अपने को ख़ुद में समेट लेती लेकिन उसे सुबह के नमूदार होने का इंतेज़ार था, कि उस वक़्त उसे वोह इं’आम मिलने वाला था जो ख़ालिक़ ए कायनात उस के लिए चुन चुका था।

अभी सुबह की पौ न फूटी थी कि फ़ज़ा में एक ऐसी सहरअंगेज़ आवाज़ उभरी जिस की दिलकशी सर ज़मीन ए कर्बला तो क्या इस पूरी कायनात को, आज सह पहर पेश आने वाले हादसे को बर्दाश्त करने की क़ुव्वत अता कर गई।

यह दिलकशी उस अज़ान की थी, जो हज़रत हुसैन के फ़र्ज़न्द अली अकबर के होंटों से निकली थी … सुनने वालों ने यह अज़ान सुनी तो ख़ुद से पूछा कि अज़ान पुकारने वाला कौन है? उन के दिलों ने जवाब दिया कि अली अकबर के पैकर में मुहम्मद (ﷺ)का शबाब पलट आया है। यही वह अज़ान थी जो सरज़मीन ए कर्बला पर इं’आम ए इलाही बन कर नाज़िल हुई और यह उसी अज़ान की तासीर थी जिसे सुनने के बाद सर ज़मीन ए कर्बला को वोह सब्र और सुकून मुयस्सर आया कि जब ज़ैनब के मासूम और कमसिन बच्चों की लाशें ज़मीन पर तड़प रही थीं, सर ज़मीन ए कर्बला पुरसुकून रही। जब हज़रत क़ासिम इब्न ए हसन ने शहादत पाई और हुसैन का दिल ख़ून के आँसू रो दिया तो सरज़मीन ए कर्बला ख़ामोश रही। जब हुर्मला ने छे माह के अली असग़र के हलक़ को अपने तीर का निशाना बनाया तो सरज़मीन ए कर्बला पुरसुकून रही। यहाँ तक कि जब हुसैन का जिस्म ज़ख्मों से चूर उस ज़मीन पर गिर पड़ा और शिम्र ज़िल जौशन ने हुसैन के सर को तन से जुदा कर दिया और फ़ज़ा में “क़ोतिलल हुसैना यौमिन” (आज हुसैन को क़त्ल कर दिया गया) का नौहा गूंज उठा तब भी सर ज़मीन ए कर्बला साकित रही क्यूँकि उसे आज सुबह हासिल होने वाला इं’आम इन तमाम सानहों को बर्दाश्त करने की क़ुव्वत अता कर चुका था ……..