मुसलमान सदियों से ख़ुशनवीसी (calligraphy) के अलम्बरदार रहे हैं। क़ुरान शरीफ़ के हज़ारों नुस्ख़े उनकी हुनरमंदी और ख़ुशनवीसी की मिसाल हैं। एक वक़्त था गली गली में ऐसे हुनरमंद लोग रहा करते थे और अपनी खूबसूरत लिखावट के जौहर दिखाया करते थे … ये Cones, Cubes और Circles का वह ज़ौक़ रखते थे कि दुनिया में इसकी मिसाल नहीं मिलती। वो अब-जद (Urdu/arabic alphabets) से इश्क़ करते थे …. उन की मस्जिदों, ख़ानक़ाहों को देखें, उनके फ़्रामीन (राजकीय आदेश) और सिक्कों और मोहरों को देखें उनकी क़ब्रों के कतबों (epitaph) को देखें, उनके घरों और महलों की दीवारों पर लगे wall hangings को देखें….. ज़िंदगी और मौत का कोई मौक़ा, ख़ुशी और ग़म का कोई लम्हा ऐसा नहीं जहां उन के क़लम ने हसीन ओ जमील वर्णमाला को मोतियों की तरह न पिरोया हो … लकड़ी के तख़ते हों, काग़ज़ के पन्ने या पत्थर के टुकड़े, उनके हाथों ने उन पर लाफ़ानी नक़ूश छोड़े हैं … क़ुरान शरीफ़ की किताबत एक से बढ़ कर एक खूबसूरत तरीक़े से की है।

इन फ़ोटो में क़ुरान शरीफ़ की calligraphy के नमूने हैं जो पैग़म्बर ए इस्लाम सल्ल अल्लाह ओ अलैह ए वसल्लम के ज़माने से शुरू हो कर, हज़रत अबु बक्र, हज़रत उस्मान, हज़रत अली, हज़रत हसन बिन अली, हज़रत हुसैन बिन अली (रिज़वान उल्लाह ता’आला अजमईन (peace be upon them all) से होते हुए बनु उमइया, बनी अब्बास और फ़ातमी दौर में, तुर्की उसमनी दौर में, महमूद ग़जनवी, शहाबुद्दीन ग़ौरी, तैमूर, अल्तमश, तुग़लक़ के दौर से होते हुए, दौर ए मुग़लिया में बाबर से लेकर आख़री मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र तक मुख़्तलिफ़ अन्दाज़ में लिखे गए … उन लिखने वालों में एक बड़ी तादाद भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वालों की भी थी जैसे, ख़लीक़ टोंकी, मोहम्मद यूसुफ़ क़ासमी (जिन्होंने ने अल्फ़ी क़ुरान की किताबत की), मुल्ला बाक़र कश्मीरी, अब्दुल्मजीद लाहौरी, ताजउद्दीन लाहौरी, ख़ुर्शीद आलम, यूसुफ़ लाहौरी, शेर ज़माँ लाहौरी, मोहम्मद सलीम लाहौरी, सैयद अनवर हुसैन सियालकोटी, बशीर लाहौरी, सैयद अहमद, तारिक़ आज़ाद, मोहम्मद क़ासिम गड़करी, मोहम्मद आज़म लाहौरी, इब्न ए कलीम, और सादिक़ैन मरहूम के नाम माश’हूर हैं

ये तस्वीरें, अल्फ़ी क़ुरान शरीफ़ के आख़री pages से ली गई हैं । इनमें तीन पेज में तो क़ुरान की सूरतों (chapters) की लिस्ट है.. जो अल्फ़ी क़ुरान शरीफ़ के आख़िर के pages की हैं। इस में 114 प्रकार के fonts में “बिसमिल्लाह अर्रहमान अर रहीम” लिखा हुआ है। अल्फ़ी क़ुरान शरीफ़ की ख़ासियत ये है कि इसमें हर लाइन की शुरुआत “अलिफ़” से होती है और हर पेज में 23 lines हैं, जो इस तरफ़ इशारा करती हैं कि क़ुरान शरीफ़ 23 सालों में नाज़िल हुआ (एक फ़ोटो इस page की भी है) …..मैं ने पहली बार ये क़ुरान शरीफ़ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मौलाना आज़ाद लाइब्रेरी में शायद 86-87 में क़ुरान एग्ज़िबिशन में देखा था