Post of 3rd September 2023
मुस्लिम की सयासत सिर्फ मुस्लिम समाज ही समझता है और दुनिया मे उस के अलग अलग वक्त मे मुख़्तलिफ़ सयासी पहलू होते हैं।
अफ्रिका के “फॉल ऑफ खारतुम” (सुडान) का मामला अलग है और पश्चिम अफ्रिका के देशो बुर्किना फासो, माली, निजेर, गैबोन आदि का मामला अलग है।चुन चुन कर फ्रांस को पश्चिम अफ्रिका से तुर्की या दूसरे मुस्लिम देशों ने निकाल दिया।किसी ने ग़ौर किया है, एक बैक यह क्यो शुरू हो गया?
फ्रांस के राष्ट्रपति मैकरोन फ्रिडम ऑफ स्पीच के नाम पर शार्ली एब्डो से कार्टून बनवा कर छपवा रहे थे और “इस्लाम मे परिवर्तन” की आवश्यकता की बात कहने लगे थे।कोर्ट से सज़ा पाये लडके को मैकरोन की पुलिस छोड देती है और वह शार्ली एब्डो के ऑफ़िस पर बम मारता है और पूरे दुनिया मे मुस्लिम को “आतंकी” कहा जाने लगता है।
देख रहे हैं न पिछले तीन साल मे अफ्रिका के 8 देशो से मैकरोन के फ्रांस को चुन चुन कर निकाल दिया गया।फ्रांस को अपने 40 Nuclear Plant और 60 Nuclear submarine के लिए Uranium मिलना बंद हो गया, अब तो दो साल मे फ्रांस का यह सब प्लांट और पंडूब्बी बंद हो जाये गा।
बहुत सी बात मे silent reaction किया जाता है, जिस का एक एतिहासिक उदाहरण “फॉल ऑफ काबूल” है और दूसरा फ्रांस का अफ्रिका से निकाला जाना है, जो एक आम आदमी नही समझ पाये गा जब तक की दुनिया देखा और समझा नही होगा।
#नोट: इसी वजह कर हम लिखते हैं कि संघ या संघीतकार लोगों को दुनिया की राजनीति समझनी है या विश्वगुरू बन्ना है तो मुस्लिम समाज के पढे लिखे, ख़ानदानी मुस्लिम के घर शाम मे जा कर #चाय पिया करें।
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Some comments on the Post
Wasim Saeed Sir is post Ye aakhri chand lines bahut be misaal he … Padhke Feel well hua … Shukriya
#नोट: इसी वजह कर हम लिखते हैं कि संघ या संघीतकार लोगों को दुनिया की राजनीति समझनी है या विश्वगुरू बन्ना है तो मुस्लिम समाज के पढे लिखे, ख़ानदानी मुस्लिम के घर शाम मे जा कर #चाय पिया करें।
- Mohammed Seemab Zaman, Wasim Saeed साहेब, यह सही बात है। मुस्लिम बुद्धिजीवि या पढे लिखे दुनिया देखे लोग “हर फितना पर प्रतिक्रिया” नही करते हैं क्योकि वह जानते है कि अगर वह react करे गें तो उस से बडा फितना पैदा हो जाये गा। वह वक्त के इंतजार मे रहते हैं या चुप रह जाते हैं। मगर आम आदमी उन को गाली देने लगता है कि यह कुछ नही बोले, वह कुछ नही बोला।
- Anish Akhtar, Mohammed Seemab Zaman ऑब्जर्वर की भूमिका में लोप्रोफाइल रहना वक्त की नजाकत है ..साहब कुछ साल पहले (काँग्रेस सरकार के समय)मुझे अहमद पटेल साहब से मिलने का मौका मिला मैं उनसे मिलने गया तो देख कर दंग रह गया कि इतना ताकतवर इंसान इतना लोप्रोफ़ाइल जिस समय मैं उनसे मिला तो बाहर 3 CM ओर कई पूर्व केंद्रीय मंत्री बैठे है मुलाकात के लिये लेकिन पटेल साहब बिल्कुल साधारण
- Rashid Saif, Mohammed Seemab Zaman साहेब इस पोस्ट पर ज्यादातर कॉमेंट बहुत अच्छे हैं! लेकिन जो आपने लिखा यही सच्चाई हैआपका कॉमेंट एक आम आदमी के सिर के ऊपर से जायेगा!
Salim Khan आपने सही कहा कि मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ राब्ता बनाए रखना चाहिए क्योंकि हम कभी गलत और नाइंसाफ़ी के साथ बहुतायत में खड़े नहीं होते और ना ही किसी ज़ालिम के लिए झण्डा यात्रा निकालते क्योंकि आखिरत पर यकीन रखने वाले हैं तो बचने का चांस भी नहीं होता।
Zeenat Khan अब तो ख़ैर नई नस्ल के मुस्लिम नौजवानों को भी अपने घर के बुज़ुर्गोँ के साथ बैठना चाहिए या मोहल्ले के बड़े बूढ़े के पास क्यों कि यह नस्ल भी नहीं जानती ख़ामोश सियासत कया होती है या कब चुप रहना है कब आवाज़ बुलंद करनी है..
- Mohammed Seemab Zaman बहुत सही कहा है, अब तो मुस्लिम नोजवानो को भी बुज़ुर्गो के साथ बैठने की जरूरत हो गई है क्योकि मोबाईल/वीडियो ने सब को गुमराह कर दिया है।
Kamil Khan सर बहुत अच्छी पोस्ट और ये पोस्ट मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम के लिए ज़रूरी थी, गैर मुस्लिम को मुस्लिम सियासत को कैसे देखना चाहिए ये बात आप ने बहुत स्पष्ठ तरीक़े से समझा दी पर ये जो मुस्लिम लोग आपस में फिरक़े की सियासत खेलते हैं उन्हें भी इस पोस्ट को गैर मुस्लिम की ही तरह पढ़ना चाहिए, कोई ईरान का समर्थक हो इस में कोई बुराई नहीं पर अगर वो saudi अरब को दुश्मन समझता है, तो वो फिर मुस्लिम की सियासत को नहीं समझता सिर्फ फिरक़ा समझता है, उसी तरह कोई saudi अरब को समर्थन करता है मगर ईरान का नाम आते ही उसे ग़ुस्सा आ जाता है, तो ईसे अंध भक्ती कहते हैं.
Gafoor Hussain आज फ्रांस के हालात पर गालिब साहब का एक शेर याद आया
“बना है शाह का मुसाहिब फिरे है इतराता
वरना शहर में गालिब की आबरू क्या है“
Mir Talib Ali संघ के लिए बेहतरीन मशविरा, मगर इन लोगों का दिल भी अंधा है , रोशनी कहाँ से पायेगें। जब मुस्लिम दुनिया से इन्हें भी धकेल दिया जायेगा तब होश ठिकाने आयेगा।
Faysal Khan वैसे सच पूछिए ज़मां सर जिन आम मुसलमानों को आप सियासत के शऊर वाला बता रहे हैं उन आम मुसलमानों के सियासी शऊर को तेहरीकी और ईरानी उर्दू काली मीडिया ने कब का उचक लिया जिनकी वजह से मुसलमानों लगता है बल्कि यकीन है कि इस दुनिया को यहूदी चला रहे हैं, ये तो अल्लाह बड़ा कारसाज़ है जिसने हमें बरवक़्त अरब कंट्रीज़ के हुक्मरान ऐसे नायाब दूरंदेश और बाशऊर दे दिया के जिनकी दूरंदेशी और लगातार ख़ामोश काविशों की बदौलत आज सारा मामला पलट गया है।
अलबत्ता आप जैसे इक्का दुक्का ही होंगे करोड़ों में, ज्यादातर तो औरिया मकबूल जान जैसे ही हैं
- Mohammed Seemab Zaman, Faysal Khan साहेब बिल्कुल सही कहा मुसल्मानो को “तेहरीकी और ईरानी उर्दु और काली मीडिया ने कब का उचक कर” बर्बाद कर दिया। यह बात हम हमेशा लोगो को बीत चीत मे बोलते हैं। अब तो मक़बूल जान और उसी तरह के हजारों वीडिव सून कर सयासत और इस्लाम जान रहा है। अच्छी, मुस्तनद किताब पढना तो दूर देखा तक नही है।
Javed Hasan Indian Muslim are assets not a liability for india
भारतीय मुस्लिम, जियोपोलिटिक्स मुस्लिम जगत का केंद्र होने के कारण बाकि समाज से ज्यादा दिलचस्पी लेता है जिसकी वजह कर जानकारी भी ज्यादा रखता है लेकिन आज तो सत्ता पक्ष में एक भी मुस्लिम लॉ मेकर नहीं है
- Mohammed Seemab Zaman सही कहा दस साल से सत्ता पक्ष मे एक बाईज़्जत मुस्लिम नही है, एक था भी तो MeToo हो गया। आज श्रीलंका बर्बाद हो कर अपने विदेशनीति को “मीडिल ईस्ट बेस्ड” बनाने का एलान कर रहा है, कभी यह एशिया की fastest growing economy थी मगर आज जमीन चीन को बेच कर फिर वही मुस्लिम के तरफ लौट रहे हैं।