हाफ़िज़ शिराजी ईरान के मशहूर सूफ़ी शायर गुज़रे हैं। इन की पैदाईश और क़ब्र ईरान का मशहूर शहर शिराज़ है।दीवान ए हाफ़िज़ की एक ख़ूबसूरती ये भी है कि कई अश’आर का एक मिसरा अरबी में है और दूसरा फ़ारसी में … “कि इश्क़ आसाँ नमूद अव्वल वले उफ़ताद मुश्किल्हा “…
उन के शायरी की किताब दिवान हाफ़िज़ सदियों से बहुत मशहूर किताब है। उन के “कुछ शेर” पर लोगो को ऐतराज़ था मगर यह बहस के लायक मेरे जैसा आदमी नही था, वह बहुत बडी बडी हस्तियॉ थी, जिस मे शायर अेलामह इकबाल भी थे।
लोग हाफ़िज़ के रूहानी (spiritual) इल्म के इस तरह क़ायल है कि आज भी उन की दिवान से “फ़ाल” निकालते हैं। मोगल बादशाह जहांगीर जब किसी बडे काम के लिए निकलता था तो उस के पहले हाफ़िज़ की दिवान से फाल निकालता था।
कहते हैं कि किसी बादशाह के यहाँ चोरी हो गई और रिवाज के मुताबिक़ जब दीवान ए हाफ़िज़ से फ़ाल निकालने पर बात पहुँची तो महल की एक नौकरानी अपने हाथ में लैम्प ले कर खड़ी थी … जिस मिसरे पर उँगली पड़ी वो यह था “ चे दिलावर अस्त दुज़दे कि ब कफ़ चराग़ दारद (चोर कितना बहादुर है कि हथेली पे चराग़ लिए है ) उस कनीज़ के हाथ से लैम्प नीचे जा गिरा …