इकबाल का नाम उन की माँ ने “शेख मोहममद इकबाल” रखा था। जब वह दो साल के थे तो किसी बिमारी की वजह कर उन के कान मे जोंक लगाया गया था जिस की वजह कर उन के दाई आँख की रौशनी हमेशा के लिये खतम हो गई, मगर बाईं आँख की रौशनी बहुत तेज थी।इकबाल पेशे से बैरिसटर थे और लाहौर हाई कोरट मे परैकटिस करते थे।
आज अल्लामा इक़बाल का यौम ए वफ़ात है। अल्लाह इक़बाल की मग़फ़िरत फ़रमाए।इक़बाल सिर्फ़ एक शायर नहीं थे बहोत कुच्छ थे, इक़बाल ने उर्दू शायरी को मेराज बख़्शी, इक़बाल फ़ारसी में अपनी बातें उर्दू से बेहतर बयान कर पाते थे। इक़बाल हाफ़िज़ शीराज़ी से ज़ियादह मौलाना जलालुद्दीन रूमी से अक़ीदत रखते थे, बल्कि इक़बाल ने अपनी किताब असरार ए ख़ुदी में हाफ़िज़ की आलोचना की जिसकी वजह से मुसलमानो ने इक़बाल का बहुत विरोध किया फिर इक़बाल ने बहुत कुच्छ जो हाफ़िज़ की आलोचना में अपनी किताब में लिखा था उसे हटा दिया।
इल्म उल इक़तिसाद (Economics) prose में इक़बाल की पहली किताब है।उस वक़्त इक़बाल गवर्न्मंट कॉलेज में Assistant Professor थे, ये किताब 1903 या 1904 में छपी थी। इस किताब के फ़ॉर्वर्ड्ज़ में इक़बाल ने अपने उस्ताद टॉमस आर्नल्ड का शुक्रिया अदा करते हुए लिखा है कि ये किताब आर्नल्ड की ही तहरीक पर लिखी गई है और इक़बाल ने इस किताब को W. Bell जो कि उस समय Education Department में डिरेक्टर थे, उनके नाम डेडिकेट किया है। Mr Bell भी गवर्न्मंट कॉलेज लाहोर में प्रिन्सिपल और philosophy के प्रफ़ेसर रह चुके थे।इस किताब के छपने से पहले मौलना शिबली ने भी इसे एक नज़र देखा था और कहीं कहीं इस किताब की ज़ुबान के मताल्लिक़ इक़बाल को मशवरे भी दिए थे।इस किताब में जो एक ख़ास बात है वो यह कि इक़बाल population growth पर अपनी राय रखते थे और उन वसायल को अडॉप्ट करने का सुझाव दिया है जो आबादी को रोकते हैं।
असरार ए ख़ुदी और रमूज़ ए बेख़ुदी से बढ़कर इक़बाल ने मेहनत अपने उन सात ख़ुत्बात के लिखने में की थी जिन्हें इक़बाल के Seven lectures या The Reconstruction of Religious Thought in Islam के नाम से जाना जाता है, इन 7 लेक्चर्ज़ में से 3 लेक्चर्ज़ इक़बाल ने मद्रास में दिए थे । इक़बाल ने सर रॉस मसूद से जो सर सैयद के पोते और इक़बाल दोस्त थे उस वक़्त अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चैन्सेलर थे उन्हों ने इक़बाल से दरख़वास्त की थी अलीगढ़ में लेक्चर्ज़ देने की। लिहाज़ा इक़बाल ने अलीगढ़ में 6 लेक्चर्ज़ दिए नोवेम्बर 1929 में। सातवाँ लेक्चर इक़बाल ने 1932 में लिखा इंग्लंड में और उनकी ये किताब अपने 7 लेक्चर्ज़ सहित 1934 में दूसरी बार आक्स्फ़र्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से छपी। पहले किताब लाहौर से 1930 में छप चुकी थी लेकिन उस वक़्त इस में सिर्फ़ 6 लेक्चर्ज़ थे। अपने दक्षिण भारत के सफ़र में इक़बाल ने मद्रास, बैंगलोर , हैदराबाद और मैसूर का सफ़र किया था। अपने इन लेक्चर्ज़ में इक़बाल ने इस्लाम के जिन इशूज़ को ऐड्रेस किया है उनपर पिछले 600 सालों में कुच्छ ठीक से काम नहीं किया गया था ये उसी दिशा में इक़बाल की guidelines थीं। अपने मैसूर के सफ़र में इक़बाल शहीद टीपू सुल्तान की क़ब्र की ज़ियारत को भी गए थे 11 जनवरी 1929 को। इक़बाल को टीपू सुल्तान से भी बड़ी अक़ीदत थी। इक़बाल ने टीपू सुल्तान पर उर्दू में भी नज़्म लिखी है। जब इक़बाल टीपू सुल्तान के मज़ार से वापस लौट रहे थे तो कार में सफ़र के दौरान उन्हों ने कुच्छ फ़ारसी अश’आर कहे जिसमें एक शेर ये है
در جہاں نتواں اگر مردانہ زیست
ہمچو مرداں جاں سپردن زندگیست
(अगर दुनिया में मर्दों की तरह ज़िंदा रहना मुमकिन न हो तो मर्दों की तरह जान क़ुर्बान कर देने में ज़िंदगी है)
मोहम्मद बदिउज्जमा साहेब ने हमेशा कहा इक़बाल का कलाम फारसी मे ज्यादा अच्छा है। उन्होने अपनी एक किताब मे इक़बाल के सारे लिखे और छपे हुऐ किताब की एक लिस्ट दी है।हो सकता है इस पढ कर नवजवान लोग इक़बाल को पढने लगे और इल्म मे एजाफा करे और कोई नया इक़बाल हो।
#मज़मूआ कलाम-उर्दू
*बांगदरा (1924)
*बाले जिबरिल (1935)
*ज़रबे कलीम (1936)
*अरमोग़ाने हेजाज़ (1938)
#मजमूआ कलाम-फारसी
*इसरारे खुदी (1915)
*रमूज़े बेख़ुदी (1918)
*पेयामे मशरिक़ (1922)
*ज़बूरे अजम (1927)
*पिस चे बायेद कर्द ए अक़वामे मशरिक़ (1936)
#दिगर तसनिफात
*इल्म उल ऐक़तसाद (1903) (Economics)
*तारीखे हिन्द (मिडिल स्कूल के लिये, 1913)
*तालिमे नेसाब (उर्दू कोर्स, 1924) छठ्ठा और आठवें केलास के लिये
*तशकीले जदिद एलैहियात इस्लामिया (1930) (The reconstruction of religious thought in Islam)
(This was posted on FB dated 21 April 2020 by Mozaffar Haque)
22/04/2020 at 12:33 PM
सीमाब भाई. बहुत शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का … अल्लाह ख़ैर अता फ़रमाय !
22/04/2020 at 12:54 PM
Achchi article ban geya. app ka keya kheyal hai? Iss ko bahut log nahee janta ho ga.Iss me sub baat aak jagah hai
23/04/2020 at 8:19 AM
Wah bhai Muzaffar, bahot qoob.
Very succinct and well captured brief on the great Allama. We need to know this great personality so we may get in inspired by his work and act in this moment of need.
If you can write the same in english also, will be good so our youth can benefit from your biography of Allama Iqbal. Sadly, they don’t know much about him .