Post of 19th August 2021
जब कोई नई सरकार बनती है तो कोई कांड कर के दुनिया उस के नेता का “इमतेहान” लेती है, या वह नेता कोई कॉड कर के खूद अपनी ताकत देखा देता है।
कल अशरफ ग़नी का कहना के ” अगर हम राषट्रपति भवन छोड कर नही निकलते तो हमें मार दिया जाता और मूल्क दूसरा यमन और सिरिया हो जाता।हम को जब सक्यूरीटी गार्ड लेकर जाने लगे तो पैलेस मे कुछ लोग घुसे जो अफगानी नेशनल ज़बान नही बोल रहे थे और हम को खोज रहे थे।” इस खबर पर गौर करने की बात है वह कौन सा मूल्क था जो अफगानिस्तान को अब दूसरा यमन या सिरिया बनाना चाहता था?
हम बहुत दिनो से लिख रहे है, सिरिया ने दुनिया के मूलको की सयासत बदल दी और अब यह एशिया और ग्रेटर मिडिल इस्ट का युग हो गा।मगर कुछ देश के बूद्धिजिवी या नेता या आम आदमी को समझ मे नही आया और वह अपने पूराने सोच पर कायम रहे।
जो कुछ अफगानिस्तान मे हुआ है यह कोई छोटा वाक्या नही है। तालेबान की हकूमत बने और कामयाब हो या न हो वह एक अलग मुद्दा है मगर यह ग्रेटर मिडिल और सेंट्रल एशिया की एक कामयाब स्ट्रेटेजी है जिस ने यूरोप और अमेरिका के मार-काट के विदेशनीति का अंत कर दिया।ट्र्म्प का लोगो को शुक्रगुज़ार होना चाहिये कि सिरिया, लिबिया, मेडिटेरेनियन, आजरबाईजान के बाद तुर्की की strategic role को अफगान मे सफलता मिली।
कल अरदोगान ने कहा है कि तुर्की के विदेशनीति मे एक बहुत पूराना महावरा है “if you want peace, prepare for war”.
कल इथोपिया के प्रधानमंत्री अबे अहमद तुर्की पहुँचे और बहुत सारे समझौता पर हस्ताक्षर किया। पिछले दस साल मे अफ्रिका के आधे से ज्यादा मूल्कों मे तुर्की ने सैन्य, कृषि, इंडस्ट्री, ट्रेड का समझौता कर दोस्त बना लिया है। दो दिन पहले यूऐई के रक्षा मंत्री तुर्की जा कर पॉच साल से चल रहे खराब रिश्ते को सुधारने की पहल की है।
करोना के बाद, अगले साल से दुनिया की सोंच, अर्थव्यवस्था, विदेशनीति अगले पचास साल के लिये बदले गी। अगर ईरान या दूसरा देश अपना “चाल-चरित्र” नही बदला तो इन देशो का हाल बहुत बूरा होगा।