Post on 20 July 2024 by Khursheeid Ahmed Saheb
हम सब जानते हैं कि हज़रत इब्राहीम के दो बेटे थे. बड़े बेटे का नाम इस्माईल और छोटे बेटे का इसहाक था. इन्हीं छोटे बेटे इसहाक के बेटे याकूब थे, याकूब का दूसरा नाम इसराइल था, इनकी 12 संतानें थीं. इन 12 संतानों के नाम पर इस्राइल के 12 कबीले वजूद में आए.
*बड़े बेटे इस्माईल के कितने बेटे थे इस का ज़िक्र कुरआन में नहीं है, लेकिन तौरेत के अनुसार 12 बेटे थे. इन 12 बेटों से कबीले शुरू हुए जो आगे चलकर हज़रत इस्माईल की औलाद में एक साहब अदनान हुए. यह बहुत शान व शौकत वाले थे काफी मशहूर सरदार थे इन के बाद हज़रत इस्माईल से जितने कबीले वजूद में आए थे सब को इसमाइली के बजाय अदनानी कबीले कहा जाने लगा
*आज के समय अरबों में दो तरह के कबीले हैं नंबर एक अदनानी नंबर दो क़हत़ानी अदनानी का संबंध हज़रत इस्माईल से है और क़हत़ानी का संबंध उन अरबों से है जो हज़रत इस्माईल की औलाद नहीं हैं वहां पहले से आबाद थे मदीना के अंसार कहतानी थे.
इन अदनानी कबीलों में एक कबीला काफी मशहूर हुआ उस का नाम बनू किनाना था. बनू किनाना की एक ब्रांच हुई जिस का नाम कुरैश कबीला पड़ा हमारे नबी मोहम्मद ﷺ इसी कबीला कुरैश से थे.
*कबीला कुरैश के लोग मक्का में रहते थे लेकिन जब उनकी संख्या बढ़ी तो वह अरब के दूसरे इलाकों में फैल गए.
मक्का में जो कबीला कुरैश के लोग बाक़ी बचे इन में एक सरदार थे उन का नाम कुसई قصی था. कुसई ने कोशिश की कि कुरैश कबीला के लोग जो इधर उधर फैल गए हैं उन्हें वापस मक्का लाया जाए. अपनी कोशिश में वह बड़ी हद तक कामयाब रहे, जिस की वजह से उनकी इज़्ज़त काफ़ी बढ़ गई.
कुसई का जब इंतकाल होने लगा तो उन्होंने अपनी जिम्मेदारियां अपने बेटों में बांट दी. किसी को सरदारी दी, किसी को खाना काबा की चाबी, किसी को दूसरी जिम्मेदारी. उनके बड़े बेटे का नाम अब्द मुनाफ था जिन्हें कुरैश की सरदारी और दूसरी कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां मिलीं.
*अब्द मुनाफ के चार बेटे हुए जिन में दो जुड़वां बेटे थे एक का नाम हाशिम और दूसरे का नाम अब्द शम्स था. हमारे नबी मोहम्मद सल्ललाहू अलैहे वसल्लम ( 570-632 AD), हज़रत अली (601-661) और रसूल अल्लाह के चचा हज़रत अब्बास (568-652). यह सब हाशिम की नस्ल से हैं इस लिए बनू हाशिम या हाशमी कहे जाते हैं.
*अब्द शम्स की औलाद बनू उमैया कहे जाते हैं. अब्द शम्स के बड़े बेटे का नाम उमैया था. हज़रत उस्मान (576-656), हज़रत मुआविया और मरवान इन सब का संबंध उमैया ख़ानदान से था.
#अगर देखा जाए तो मुसलमानों के इतिहास का एक बड़ा हिस्सा इन दोनों जुड़वां भाईयो— हाशिम व अब्द शम्स की संतानों के इर्द-गिर्द घूमता है.
एक समय ऐसा भी आया कि बग़दाद में अब्बासी खिलाफत (Abbasid Dynasties, 750-1258) थी, मिस्र में फातमी ख़िलाफत (Fatimids) और इन दोनों का संबंध बनू हाशिम से था.
हज़रत मुआविया ने ख़िलाफत बनू उमैया (Umayyad Dynasties, 661-750) क़ायम की. बनू उमैया के ही लोगों ने उंदलुस पर हुकूमत किया और इन का संबंध अब्द शम्स से था. बनू उमैया ने ही सहाबी हज़रत अबू अय्यूब अंसारी को इस्तांबुल भेजा, आज भी इस्तांबुल मे अय्यूब अंसारी का मज़ार मौजूद है।
*यह दोनों अब्बासी और उमैया ख़ानदान की हुकूमत तक़रीबन 600 साल रही, जिस को इस्लामी हुकूमत की मुसतनद मुद्दत (Classical Period) कहा जाता है. उस्मानीया (Ottomans, 1299-1923), सफावीद (Safavids, 1501-1722), मुग़ल (Mughals, 1526-1857) को सियासी हुकूमत या Regional Powers कहा जाता है.
*आज भी चार देशों के बादशाह हाशमी हैं. वह चार देश हैं जार्डन, मोरक्को मलेशिया और ब्रुनेई. जबकि ईरान की हुकूमत में इन का प्रभाव है.
#नोट: Khursheeid Ahmad साहेब ने यह अरब के मुस्लिम और उन के ख़ानदान का शांदार शीजरा लिखा है, जिस को हम ने थोड़ा सा बड़ा कर दिया है।
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