जर्मनी अभी भी दशकों बाद अपने नरसंहार के इतिहास का बोझ ढो रहा है और अभी दशकों ढोये गा।
हम भारतीय अभी उसी इतिहास को यहॉ जी रहे हैं।क्या इस इतिहास को बदलने मे भारत मे बहुत देर हो चुका है?
मेरा कहना है, बहुत देर कर दिया। आने वाली पीढ़ियों को इस नफ़रत का बोझ उठाना ही होगा।दशकों हम सब को इस बोझ को जर्मनी की तरह ढोना होगा, क्योंकि देश इस नफ़रत के बोझ से टूट गया है।
भारतीयों ने जाने और अंजाने मे क्या किया? क्या हमारी आने वाली पीढ़ियाँ इस बात के लिए जिम्मेदारी लें गीं? क्या भविष्य के नेता या संघठन इस की निंदा करें गें?
اے موجِ دجلہ تو بھی پہچانتی ہے ہم کو
اب تک ہے تیرا دریا افسانہ خواں ہمارا