Post of 23 October 2021

कल Khursheeid Ahmad साहेब का “हीन-भावना” का एक शांदार पोस्ट पढा।उर्दु और हिन्दी नाम वाले सब लोग वह पोस्ट पढे और खास कर वह पढें जो सौ साल से सोंचते और कहते हैं, “भारत को हजारो साल से आये चंद मूठ्ठी भर आक्रमणकारी लोग जो हम से बरबर थे आये और हम को पदोभ्रांत किया”

Khursheeid साहेब लिखते हैं जो भारत आये उन की हुकूमत में सूरज नहीं डूबता था और वह दुनिया की वाहिद क़ौम है जिस ने सैकडो साल तीन महाद्वीप पर झंडा लहराया और हुकूमत किया।

“ऐसा नहीं है कि हम बहुत गए गुज़रे लोग हैं जो कुछ नहीं कर सकते हैं बल्कि हम भारतीय मुसलमानों से पिछले ढाई सौ वर्षों में सब कुछ छीन जाने और विपरीत स्थितियों का सामना करते हुए भी बहुत बड़े बड़े काम किए हैं जो किसी भी विकसित कौम का ख्वाब हो सकता है”

“भाषा को ही देख लीजिए कहा जाता है कि किसी भी कौम को खत्म करना हो उसकी भाषा को खत्म कर दो हमारे साथ भी यही हुआ हमारी लिखने पढ़ने की भाषा बदली गई फारसी को खत्म किया गया हम ने उर्दू में मेहनत की और सौ वर्षों से भी कम समय में उर्दू को ऐसी भाषा बना दिया जो अरबी व फ़ारसी का मुकाबला करने लगी फिर उर्दू भी छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया और हम ने हिंदी में भी मेहनत करके बहुत कुछ हासिल कर लिया”

“क्या आप बता सकते हैं कि विश्व की किसी दूसरी कौम से उस की भाषा छीन ली गई हो और क़हर ढाया गया हो फिर भी उस ने ऐसा कुछ हासिल किया हो? फिर हम नाकारा कैसे हुए?”

उस ने तो सर सैयद, गालिब, इक़बाल, शिबली नोमानी, अली मियॉ जैसा बूद्धिजिवी, दार्शनिक और शायर पैदा किया जिस को दुनिया उस वक्त और आज भी अनुवाद कर पढ़ती थी और है।

हीन-भावना से सौ साल सोंच से ग्रस्त लोग दूसरो को नाकारा साबित न करें।दो सौ साल बाद मौका मिला है भारत वर्ष को विश्वगुरू बनाने का, भाषण बंद करें, मूर्दा दिल को ज़िन्दा करें क्योकि ज़िन्दगी संघर्ष का नाम है बग़ैर मेहनत और मोहब्बत के कुछ हासिल नहीं होता.
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Khursheeid Ahmad

हीन-भावना ( एहसास ए कमतरी ) क्यों ?
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ज़िन्दगी संघर्ष का नाम है बग़ैर मेहनत के कुछ हासिल नहीं होता कुरान के शब्दों में وان ليس للإنسان الا ما سعى बेशक इंसान के लिए सिर्फ वही है जिसकी वह कोशिश करता है

दुनिया जन्नत नहीं है यहां बड़े बड़े नबियों रसूलों को मुसीबतें झेलनी पड़ी है. अल्लाह ने खबरदार कर दिया है कि तुम्हारा अपने को मोमिन कहना काफी नहीं है तुम सिर्फ यह कहने से छूट नहीं जाओगे बल्कि तुम्हें अज़माया जाएगा/

अल्लाह के हबीब सल्ललाहो अलैहे वसल्लम को भूखे रहना पड़ा है तीन साल तक समाजिक बायकॉट का सामना करना पड़ा है लोगों के ताने सुनने पड़े हैं तायफ शहर में आप की मोब लिंचिंग की कोशिश तक हुई है.

अगर दुनिया में हमें मुसीबतों का सामना करना ही है तो डर , खौफ , एहसास ए कमतरी और हीनभावना क्यों ? एक दिल में अल्लाह का ईमान भी हो और हीनभावना भी यह नहीं हो सकता.

ऐसा नहीं है कि हम बहुत गए गुज़रे लोग हैं जो कुछ नहीं कर सकते हैं बल्कि पिछले ढाई सौ वर्षों में भारतीय मुसलमानों ने राजनीति व सियासत में कमज़ोरी के बाद भी वह कुछ हासिल किया है जो किसी भी विकसित कौम का ख्वाब हो सकता है.

भाषा को ही देख लीजिए कहा जाता है कि किसी भी कौम को खत्म करना हो उसकी भाषा को खत्म कर दो हमारे साथ भी यही हुआ हमारी लिखने पढ़ने की भाषा बदली गई फारसी को खत्म किया गया हम ने उर्दू में मेहनत की और सौ वर्षों से भी कम समय में उर्दू को ऐसी भाषा बना दिया जो अरबी व फ़ारसी का मुकाबला करने लगी फिर उर्दू भी छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया और हम ने हिंदी में भी मेहनत करके बहुत कुछ हासिल कर लिया.

क्या आप बता सकते हैं कि विश्व की किसी दूसरी कौम से उस की भाषा छीन ली गई हो फिर भी उस ने ऐसा कुछ हासिल किया हो ? फिर हम नाकारा कैसे हुए हमें हीनभावना से ग्रस्त क्यों होना चाहिए ?

आप सियासत में छाए हुए हैं आप की हुकूमत में सूरज नहीं डूबता इस पर आप कुछ बड़ा काम कर जाते हैं तो कोई बड़ी बात नहीं हम भारतीय मुसलमानों ने सब कुछ छीन जाने और विपरीत स्थितियों का सामना करते हुए भी बहुत बड़े बड़े काम किए हैं.

तीन तीन महाद्वीपों पर हुकूमत करने वाली उस्मानी ख़िलाफत को ईसाई मिशनरियों का सामना करने के लिए मौलाना रहमतुल्लाह केरानवी को ढूंढना पड़ता था सभ्यताओं की मां कहे जाने वाले मिस्र के बुद्धिजीवियों व उल्मा को अल्लामा शिबली नोमानी से शिफारिश करनी पड़ती है कि वह हमारी ओर से जुर्जी ज़ैदान की किताब का जवाब लिख दें अरब युनिवर्सिटीज में खुद को इंडियन बताने के बाद यह बताना पड़ता है कि मुबारकपुर कितना बड़ा शहर है क्या कारण है कि वहां इतने बड़े बड़े लोग पैदा होते हैं.

और सिर्फ दीनी उलूम तक ही नहीं जिंदगी के दूसरे मैदान में भी हम अपनी मिसाल आप हैं मानव संसाधन से जुड़े एक विश्व स्तरीय इजिप्शियन स्कालर का प्रोग्राम मैं ने सुना वह कह रहे थे कि हम ने भारतीय मुस्लिम मजदूरों में एक अनोखा टैलेंट देखा है कि उन्हें किसी नए काम को सीखने में तीन महीने से ज्यादा नहीं लगते उन से तेज़ दूसरी कम्युनिटी नया काम नहीं सीख पाती.

आज़ादी के बाद भारतीय मुसलमान वैज्ञानिकों पर मैं एक श्रृंखला लिख चुका हूं.

जब हम हर मैदान में हम अच्छा कर रहे हैं तो एहसास ए कमतरी क्यों ? क्या इस लिए कि हमारे अंदर कोई ऐसी राजनैतिक हस्ती नहीं जो सनी देओल की तरह दुश्मन के नल उखाड़ ले
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Some comments on the Post

Khursheeid Ahmad शुक्रिया सर

  • Mohammed Seemab Zaman, Khursheeid Ahmad साहेब, आप ने बहुत शांदार पोस्ट लिखा है, इस पर तो चार पोस्ट हम लिख दें।मौलाना ज़करिया साहेब के काम से सऊदी चौंक गये। 1977 मे जब अटल जी विदेश मंत्री बन कर दुनिया घूमे तो लोगो ने अली मियॉ की ख़ैरियत पूछी तो वह लौट कर आकर उन से मिलने गये के यह भारत की कौन शख़्सियत है दिस को वह नही जानते हैं मगर दुनिया जानती है।भारत ने सौ साल मे मक़बूल फेदा हुसैन दिया जिस को दुनिया चार सौ साल माईकल एंजिलिना या दूसरे कलाकार के तरह याद रखे गी। फ़िल्मी दुनिया मे आज तक कोई दूसरा के आसिफ़ या कमाल अमरोही पैदा नही हुआ जो मोगले आदम या पाकिजा बना सके।एक दो है, कितना लिखें मेरे पास compare करने की लिस्ट भी दिमाग मे हैं, मगर क्या लिखें।

Anish Akhtar बहुत खूब…कोख ओर गोद के ये 100 साला खेल अब पलटवार हो चुका है अब हमको भी अपनी भाषाई संस्कृति को फिर से जिंदा करना होगा…मैं खुद फ़ारसी ओर उर्दू के पीछे पड़ा हुआ हूँ..

  • Mohammed Seemab Zaman यूपी मे एक योजनाबंद तरीक़े से उर्दु जबान ख़त्म की गई मगर आज तक एक शायर हिन्दी का पैदा नही हुआ जो भारत का दुनिया मे नाम रौशन करे।फिल्म का गीत ख़त्म हो गया, फिल्म इंडस्ट्री खत्म हे गई इस “हीन-भावना” से। किस को क्या कहा जाये? गौर से मुर्दा दिल लोग सोंचे, क्या गलती किया और कहॉ पहुँच गये।

Syed Abid Naqvi भारत में संघियों ने एक बहुत बड़ा काम यह किया है कि मुसलमानों में हीन भावना पैदा कर दी है, संघियों का प्रचार तंत्र बहुत मज़बूत है और इसी प्रचार में यहां का मुसलमान भी पूरी तरह फंस गया, बहुत से सवाल वो ख़ुद से नहीं करता, उसने कभी यह जानने समझने की कोशिश ही नहीं की कि भारत की अर्थव्यवस्था में उसका क्या योगदान है, भारत की संस्कृति में उसका क्या योगदान है, मुसलमानों द्वारा बनाए सामानों को हटाकर देखिए तब पता चलेगा कि भारत की अर्थव्यवस्था कहां खड़ी है, कोई बात नहीं अब मुसलमानों के धंधे ख़त्म कर दिए देखिए GDP कहां आ गई अब इसे कोई ऊपर उठाकर दिखा दे बग़ैर मुस्लिम सपोर्ट के, बॉलीवुड से मुस्लिम शायरों को, लेखकों को, भाषा को, कलाकारों को, गायकों को निकाल दीजिए फिर देखिए क्या बचेगा, याद रखिएगा बॉलीवुड भारत की संस्कृति का सबसे बड़ा पैमाना है, मुझे कभी कभी लगता है कि सच्चर कमेटी मुसलमानों को डीमोरेलाइज़ करने के लिए ही बनाई गई थी, सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद मुस्लिमों में बहुत ज़्यादा हीन भावना पैदा हुई है और संघियों के ज़बानी हमले तेज़ हुए हैं और मुसलमान अब्दुल पंचर वाला बनकर रह गया है।।

  • Mohammed Seemab Zaman हीन भावना पैदा कर इन को मनोवैज्ञानिक दबाव बनाओ ताकि यह कभी अच्छी हालत मे न आयें। मगर हुआ क्या माल्या और गोयल कोई भी Air King नही बन सके, दोनो भाग गया और आखिर मे टाटा को दान दे दिया। RIL के बोर्ड मे विदेशी नागरिक सऊदी अरब का बोर्ड मेंमबर बन गया जो RIL सऊदी के SABIC से बडा था प्लास्टिक गरेनूल्स बेचने मे।उप्र और उत्तर भारत मे उर्दू ख़त्म किया बॉलीवुड ख़त्म हो गया। हम सच्चर कमीटी के हमेशा खेलाफ रहे, यह मुस्लिम को बैकवर्ड ज़हेनियत पैदा करने को बनाया गया था। जिस मे कुछ मुस्लिम मौलवी और नेता फँस गये। बिहार मे एक मौलाना बलियावी पैदा हुए थे, आज कहॉ हैं?

Sayed Shaad आज मुसलमानों का so called elite class, so called intellectuals, so called learned और so called seculars इस्लाम की रूह से दूर हैं जिस वजह कर अहसास कमतरी का शिकार हैं।

  • Mohammed Seemab Zaman Sayed Shaad साहेब, वजह यह है कि अगर आप खूद पढ़िये लिखये गा नही और उठये बैठये गा इसी तरह के confused लोगो के साथ तो आप के so called intellectuals ऐसे ही मुरदा दिल पैदा हो गें जो उन की ही जबान बोले गें। देखा नही मेरे सर सैयद के कौमेंट पर एक आदमी ने “हिन्दी का पेज” डाल कर कहा कि पेज 80 मे नही 70 मे है। उस ने उर्दु के जवादे हयात के बारे मे सोंचा ही नही। उस ने समझा किताब हिन्दी मे लिखी गई है।
  • Sayed Shaad  सर आप जैसे एक दर्जन लोग हो जाएं तो यकीनन मुआशरे में बड़ा बदलाव देखने को मिले, कम से कम इतना तो है कि अहसास कमतरी जैसे मर्ज से जरूर निजात पा लें। पढेंगे, जानेंगे तब जाकर कहीं समझेंगे इस्लाम के फलसफे को भी और दुनिया के नशेब ओ फ़राज़ को भी।

Kamran Rafiq हमारा नुकसान फ़िरकावारियत ने किया है बचा खुचा हमसे नफ़रत खा गयी।

  • Mohammed Seemab Zaman फ़िरक़ावारियत हम ने खुद जाहिल बन कर पैदा किया। पढा लिखा कम और अपने को क़ाबिल समझा ज्यादा।

Javed Hasan इसी अहसास ए कमतरी की वजह से बंटवारे का सारा इल्जाम हमारे उपर डाल दिया गया जो आज भी हम ढो रहे है वो तो एक सोची समझी रणनीति से एक बफर जोन बनाया था लेकिन चीन के सुपर पावर होने को समझ ही नहीं पाए कि फॉल ऑफ़ काबुल ने शॉक्ड कर दिया

Afzal Ahmed बहुत बढ़िया लेख, उम्दा तहरीर।अहसास ए कमतरी या महरुमी इंसानों या क़ौमों को ज़हनी ग़ुलाम बना दिती है,जो सियासी ग़ुलामी से बहुत ज़्यादा ख़तरनाक होती है, इसमें मुब्तला क़ौमौं की बसीरत ज़ाय हो जाती है, उसे कुछ दिखाई नहीं देता,ये ख़तरनाक मर्ज़ है,बस ज़ुल्म करके और इन्तक़ाम में जलकर ख़ुद का ख़सारा कर लेते हैं।अलहम्दुलिल्लाह,इज्तिमाई तौर पर अभी तक मुस्लिम इससे महफ़ूज़ हैं,वजह दीन इसलाम की तालिमात।

Azad Hashmi मेरी लिस्ट में फेवरेट है.. हर दिन कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है.. तारिख़ पर जबरदस्त पकड़ है ,, इनकी कलम को देखता हूँ तो मुझे अपने उस्ताद याद आ जाते है.

Shahreen Khan Wah bahut khoob sir
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One of the many architectural masterpieces of the powerful Iranian Safavid Dynasty in the heart of their fabled capital city of Isfahan in Iran