यह नक्शा जो ईरान, तुर्किसतान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और अरब महासागर और भारत का है यह गौर से देखये और सोचये भारत का विभाजन कितना बडा बलंडर हमारे नेताओ ने अपने नासमझी या ग़ैर-दूरअनदेशी मे कर दिया। भारत के बूद्घजिवीयो को लगा जो भी हज़ार साल से भारत मे आया वह यही ज़मीनी रास्ते से आया और अफगानियो ने उन का साथ दिया तो क्यो न एक मुस्लिम देश अफ़ग़ान और भारत के बीच मे बना दो जो बफर स्टेट का काम करे। राजीव गॉधी जो पश्चिम की सोंच रखते थे उन्होंने एक बार कहा अच्छा हुआ बीच मे पाकिस्तान बन गया वरना रूस भारत मे आ जाता। बाजपेयी भी 1978 मे अफगानिस्तान जाकर “गज़नी” जाकर इतिहास जानना चाहते थे और अपने भाषण मे गजनी को याद देला कर “हिन्दुत्वा” को ल्लकारते थे।

दूसरे तरफ बंगाल को बॉट दो क्योकि इन की हमेशा अलग सोंच रही और यही लोगो ने बंगाल मे मुग़ल के खेलाफ अंग्रेज़ों को पनाह देकर 1911 तक भारत की राजधानी कलकत्ता बना दिया और फिर आसाम का क्षेत्र जो विभिन्न भाषा और टराईब/धर्म का है वह बफर रहे भारत का। अंग्रेज को तो भारत का सूरत, केरला, मद्रास, उड़ीसा का समुंदर भी पनाह दे सकता था मगर बंगाल ही क्यो दिया। ख़ैर यह अब बहस का मुद्दा न है न होना चाहिये।

ईमाम खोमैनी के इस्लामिक रिवोलूशन से पहले संघ बना और फिर बँटवारा हुआ ताकि साम्राज्य भविष्य मे विदेशी आक्रमण से महफ़ूज़ रहे क्योकि गल्फ़/हेजाज़ से तो 1300 साल मे कभी ख़तरा नही रहा मगर ईरान और अफगानिस्तान से रहा। मगर आज “गल्फ़, हेजाज़ तथा चीन” ऐसा ऐतिहासिक तरक्की किया के दुनिया बदल गई और संघ के सोंच ने “हिन्द” को बरबाद कर दिया।

ईमाम खोमैनी एक ज़हीन और इस्लामी सोच के नेता थे मगर उन के ज़िंदगी मे कठमुल्ला, बजार के छोटे पैसे वाले लोग, शोषित और मिडिल क्लास ने हाईजैक कर लिया। खोमैनी कभी भी ईरान को कट्टर इस्लामिक राज्य नही बनाना चाहते थे।आज ईरान का दो पुश्त बरबाद हो गया, दुनिया मे आज वह कही नही है।

संघ के बाज़ार के छोटे पैसा वाले और सर्वण जाति के लोग ने 1977 से जाल बिछा कर बाबरी, 2002 प्रयोगशाला बना कर 2014 मे उत्तर भारत जो सब से पिछड़ा, शोषित और मिडिल क्लास को वरगला कर क़ाबू कर सत्ता पा लिया। आज (2020) ईरान से बत्तर हालत हो गया मगर न तेल का कुऑ है न कोई पड़ोसी दोस्त है मगर अभी भी भारत के संघीतकारो का दिल साफ नही हो पा रहा है।

“ज़ाहिर की ऑंख से न तमाशा करे कोई
जो देखना तो दिदये दिल वॉ करे कोई”
(हक़ीक़त यह है कि ऑंखें अंधी नही होतीं, वह दिल है जो सिने मे वह ……….)

The Economist, January issue, 2020