Post of 9th May 2022

कल अल जज़ीरा टी वी पर एक साक्षात्कार में बैतुलमोकद्दस के पूर्व मुफ़्ती एकरिमा साबरी ने कहा कि जब खलीफा उमर बिन खत्ताब ने 638 ईसवी में बैतुलमोकद्दस मे रोमन पेट्रिआर्क (रोमन बुज़ुर्ग) से एक समझौता कर वहाँ मुस्लिम हुकूमत क़ायम किया तो जेरूसलम (बैतुलमोकद्दस) में उस वक्त यहूद का कोई एबादतगाह यानि सिनेगॉग/टेम्पुल नहीं था, वहाँ चर्च और अल-अक्सा मस्जिद थी।

उन्होंने कहा यहूद से मुस्लिम ने बैतुलमोकद्दस या अल-अक़सा नहीं लिया और न उन से कोई लड़ाई हुई, उस वक्त तो रोमन पेट्रिआर्क लोग यहूदी लोगों से वहाँ परिशान थे जिस की वजह कर ‘उमर संधी’ में रोमन बुज़ुर्गों ने कहा हम लोग इन के साथ नहीं रहें गें।ख़लीफ़ा उमर ने उस वक्त वहाँ मौजूद सब धार्मिक स्थान और मज़ार की सुरक्षा और देख भाल की जवाबदेही उस संधी में लिया जो सैकडो साल चला।

मुफ़्ती साबरी ने कहा कि जब क्रिसचन ने क्रूसेड किया और मिस्र के बादशाह सलाहऊद्दीन ऐय्यूबी से हारे तो उस वक्त भी मुस्लिम ने खून ख़राबा वहाँ नहीं किया और क्रूसेड़ वाले यूरोप के क्रिसचन को वापस यूरोप भेज दिया और जो फ़िलिस्तीन के रहने वाले थे उन को इज़्ज़त के साथ वहाँ रखा।

मुफ़्ती साबरी ने कहा यह अल-अक़सा यहूद का टेम्पुल माउंट नहीं है, यह मुस्लिम का धार्मिक स्थल है जहां 1967 तक कोई हंगामा नहीं होता था और लाखों मुस्लिम रोज़ वहाँ फज्र से ईशा की नेमाज़ पढ़ते थे।यह सब हंगामा आतंकी यहूदी ग्रूप ने 2000 AD से शुरू किया है।

मोहम्मद बदिऊज़्ज़मॉ साहेब ने अपनी किताब ‘इक़बाल की जोग़राफिआई और शख्सियतों से मनसूब इस्तलाहात’ में लिखा है कि फ़िलिस्तीन पर इक़बाल के कलाम में कुल पाँच अशआर है।उन्होंने लिखा है कि 1516 में तुर्कमान उसमानी ने क़ब्ज़ा कर के अपनी सल्तनत तुर्किया का हिस्सा बनाया जो पहली जंग-अज़ीम तक रहा। उस के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने 1920 से 1947 तक उस को अपने क़ब्ज़ा में रखा और जब यहूदियों ने 1948 में अपनी आज़ाद हुकूमत क़ायम कर ली तो क़ब्ज़ा ख़त्म किया। उस के बाद से अब तक वहाँ अरब-इस्राईल के बीच कई जंग हुई।

ज़मॉ साहेब लिखते हैं कि इक़बाल नवंबर 1931 में लंदन से वापसी पर मिस्र और फ़िलिस्तीन गये। फ़िलिस्तीन के मुफ़्ती आज़म अमीन ऊल हुसैनी ने उन का इस्तक़बाल किया।वापसी पर इक़बाल ने एक शेर में कहा कि उन्होंने मिस्र और फ़िलिस्तीन में वह अज़ान नहीं सूनी जो पहाड़ों में पारा की लरज़ीश (رعشہ سیماب) ला दें। इस पोस्ट को इक़बाल के उसी शेर पर ख़त्म करते हैं:

“सूनी न मिस्र व फलस्तीन में वह अज़ॉ मै ने
दिया था जिस ने पहाड़ों को रॉशेह सिमाब”

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Mohammed Seemab Zaman कल हम ने अंग्रेज़ी में इस पर पोस्ट किया था और हिन्दी तर्जुमा करने को मना किया था।वह इस वजह कर किया था के मुफ़्ती साबरी का इनट्रविव अरबी में था और English Text जो पढ़ कर हम ने लिखा था जो हिन्दी में फिर तर्जुमा होता तो उस का सही मज़ा नहीं आता।वह बहुत अच्छी अरबी में बोले मगर अंग्रेज़ी में वह मज़ा नहीं आया। जिस को थोड़ी अरबी आती हो गी वह इनट्रविव सूने, बहुत इत्मिनान से वह बोले हैं और सहल अरबी में बोले हैं।