Post of 5th September 2021

सौ साल के सोंच वाले का बेहतरीन मज़ाक़: उन के अखबार “पाजजन्य” को वह अब अपना अखबार मान्ने से इंकार कर रहे हैं।हम को तो डर है कि कही यह लोग हमारे आदरणीय विश्व प्रसिद्ध धारा प्रवाह मधुर वाचक पशु चिकित्सक को अपना मुखिया मानने से इंकार कर दें गें।

संघ के अखबार ने अपने एक लेख “साख और आघात” मे इन्फ़ोसिस (Infosys) के दूसरे मालिक चंदन नेलकानी की आलोचना करते हुऐ कहा है कि इन्फ़ोसिस नक्सल, कौमिन्स्ट और टुकड़े टुकड़े गैंग को मदद करता है।

यही इन्फ़ोसिस के मालिक नारायण मूर्ती के दामाद आज इंगलैंड के वित्तमंत्री हैं और अखबार इस इंफ़ोसिस को देशद्रोही लिख रहा है।

चीन मे 1990 तक कोई सटौक एक्सचेंज नही था जबकि भारत मे आजादी के पहले से पारसी लोग बम्बई मे सटौक एक्सचेंज खोल कर टाटा के परिवार के लोग पैसा लगा कर कम्पनी खोला। इसी टाटा के यहॉ नारायण मूर्ती और उन की बीवी काम करती थी और जेआरडी के आशिर्वाद से Infosys खोला जो लाखो को नौकरी और बिलियंस ऑफ डालर लाकर देश को दिया।यूपी मे संघ की सरकार पॉच साल से है तो गौशाला खूल रहा है मगर एक सटौक एक्सचेंज नही है।

उत्तर भारत जिस की आबादी 60-70 करोड है जहॉ दंगा और फ़साद कर सैकडो प्रतिशत GDP अब तक 70 साल मे जला दिया गया मगर कोई इंफ़ोसिस या टाटा के TCS कम्पनी नही है। इस को कहा जाता है संघ और देश के बुद्धिजीवी लोगो का देश प्रेम।

नारा लगता है बन्दे मातरम।
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Some comments on the post

Neeraj Singh इनका नारा जनता और दुनिया को सुनाने के लिए है “बंदे मातरम” लेकिन संघ की core meetings में इनका नारा होता है “बंदे मारते हम”। अभी कॅरोना-2 के दौरान जब गोबरपट्टी और देश मे मौत का तांडव चल रहा था उसके बाद दिल्ली की एक मीटिंग में बडी मुछ औऱ बिना पूंछ वाले जानवरों के डॉक्टर ने कहा था “जो मर गये वो मुक्त हो गये”। पांच्यजन्य हो या organiser सब इनके रक्तबीजों की मानसिक सोच को समाज मे पहुचाने का काम करते है। यह मुकाम इन्होंने 90 सालों में पाया है। कम से कम 4 पीढी के बुद्धिजीवियों में एक खास किस्म का जहर भरा गया तब जाकर 2014 में संघ का स्वर्णिम काल आया। लेकिन जहर की खेती कितने दिन? मात्र 7 सालों ने 90 साल की मेहनत पर पानी फेर दिया। अब न पांच्यजन्य इनका न The Organiser इनका, यहाँ तक कि अब ये खाकी चड्ढी पर भी अपना दावा न ठोक पायेंगे। बस केवल नजारे देखिये, मजा लीजिये।

  • Mohammed Seemab Zaman पांजजन्य और The Organiser ही को कहा गया यह RSS का अखबार है मगर आज पता चला यह इन का अखबार नही है। मज़ा तो यह आया के भारत के तुर्की मे राजदूत कह रहे हैं कि भारत-तुर्की का पूराना मध्य काल से रिश्ता है।

Misbah Siddiki नंदन नीलकेणी का कभी काँग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ना और पिछले साल अगस्त में नारायण मूर्ति की ‘अर्थव्यवस्था में गिरावट की आशंका’ का सच होना ये दो बड़ी खुन्नस संघीटोले को इंफोसिस से रहती हैं जीएसटी की अपनी नाकामी को इंफोसिस के बनाये सॉफ्टवेयर की कमी बताना भी एक वजह है।और तस्वीर को बड़ा कर देखें तो मुल्क को बेहतर बनाने वालों से संघीटोले को हमेशा मसला रहा है। टीसीएस और इंफोसिस एक लंबे वक्त से आलमी शोहरत व मक़बूलियत के साथ अपनी ख़िदमात दे रही हैं और बचे खुचे चंद घरानों में से हैं जिनकी हमदर्दी काँग्रेस (नीतिगत) के साथ दिख जाती है, बस संघीटोले को यही अखरता है। ये देखना दिलचस्प होगा कि बजाज, टाटा और अब इंफोसिस के बाद ये संघीटोला किस बिज़नेस घराने को बेइज़्ज़त करता है और ये सब घराने मिलकर क्या हिकमते अमली दिखाते हैं।