Post of 9th September 2022
कल का दिन भारत के इतिहास मे बहुत महत्वपूर्ण था। कल राजपथ का नाम बदल कर कर्तव्यपथ रखा गया और सुभाष चंद्र बोस की 24 फीट की मूर्ती लगाई गई क्योकि यह अंग्रेजों से भारत को आजाद करने की लडाई मे फ़ासिस्ट फोर्सेज़ हिटलर के साथ थे।
सुभाष बोस जिन्होने एक विदेशी लडकी (शायद आस्ट्रिया की थी) से बिना किसी हिन्दु रिति रेवाज के पत्नी बना कर संबंध बनाया जिस से एक बेटी हुई।
जर्मनी का फ़ासिस्ट लिडर हिटलर ने WW2 मे सब से पहले यूरोप का देश ऑस्ट्रिया को कब्जा किया फिर द्वितीय विश्वयुद्ध का आग़ाज़ हुआ और फिर हिटलर ने लाखो यहूदियों को मारा जिस को Holocaust कहा जाता है।
सुभाष चंद्र बोस उसी फासीवादी नेता हिटलर से 1942 मे मिले थे यह जानते हुऐ की हिटलर यहूदियो का क़त्ल आम कर रहा है, लाखो यहूदियो को रिफ्यूजी बना रहा है।
सुभाष चंद्र बोस उसी Nazi-Germany से रेडियो प्रसारण कर आजादी की लडाई लड रहे थे जबकि गॉधी, नेहरू, मौलाना आज़ाद इत्यादि भारत मे रह कर अंग्रेजों से आजादी की लडाई लड रहे थे।
#नोट: क्या कल कर्त्तव्यपथ के समारोह मे इस्राईल के राजदूत मौजूद थे? अगर वह थे तो वह भी हिटलर समर्थक हैं।
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Some comments on the Post
Md Umar Ashraf मेरा अपना मानना है की आपने इस पोस्ट में ग़लत चीज़ को हवा दे दी है।क्यूँकि सुभाष चंद्र बोस उतने हैं नही, जितना कांग्रेसी, वामपंथियों और संघियों ने दिखाया है। वो उससे कहीं बड़े हैं।
- Mohammed Seemab Zaman यह हम ने हवा नही दिया है, यह कल अंतरराष्ट्रीय अखबार की खबर थी। यह हेडलाईन उसी का है। गौर से सोंचये कल कर्तव्य पथ पर क्यो ऐसे आदमी की मूर्ती लगी और किस पार्टी ने लगाई और क्यो लगाई। लगाना ही था तो श्यामा प्रसाद मूखर्जी का लगाते, वह भी स्वतंत्रता सेनानी थे। वह मुस्लिम लीग के सरकार मे साथ थे। पंडित नेहरू के कैबिनेट मे थे।
- Md Umar Ashraf आपकी बात अपनी जगह सही है।बाक़ी आज़ाद हिंद फ़ौज एक मुस्लिम सिपाहियों पर बेस्ड आर्मी है। इसमें BIA की पंजाब रेजिमेंट ही आज़ाद हिंद फ़ौज बनी, जिसमें अधिकतर सिपाही मुसलमान थे। नेताजी को कलकत्ता से जर्मनी और जर्मनी से जापान ले जाने वाले अधिकतर लोग मुसलमान थे। हिंदुस्तान में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का सियासी गुरु भारत का सबसे सेकूलर नेता सीआर दास थे और विदेश में मौलाना ऊबैदुल्लाह सिंधी। आज़ाद हिंद फ़ौज दो मोर्चे पर लड़ रही थी, एक जापान की मदद से अरकान इलाक़े में पूरब की जानिब से। दूसरा पश्चिम में इक़बाल शईदाय की कियादत में इटली की मदद से …बाक़ी 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन कांग्रेस का कम सोशलिस्ट पार्टी का आंदोलन था, जिसका पूरा रूप रेखा मौलाना आज़ाद और यूसुफ़ मेहर अली ने बनाया था। चूँकि मौलाना आज़ाद पर कभी भारत में काम ही नही हुआ, तो ये आज तक सामने ही नही आया के 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन और आज़ाद हिंद फ़ौज ने अंग्रेज़ों की सप्लाई कैसे रोक दी।बाक़ी हिटलर के साथी का तमग़ा का कुछ नही हो सकता।
Abdul Bari बेहतरीन पोस्ट. अभी तक जो हमे पढ़ाया जाता रहा कभी हम भी यहां तक नहीं सोच पाए । मतलब साफ है यह उसी रास्ते पर आगे बढ़ रहे है जहां से इनके गुरुओं ने भी प्रेरणा ली थी।
Shehaab Zafer आप की पोस्ट पढ़ के जेहन के दरीचे खुल जाते हैं सर
- Mohammed Seemab Zaman Shehaab Zafer साहेब, हम लोगो को मौक़ा कभी नही मिला अपनी सोंच को लिखने का, FB ने मौका दिया है।दूसरी चीज़ बहुत सारी बातें जानते हुऐ भी लिखी नही जाती है, मगर कोई दूसरा ज्यादा शातिर हो जाये अपनी सोंच को थोपने लगे तो सच्चाई लिख देना चाहिये। जिन को समझ मे आये वह आगे पढे और अपने ज़हन को खोलें या जिन को अपनी पूरानी सोंच पर कायम रहना है, वह कायम रहें।
Saeed Khan Arshi हमने तो कभी इस नज़रिया तो सोचा ही नहीं।
Ashafaque Alam बहुत ही अनोखे अंदाज में आपने बताया. अल्लाह आपके उमर व सेहत में खूब बरकत अता फरमाए
Shambhu Kumar
मतीन’ उन का करम वाक़ई करम है तो फिर
ये बे-रुख़ी ये तग़ाफ़ुल ये बरहमी क्या है