Post of 6th November 2021
कहते हैं कि जरुरत ईजाद की मां होती है इस्लामी हुकूमत के फैलाव के साथ ही उसकी अर्थव्यवस्था भी मजबूत हुई व्यापार का विस्तार हुआ अरब व ईरानी पहले ही व्यापार में आगे थे इस नए सिस्टम में उन्हें और ज्यादा अवसर मिले असकंदरिया , अदन ( यमन ) बसरा, जद्दा जैसी बंदरगाहों का विकास हुआ मुस्लिम व्यापारी जाकरता से लेकर स्पेन तक घूम घूम कर व्यापार करते थे बग़दाद दमिश्क , रे (आज का तेहरान ), बुखारा, ताशकंद, काशगर और सूरत मुस्लिम व्यापारियों की बड़ी मंडियां थीं.
उस समय सफर आसान न था सवारी व माल ढोने के साधन न थे विशेष कर नकदी व करेंसी सोने चांदी और तांबे की शकल में होती थी जिसे समुंद्री लूटेरों और छोटे लालची राजाओं से बचा कर ले जाना आसान न था बहुत से व्यापारी रास्ते में मार दिए जाते थे.
ऐसे समय में ज़रूरत महसूस हुई कि नकदी का लाना जाना कम हो और वहीं से हवाला व चेक द्वारा लेन-देन शुरू हुआ आज किताबों में पढ़ाया जाता है कि चेक फ्रांस ने शुरू किया जो सही नहीं है क्योंकि चेक अरबी भाषा का शब्द ( صك ) है जो यूरोप में चेक हो गया चेक व हवाला में अंतर यह था चेक का भुगतान तय तारीख के अंदर करना होता था और हवाला में ऐसी शर्त नहीं थी,
इसी तरह बगदाद के कुछ व्यापारियों ने आपस में एक दूसरे की मदद और व्यापारियों की अचानक मौत या उनके सामान के नुक्सान की भरपाई के लिए तकाफुल नाम से एक प्रोग्राम शुरू किया जो धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल गया वह आज के बीमा व ऐंशूरेंस की शुरुआती शक्ल थी.
दुनिया में बैंकों की शुरुआत इसलाम से पहले इराक़ व युनान में हो गई थी इस्लामी दुनिया में इसका और विकास हुआ मसरफ ( مصرف ) नाम से बैंक हर बड़े शहर में क़ायम थे जब मुसलमानों की हालत बिगड़ी यह तमाम चीजें भी उनके हाथ से निकल गई व्यापार खत्म हुआ और सब चीजें खत्म हो गई यूरोप ने नए नए प्रयोग किए और आज इन सब चीजों की विकसित रूप हमारे सामने है.
लेकिन यह हमारी मीरास है हमारी खोई हुई संपति है मुसलमानों के लिए जरूरी है कि वह पढ़ लिख कर अपने अंदर वह काबिलियत पैदा करें कि इन्हें फिर हासिल कर सकें और जो इस में खामियां पैदा की गई हैं उसे दूर कर सकें.
पर अफसोस होता है हम कामचोर मुसलमानों पर हम इन सब चीज़ों को यहूदियों की साज़िश समझते हैं बड़े बड़े उल्मा की किताबें और तकरीरें इसके विरुद्ध मिल जाती हैं वह अल्लाह के रसूल सलललाहो अलैहे वसल्लम का जमाना देखते हैं जब यह सब चीज़ें नहीं थीं और आज का , बीच की चीजें न तो पढ़ते हैं और ना ही पढ़ने की जरूरत महसूस करते हैं आज के 1300 साल पहले इमाम अबु युसुफ ने किताब अल खिराज और इमाम अबु ओबैद सल्लाम ने किताब अल अमवाल लिखी थी आज वैसी किताबें इस्लामी अर्थव्यवस्था पर नहीं लिखी जाती जबकि अब अर्थव्यवस्था की व्यापकता को देखते हुए नए नए अंदाज की किताबें लिखने की जरूरत है.
बस यहूदी साजिश कह कर और क़यामत की निशानियों की हदीसे सुना कर अपनी सुस्ती और काहली को छुपा लिया जाता है.