Arvind Srivastva साहेब के पोस्ट पर एक 37 साल से पत्रकारिता करते एक पत्रकार साहेब का लिखा “किसान आंदोलन” पर पढा कि उन्होंने 37 साल मे ऐसा आंदोलन नही देखा और नीचे उन के कुछ शब्द हैं।
“इसमें प्रबंधन, राजनीतिक समझ, संस्कृति और सेवा की जेनुइन तस्वीर दिखाई दे रही है। बड़े – बड़े स्वनामधन्य, अपने-आपको समाजवाद, बहुजनवाद, स्वच्छतावाद और सेक्युलरवाद का झंडाबरदार बताने वाले नेता और दल आज सर्वसत्तावाद के समक्ष समर्पण कर चुके हैं। कुछ ने तो अपने आपको उनकी बी-टीम या सी-टीम में ढाल लिया है। ऐसे दौर में यह किसान आंदोलन इतनी उपेक्षा और दमन-चक्र के बावजूद अपनी जमीन पर कायम है। क्या यह मामूली बात है?”
मेरा कहना है “शाहिन बाग़” आंदोलन भारत के इतिहास मे पहला सुसज्जित और कामयाब आंदोलन था जिस ने दुनिया की ऑख भारत पर डाल दी। आजादी के बाद संघ के सौ साल के विचारक और प्रचारक को पहली बार “शाहीन बाग” ने चौंका दिया। उन से पूछये वह कैसे चौंके थे जब पूरा मिडिल इस्ट टूविट करने लगा। और नतीजा हुआ इसी महीना जेनरल नरावने को “तावीज़” के लिये अरब भेजा।
यह किसान आंदोलन पार्ट-२ है शाहिन बाग का। दोनो अल्पसंख्यक ने शुरू किया यह बहुसंख्यक तो चुप ही थे सात साल से।
अब सब लोग जुटें गे इस मे।एक पार्ट-३ भी आये गा, इंतज़ार किजये। संघ और बीजेपी ने देश को 50 साल के लिये कुऑ मे ढकेल दिया मगर जो हुआ सही हुआ वरना “संघ दिल” जो अंधॉ हो गया था उस मे फिर दोबारा “रौशनी” नही आती।