Post of 10th November 2021
मोहम्मद बदिउज़्ज़मॉ साहेब ने अपनी किताब “इक़बाल के कलाम मे क़ोरानी तलमिहात और क़ोरानी आयात के मनज़ूम तरजुमे” मे लिखा है कि कलमा #तैय्यबह ला इलाहा इल्लल्लाह का ज़िक्र क़ोरान करीम की सूरह इब्राहिम की आयत 24 मे वारिद हुआ है।
कलमा तैय्यबह से मुराद वह क़ौल हक़ और अकिदह सालेह है जो सरासर हक़ीक़त और रास्ती पर मुबनी है। अल्लाह की दो शाने हैं। शाने जलाल और शाने जमाल। “ला इलाहा” उस की शाने जलाल का मज़हर है और “इल्लल्लाह” उस की शाने जमाल का, जिस से उस की हस्ती बारी का इतबात होता है।यही दोनो इस्लाम की असल रूह है और इंसानी जिंदगी की तकमील के लिए यही दो चीज़ें ज़रूरी हैं………
ला इलाहा इल्लल्लाह की #तलमीह से इक़बाल के कलाम मे कुल आठ अशआर हैं जिन मे सात “ज़रबे कलीम” की नज़म “ला इलाहा इल्लल्लाह” ही मे हैं।इस #इस्तलाह से इक़बाल के कलाम मे आठ “मुनफरिद शेर” हैं।
इस नज़म मे इक़बाल ने इस इस्तलाह को बतौर #रदीफ इस्तमाल किया है। हर शेर के हर मिसरा और हर मिसरा के हर टुकड़ा मे क़ोरानी आयत के समुंदर को कुज़ा मे बंद कर के इस इस्तलाह को रदीफ के तौर पर ला कर मुस्लमानो की बे-अमली, बे-दीनी और ग़ैर इस्लामी रवैय्य जिंदगी पर अपने तरकश के तीरों से तंज़ लगाये हैं।
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कल Misbah Siddiki साहेब ने यह नज़म पोस्ट किया जिस पर Mozaffar Haque साहेब को इक़बाल के नीचे लिखे शेर पर याद किया था।
یہ دور اپنے براہیم کی تلاش میں ہے
صنم کدہ ہے جہاں لا الہ الا اللہ”
“ये दौर अपने बराहीम की तलाश में है
सनम-कदा है जहाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह”
मोहम्मद बदिउज़्ज़मॉ लिखते हैं “बराहीम” की इस्तलाह से इक़बाल के कलाम मे कुल चार (4) शेर हैं।इक़बाल ने इस शेर मे यह ज़हन नशीन कराया है कि दीन इस्लाम के यही दो सतून हैं।
ज़मॉ साहेब लिखते हैं, सूरह अल अहज़ाब की आयत 21 मे रसूल अल्लाह सल्लल्लाहे वसल्लम के “एसवए हुस्नह” (اسوہ حسنہ) की पैरवी उम्मते मोहम्मदी पर लाज़िम क़रार दी गई तो उन्हें अलफाज़ मे, थोड़े बहुत रद्दो बदल के साथ हज़रत इब्राहिम एलैहिस्सलाम के एसवए हुस्नह की पैरवी सूरह अल मुमतहनह की आयात 4 और 6 मे इस उम्मत के लिए लाज़मी क़रार दी गई है।
इसी लिए इक़बाल ने इस मिसरा मे दीन इस्लाम का हज़ूर अक़दस सल्लल्लाहे वसल्लम और हज़रत इब्राहिम एलैहिस्सलाम को रूहानी कमालात का आईनादार बताया है।
خودی کا سر نہاں لا الہ الا اللہ
خودی ہے تیغ فساں لا الہ الا اللہ
ख़ुदी का सिर्र-ए-निहाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
ख़ुदी है तेग़ फ़साँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
یہ دور اپنے براہیم کی تلاش میں ہے
صنم کدہ ہے جہاں لا الہ الا اللہ
ये दौर अपने बराहीम की तलाश में है
सनम-कदा है जहाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
کیا ہے تو نے متاع غرور کا سود
فریب سود و زیاں لا الہ الا اللہ
किया है तू ने मता-ए-ग़ुरूर का सौदा
फ़रेब-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
یہ مال و دولت دنیا یہ رشتہ و پیوند
بتان وھم و گماں لا الہ الا اللہ
ये माल-ओ-दौलत-ए-दुनिया ये रिश्ता ओ पैवंद
बुतान-ए-वहम-ओ-गुमाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
خرد ہوئی ہے زمان و مکاں کی زناری
نہ ہے زماں نہ مکاں لا الہ الا اللہ
ख़िरद हुई है ज़मान ओ मकाँ की ज़ुन्नारी
न है ज़माँ न मकाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
یہ نغمہ فصل گل و لالہ کا نہیں پابند
بہار ہو کہ خزاں لا الہ الا اللہ
ये नग़्मा फ़स्ल-ए-गुल-ओ-लाला का नहीं पाबंद
बहार हो कि ख़िज़ाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
اگرچہ بت ہیں جماعت کی آستینوں میں
مجھے ہے حکم اذاں لا الہ الا اللہ
अगरचे बुत हैं जमाअत की आस्तीनों में
मुझे है हुक्म-ए-अज़ाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह