Post of 1st May 2022

आज मई दिवस पर मजदूरों किसानों के मसीहा पर बाबासाहेब आंबेडकर पर एक पोस्ट पढा कि “आंबेडकर ने ही महिला श्रमिकों के लिए मातृत्व लाभ जैसे कानून बनाने की पहल की थी जिस से महिलाओं को मेटरनिटी अवकाश की सुविधा लागू हुई” यह जिस ने भी लिखा है वह #गलत और #झूठ लिखा है।

#International Labour Organisation (ILO), 1919 में जेनेवा मे बना तो Tata उस मे सदस्य बने क्योकि Tata ने Labour Welfare के लिए आसाम मे Tea Garden मे दुनिया मे पहली बार महिलाओं को maternity leave दिया था तो टाटा को सदस्य बनाया गया।

बाद मे दुनिया मे बहुत से देशो ने लागू किया जिस मे भारत ने भी 1952 मे संविधान मे Indian Labour Law मे यह Provision रखा जिस मे एक हफ्ता मे अधिकतम 48 घंटा काम और एक दिन की छुट्टी का प्रवधान रखा गया, चूकि आज़दी के बाद भारत भी ILO का सदस्य बन गया था।

#दूसरा बात लिखा कि बाबासाहेब श्रम मंत्री की हैसियत से फैक्ट्रियों में मजदूरों के 12 से 14 घंटे काम करने के नियम को बदल कर 8 घंटे किया गया। यह भी #गलत है।

1929-39 के Great Depression के पहले दुनिया मे लोग हफ्ता मे सात दिन 12-14 घंटा काम करते थे मगर बरबाद अर्थव्यवस्था को देख कर अमेरिका मे 1932 मे पहली बार रविवार को एक दिन छुट्टी दिया गया और आठ घंटा काम दिया गया और तीन Shift का प्रवाधान शुरू हुआ ताकि ज्यादा लोगो को रोज़गार/मज़दूरी मिले, जिस को ILO ने माना।

आज कल आंबेडकरवादी लोग भीम राव रामजी आंबेडकर को बडा मसीहा बताने के चक्कर मे नैरेटिव बना कर गलत इतिहास लिखने लगे हैं ताकि सौ साल बाद आंबेडकर को लोग संविधान-मजदूर-महिलाओं के हित में ऐतिहासिक फ़ैसले का कृतज्ञ समझे जो गलत और झूठ है।

भारत मे सब से बडा रोज़गार देने वाला और मज़दूरों का मसीहा जमशेद नौशेरवॉ जी टाटा था और आज भी टाटा परिवार ही देश का मसीहा है।
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Some comments on the Post

Khursheeid Ahmad सर बहुत अच्छी पोस्टमज़दूरों के लिए जो काम बाबू जगजीवन राम ने किया है वह डाक्टर भीमराव अम्बेडकर ने नहीं किया हैमात्र 30 साल की उम्र में कोलकाता और बनारस में मजदूर यूनियन का नेतृत्व किया… See more

  • Mozaffar Haque, S M Taqui Imam bhai, बाबू जगजीवन राम पर आप भी कुच्छ रौशनी डालें.
  • S M Taqui Imam स्वर्गीय बाबु जगजीवन राम के काम करने का अन्दाज़ कुछ इस तरह था, के वह काम करते मगर उसकी क्रेडिट ख़ुद लेने की होड़ में नहीं रहते। वह बहूत ख़ामोश तबीयत और बिना प्रचार के काम करते थे। उनके काम पार्टी, समुदाय, देश और सरकार के शीर्ष के नाम होता था। मगर वह समय सच्चों का था, लेहाज़ा उनकी पार्टी, नेता उनके काम को समझते थे और उसकी सराहना करते थे।

Arif Kamal बेहतरीन जानकारी से भरपूर पोस्ट।

Abdul Bari बेहतरीन जानकारी सर.

Shamshad Ahmad शानदार पोस्ट सर बहुत बेहतरीन जानकारी।

Mozaffar Haque शानदार पोस्ट है.

Adv Sayyed Abbas Haider बिल्कुल सही लिखा, अगर इंटरनेशनल मामलों की जानकरी रखते या कंसील ऑफ फैक्ट न करते तो यही लिखा जाता जो आपने लिखा.

Tanveer Hkm प्रोफ़ेसर अब्दुल बारी भारत के इतिहास के बड़े मज़दूर लीडर हैं, जिन्होंने टाटा मज़दूर यूनियन की बुनियाद डाली थी।

Riyasat Shaikh बेहतरीन पोस्ट, वैसे भी आंबेडकर वादियों को संविधान तब ही याद आता है जब बाबा साहेब की मूर्ति टूटती है या जब आरक्षण ख़त्म करने की बात होती है, जबकि रोज संविधान की धज्जिया उड़ाई जाती है, और ए मौन रहते है बुलडोजर संस्कृति पर, संविधान याद नहीं आता !

Javed Hasan शानदार पोस्ट.

Dr-Asif Masood बहुत अच्छी मालूमात.

Kuldeep Singh बहुत ही खूबसूरत जानकारी सर.

Faysal Khan बोहोत अच्छी जानकारी सर.

Sanjay Nagtilak इतिहास पर पोस्ट करने के पहले जातिवादी चष्मा उतारना होता हैं तभी सच्चाई दिखती हैं.बाबासाहेब का विरोध करने के चक्कर में कुछ मुस्लिम अच्छे मुस्लिम के योगदान को भूल रहे हैं.एप्रिल 1945 में ये बिल पास हूआ था. और उसे कनुनन मान्यता मिली.


  • Chaudhary M M Hayat
    सर जय भीम वालों को लगता है कि सारा अच्छा काम बाबा साहब अंबेडकर ने ही किया है जबकि उनको साफ तौर पर पता है कि भारत का संविधान पूरा कॉपी पेस्ट है तो जाहिर सी बात है हर अच्छी बात पहले से ही किसी देश में लागू हो चुकी होगी.
    • Mohammed Seemab Zaman सही लिखा जय भीम वालों ने भी झूठ कहानी गढ़ कर आंबेडकर को महात्मा बनाने लगे हैं। भारत मे जो संविधान है वह अंग्रेजी के वक्त से चल रहा था, उस को ही जोड-घटा कर कॉपी पेस्ट और कोर्ट के फैसला को जोड कर compile किया गया मगर भीम वाले ऐसा बताते हैं कि संविधान आंबेडकर का #एजाद किया हुआ कोई चीज़ है।
    • S M Taqui Imam, Mohammed Seemab Zaman सारी copying है, गाँधी बनने और बनाने की। अलग अलग विचाराधारा वाले लोगों ने जब देखा कि गाँधी दुनिया के देश की पोलिटिकल पाठशाला में मशहूर हुए या यूँ कहिये के ब्रांड बने, तभी देश दुनिया दक्षिणपंथीयों में शीर्ष लोगों ने सावरकर को सेट करने लगे गाँधी की जगह और ऊधर दूसरे विंग ने बाबा साहेब को महात्मा बनाने में लग गये। दोनो पक्षों ने समझ लिया के महात्मा गाँधी बनाने से ज़्यादा अच्छी political gain होगी।
    • Sanjay Nagtilak S M Taqui Imam महात्मा गांधी के पहले महात्मा फुले हुए हैं.हम पता है बाबासाहेब और महात्मा फुले जी के योगदान को यहा का सवर्ण समाज और मुस्लिम कभी भी न्याय नहीं देगा.गांधीवादी हिंदू हो या मुस्लिम उनमें जातिवाद होता हैं.
    • Sanjay NagtilakS M Taqui Imamमहात्मा गांधी के पहले महात्मा फुले हुए हैं.हम पता है बाबासाहेब और महात्मा फुले जी के योगदान को यहा का सवर्ण समाज और मुस्लिम कभी भी न्याय नहीं देगा.गांधीवादी हिंदू हो या मुस्लिम उनमें जातिवाद होता हैं. आपका महात्मा गांधी दक्षिण आफ्रिकी में निग्रो के साथ नस्लभेद करता था इस लिए उनकी मूर्तियां हटाने का काम वहा का निर्गो कर रहे हैं.Mohammed Seemab Zaman सर,मैं मुस्लिम लोगों का दुःख समझ सकता हूं बाबासाहेब आगर मुस्लिम धर्म को अपना ते तो मुस उनकी पूजा करते ( मुस्लिम धर्म में मूर्ति पूजा मान्य नहीं हैं, फिर भी कुछ हिंदू और मुस्लिम जिन्ना की फोटो लगते हैं और उनके मजार पर माथा टेकते हैं.
    • Sanjay Nagtilak, Chaudhary M M Hayat अच्छी पोस्ट को कॉपी पेस्ट करने के लिए अच्छी सोच होनी चाहिए.पता नहीं संधी और मुस्लिम लोगों को बाबासाहेब से क्या नफरत हैं.वैसे देखा जाए तो जिन देशो में गुलाम प्रथा थी उसका कारण उनका धर्म था या पूंजिवाद था इस पर लोग मौन धारण करते हैं.
    • S M Taqui Imam, Sanjay Nagtilak महात्मा फूले ज़रूर महात्मा थे और हैं और उनका आदर है और रहेगा। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। यहाँ पर एक उदाहरण के तौर पर लिखा था। अगर महात्मा फूले के सन्दर्भ में कुछ लिखना होता तो मैं महात्मा फूले ही लिखता मान्यवर। बाबा साहेब एक विद्वान, एक विचारक, समाज सुधारक, भारतीय संविधान के जनक, राजनीतिज्ञ, मंत्री और एक पार्टी के संस्थापक रहे। मेरे हिर्दय में बाबा साहेब के लिये असीम सम्मान है। और रहेगा।महात्मा का शब्द लोग इस्तेमाल करें हमें कोई आपत्ति नहीं, किन्तु महात्मा शब्द उसके लिए आता है, जो नि:स्वार्थ भाव से बिना किसी राजनैतिक पद, सदन की सदस्यता के एक फ़क़ीर की तरह अपना जीवन गुज़ारने वाला मर्गदर्शक ही हो सकता है। जो महात्मा गाँधी थे। ये और बात है के बाबा साहेब ने उन्हें शायद महात्मा स्वीकार नही किया। तो ये दो बड़े, ज्ञानी महापुरुषों की बात है, इसमें हमारे जैसे छोटे साधारण व्यक्ति के लिये टिका टीपन्नी करने की ना कोई हैसियत है और ना मैं कर सकता हूँ। देखिये समाज की क्या हालत और द्वेषता हो गई है के मेरे एक बात पर मेरे पूरे समाज और धर्म को आपने चौराहे पर खड़ा कर दिया। धन्यवाद।
    • S M Taqui Imam प्यार करना सीखें, नफ़रत के लिए बड़ी बड़ी फ़ैक्टरी देश में चल रही है। उसे योगदान की ज़रूरत नहीं है। देश को प्यार, सद्भाव, सौहार्द के योगदान की बड़ी ज़रूरत है।
    • S M Taqui Imam, Sanjay Nagtilak मुझे इसकी क़तई चिंता ना थी और है के कोई मुस्लिम हुआ अथवा नहीं हुआ। धर्म एक पर्सनल प्रैक्टिस है। और इस्लाम धर्म में कहा गया है के धर्म पर कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं। जो जिस धर्म को माने या ना माने। या फिर नास्तिक ही क्यों ना हो। हर आदमी अपना स्वयं ज़िम्मेदार है धर्म, आस्था के लिये। हम महापुरुषों का धर्म देख कर अनुयायी नहीं होते। हम गाँधी विचारधारा के समर्थक हैं जबके धर्म से हम मुस्लिम हैं। और अपने धर्म से पूर्णतः संतुष्ट हैं। और महात्मा गाँधी एक सच्चे हिन्दू धर्म के अनुयायी थे।हम यानी मैं तकी ईमाम दूसरों के धर्म की आलोचना नही करते और दूसरे धर्म की आलोचना को बुरा समझते हैं। जय हिन्द।
    • S M Taqui Imam आदरणीय पाठकों, में दो महापुरुषों में एक को दूसरे पर वरीयता देने हेतु बड़ा छोटा अपने सुविधानुसार करने के पक्ष में कभी नहीं रहा। मुझे नहीं लगता के अपने नेता को बड़ा करने के लिए दूसरे महापुरुष को छोटा दिखाऊँ। अगर लोगों को इसमें मज़ा आता है तो आये। मुझे दुःख होता है। में जीवन का १० साल बाबु जगजीवन राम के संपर्क में गुज़ारा और उनके विचारों को बहूत नज़दीक से सुना, परखा। मेरे मित्र जानते होंगे के 6 कृष्ण मेनन मार्ग में मुझे समय लेकर पास बनवाकर नही जाना पड़ता था। और वोह कोठी भारत के उप प्रधान मंत्री बाबु जगजीवन राम जी का निवास स्थान था। वह मेरे लिये पिता तुल्य, अभिभावक नेता रहे मेरे जीवन में।में इस तरह के कटु बातों को पसंद नहीं करता। आगे से हम इस विषय पर कुछ नही लिखेंगे। कई दलित, और ग़ैर दलित नेता और एम॰पी॰ दोस्त रहे मेरे। किन्तु मेरी दोस्ती बराबरी के स्तर पर रही।
    • S M Taqui Imam इस तरह के तू तू में में की राजनीति का मैं घोर विरोधी रहा हूँ। जो चाहें मुझसे अलग हो जायें या कहें तो मैं unfollow कर सकता हूँ। रोज़ द्वेष का एक नया चैप्टर खोलना मेरी ideology नहीं। प्लीज़ स्टाप ।
    • S M Taqui Imam, Mohammed Seemab Zaman साहेब आप तो मुझे निजी रूप में बचपन से जानते हैं, के कॉलेज time आज तक किस प्रवृति का आदमी रहा हूँ। जे॰पी॰ आंदोलन के विरोध में अपने कॉलेज के स्टूडेंट्स को कहा के हम लोग इस आंदोलन में कॉलेज का बहिष्कार नहीं करेंगें और बाद में रिज़ल्ट भी आया केवल १०० नेता का भविष्य बना और करोड़ों छात्र बर्बाद हो गया। रोटी रोटी का मोहताज हो गया। लेकिन मेरे कॉलेज के लड़कों ने अच्छा किया और ९०% बच्चों ने अपना भविष्य बर्बाद होने से रोक लिया। क्यों? के मेरे कॉलेज में professors, teachers, doctors, Engineers officers और businessmen के बच्चे पड़ते थे। वह सब बदलाव चाहते थे मगर दूसरे के बच्चों द्वारा। अतः जब मैं कॉलेज मैं students से संवाद किया तो पूरा कॉलेज रोका नहीं के कॉलेज में तुम नेतागीरी करो। क्योंकि हम स्टूडेंट का फ़ायदा तो था ही आंदोलन में भाग ना लेना मगर उन अभिभावकों का ज़्यादा फ़ायदा था के उनका बेटा गुंडा, मवाली ना हो। हम इस राजनीति को सपोर्ट करते हैं जो सरल, सौहार्द के साथ उसका और देश का भविष्य बर्बाद ना करे।

Aalok Chouhan निहायत बकवास और जातिवादी धारणा से ग्रसित बकवास लेख, सब गलत शलत लिखा है । लेबर रिफार्म में वर्किंग ऑवर, मातृत्व अवकाश, मिनिमम wages जैसे बहुत सारे कानून 1942-1948 के बीच बने, जो डां आंबेडकर ने ड्राफ़्ट किये थे।ILO के रिकमेन्डेशन का उसमें असर था, पर भारत में ये सब लागू डां आंबेडकर ने ही करवाया। और जो वाह वाह और बेहतरीन लिख रहे है कमेंट मे सब के सब जाहिल भेंडे है जिनको जिधर हाको वहीं जायेंगी..

  • Mohammed Seemab Zaman, Aalok Chouhan साहेब, पढ़िये Indian Labour Law का details फिर कौमेंट किजये गा। आप को पता है ILO मे भारत का दो वोट है एक टाटा है दूसरा भारत का। Tata is pioneer of maternity leave in the world.Payment of Wages Act 1936 मे बना था, कह दिजये वह भी आम्बेडकर ने बनाया था। आम्बेडकर क्या अपने से गढ़ कर ड्राफ़्ट किया था, यहॉ कही से उठा कर ला कर ड्राफ़्ट किया था।