मोहम्मद बदिउज़्ज़मॉ
मोहम्मद बदिउज़्ज़मॉ के वालिद डाक्टर मोहम्मद ख़लील थे और वालेदह का नाम बीबी नफ़ीसा था। बदिउज़्ज़मॉ की पैदाइश 22 अगस्त 1922 की है और वफात 9 सितंबर 2009 को हारून कॉलोनी, फुलवारीशरीफ, पटना में हुआ। उन की शादी जुलाई 1944 को बेहरावॉ, पुन-पुन ज़िला पटना के एक ज़मिंदार ख़ानदान में हुई। उन को चार लड़के और दो लड़कियॉ हैं।
मोहम्मद बदिउज़्ज़मॉ ने 1937 में मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला स्कूल से मैट्रिक किया, 1941 मे मुज़फ़्फ़रपुर के जी-बी-बी कालेज (जिसे अब लंगट सिंह कालेज कहते हैं) से हिस्ट्री मे बी.ए (आनरस) किया।1943 में पटना यूनिवर्सिटी, पटना कालेज से हिस्ट्री मे एम.ए किया। 15 जनवरी 1944 को बिहार सरकार की नौकरी शुरू किया और 31 अगस्त 1980 को एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मेजिसट्रेट के ओहदा से रिटायर किया।
रिटायरमेंट के बाद पटना में बस गये और उन को 1985 मे अपनी अहिल्या के साथ हज बैतुल्लाह की सआदत नसीब हुई।
मोहम्मद बदिउज़्ज़मॉ ने अपनी एक किताब के दिबाचा में लिखा है कि “उर्दु अदब के नक़्कादो में बेशतर ने इक़बाल को मुफक्कीर तक मान्ने से इंकार किया है। किसी ने उन को मग़रबी मुफक्करीन का खोशा चीँ बताया, किसी ने उन को मग़रबी फलसफियों का चरबा बताया, किसी ने उन को मग़रबी फलसफियों का नक़ल क़रार दिया। उन चोटी के नक़्क़ादों में कोई यह कहने को तैयार नहीं के इक़बाल की सारी फ़िक्र क़ुरआन के महवर पर गर्दिश करती है और उस से अलग इक़बाल के फ़िक्र का कोई वजूद नही”
यही वजह रही के बदिउज़्ज़मॉ ने रिटायरमेंट के बाद इक़बाल के कलाम में डूबने के बाद यह समझ गये कि “इक़बाल के अशआर या उन की नज़्मों का तजज़िया क़ुरआन और हदीस की रौशनी में पेश करना उन का फ़र्ज़ है।”
मोहम्मद बदिउज़्ज़मॉ ने मज़मून नवेसी का पहले दौर का आग़ाज़ 1969 से शुरू हुआ जो 1973 तक रहा। मगर बाद में नौकरी की मशग़ूलियत की वजह कर लिखना बंद कर दिया। फिर दूसरा दौर 1983 से शुरू हुआ जो 2009 तक रहा। उन्होंने 2005 तक 1517 मज़मून लिखा जिस मे सिर्फ़ इक़बाल पर 918 मज़मून लिखा जो रेकार्ड है कि किसी एक शख़्स ने इक़बाल पर इतना मज़मून आज तक नहीं लिखा। वह अंग्रेज़ी और हिन्दी रसालों मे भी लिखते थे।
1986 में उन की पहली किताब “पेयाम इक़बाल” छपी और 1988 से दानिश बुक डिपो, टांडा, उत्तर प्रदेश ने उन की किताबें छापनी शुरू किया, जो अठारह (18) हैं।
1994 में हमदर्द यूनिवर्सिटी, करॉची, “बैत अलहिकमत” के हकीम नईमउद्दीन ज़ुबैरी, डायरेक्टर रिसर्च ने मोहम्मद बदिउज़्ज़मॉ का हेयात नामा (बायो डाँटा) और उन के हाथ का लिखा “ज़ौक हाज़िर है तो फिर लाज़िम है ईमान ख़लील” किताब का मसवदह मँगवाया कर सैकडो साल के लिए यह तारीख़ी सरमाया महफ़ूज़ कर दिया ताकि आने वाली बरर्सग़ीर के नस्लों के लिए यह मौज़ू-ए-फ़िकर बन जाये।
मोहम्मद बदिउज़्जमॉ का “हेयात नामा” और “मसवदा” हमदर्द यूनिवर्सिटी के शोबह मसवदात मोसन्फिन मे महफ़ूज़ कर दिया गया है जिस का अंदराज नम्बर 238 है।
निचे मोसनिफ मोहम्मद बदिउज़्ज़मॉ की 16 इक़बाल पर और दो (2) दूसरे मौज़ू (दीन व ईमान और मुसलमान औरत क़ुरआन की रौशनी मे) पर किताबों का नाम है:
1. पेयाम इक़बाल: 1986
2. ला ऐलाहा इलल्लाह: पहला एडिशन 1988, दूसरा एडिशन 1993
3.“मुझे है हुक्मे अज़ॉ ला ऐलाहा इलल्लाह” (इक़बाल के अशआर क़ुरआन की रौशनी मे): पहला एडिशन 1989, दूसरा एडिशन 1992, तीसरा एडिशन 1995, चौथा एडिशन 2002
4. “की मोहम्मद से वफ़ा तू ने तो हम तेरे हैं”: पहला एडिशन 1989, दूसरा एडिशन 1992, तीसरा एडिशन 1995
5. “रह गई रस्म अज़ॉ रूह बेलाली न रही” (इक़बाल के अशआर क़ुरआन की रौशनी मे): पहला एडिशन 1989, दूसरा एडिशन 1992, तीसरा एडिशन 2003
6.“ज़ौक़ हाज़िर है तो फिर लाज़िम है ईमान ख़लील” (कलाम इक़बाल क़ुरआन की रौशनी मे): पहला एडिशन 1990, दूसरा एडिशन 2003
7. दीन व ईमान: 1991
8.“तू ज़माने मे ख़ुदा का आख़री पैग़ाम है” (इक़बाल के अशआर क़ुरआन की रौशनी मे): पहला एडिशन 1992, दूसरा एडिशन 1995
9.“अम्ल से ज़िंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नुम भी”, इक़बाल रहमतुल्लाह के अशआर क़ुरआन की रौशनी मे: 1994
10. इक़बाल की जोग़राफियाई और शख़्सियतों से मनसूब इसतलाहात: 1995
11.“अम्ल से फ़ारिग़ हुआ मुसलमॉ बना के तक़दीर का बहाना” (इक़बाल का कलाम क़ुरआन की रौशनी मे):पहला एडिशन 1994, दूसरा एडिशन 1997
12. इक़बाल का पेयाम नौ जवानाने इस्लाम के नाम: पहला एडिशन 1994, दूसरा एडिशन 1996
13.“निगाह मर्द मोमिन से बदल जाती हैं तक़दीरें” (इक़बाल रहमतुल्लाह के अशआर क़ुरआन की रौशनी मे): 1994
14. इक़बाल के कलाम मे क़ुरआनी तलमिहात और क़ुरआनी आयात के मनज़ूम तर्जुमे: 1995
15. इक़बाल शायर क़ुरआन: 1997
16.“तलवार है तेज़ी मे सहबाये मुसलमानी”, क़ुरआनी आयात की रौशनी मे: 1999
17. मुसलमान औरत, क़ुरआन की रौशनी मे: 2001
18. “इक़बाल का तराना बॉगे दरा है गोया” (इक़बाल का कलाम क़ुरआन की रौशनी मे): 2002
इन किताबों के ऐलावा दो किताबें “माहिर एक़बालियात बदिउज़्ज़मॉ के नाम मौसूल्ह ख़तूत” को मुश़रर्फ आलम ज़ौक़ी ने किताबी शक्ल में छपवाया है और दूसरी किताब “मोहम्मद बदीउज़्ज़मॉ, एक़बालियात के आईना मे” डा० अहमद इम्तियाज़, शोबह उर्दू, दिल्ली यूनिवर्सिटी ने छपवाया है।
मोहम्मद बदिउज़्ज़मॉ की सभी 18 किताबें ख़ुदाबख्श खॉ लाईब्रेरी, पटना में मौजूद है और उन की ज़ाति लाइब्रेरी की सारी किताबें और रसालह वग़ैरह “अल माहद”, इमारत शरिया, फुलवारीशरी के लाईब्रेरी मे मौजूद हैं।