FB Post of 19-12-2020

सोहबत पीरू रोम से मुझ पे हुआ यह राज़ फ़ाश

लाख हकीम सर ब जीब, एक कलीम सर ब कफ” (इक़बाल)

मोहम्मद बदिउज़्ज़मॉ साहेब अपनी किताब मे लिखते हैं मोहम्मद इक़बाल मौलाना जलालउद्दीन रूमी को अपना पिर व मुर्शीद मानते हैं जिन से उन्होने अपना सारा फ़ैज़ हासिल किया। इक़बाल रूमी के बहुत बडे अक़ीदतमंद थे। इकबाल के कलाम मे रूमी पर पचीस (25) शेर है।

रूमी का नाम मोहम्मद और लक़ब जलालउद्दीन है। खानदान पहले खलिफा हज़रत अबू बकर (र०) से जा मिलता है। रूमी के दादा हुसैन बल्खी की शादी बादशाह खवारेजम की बेटी से हुई थी।बाद मे रूमी के वालदैन बादशाह व्कत से तंग आकर निशापुर से बग़दाद फिर हेजाज़ से होते हुऐ सिरिया होते हुऐ कौनिया (रोम) जो तुर्की मे है वहॉ बस गये।

मौलाना का इंतक़ाल 672 हिजरी (1207 AD) मे कौनिया मे हुआ और जनाज़ा मे बादशाहे वक्त, ईसाई, यहूदी सब शामिल थे। ईसाई और यहूदी इंजील और तौरात जनाज़ा मे पढ़ते रहे।

مثنوی مولوی معنوی

ہست قرآں در زبان پہلوی

मसनवी रोम मे 26607 अबियात (शेर) हैं।

Mazar of Maulana Rumi in Konya, Turkey