FB Post of 13th April 2021

संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार की कमिश्नर मिशेल बेशले (Michelle Bachelet) ने कहा है कि म्यान्मार मे मार-काट अब पुर्ण गृह युद्ध की तरफ बढ़ता जा रहा है। वह आज कल साऊथ इस्ट ऐशिया के दौरा पर हैं मगर वह थाईलैंड मे करोनटाईन मे फँस गई है।

बर्मा के आजादी (1948) के बाद 8-10 ग्रुप वहॉ औटोनमी मॉग रहे है। उस मे करेन (क्रिस्चन), अराकान, रोहंगिया (मुस्लिम) और दूसरे क़बायली (शान, चिन) लोग शामिल है।मगर वहॉ सेना हमेशा मार-काट कर इन लोगो को दबाती रही है (नीचे नक्शा देखे).

इधर फरवरी के बाद करेन/काचिन, शान और दूसरे कबाइली ग्रुप ने मिल कर बर्मा के सेना से लडने के लिये एक कमबाईंड आर्मी बना लिया है। वह लोग 15-20 साल के हज़ारों लडका-लडकी को सेना की ट्रेनिंग दे कर मिलिशिया बना रहे हैं। उधर चीन और रूस म्यान्मार सेना को मेलेटरी का साज़-व-सामान से लैस कर रहे हैं।

अब तक वहॉ प्रदर्शन कर रहे 800 लोगो को सेना ने मार दिया, हजारो को ऐरेस्ट किया है और सैकडो को सेना गायब कर दे रही है। वहॉ से लाखो लोग जान बचा कर भाग कर भारत और थाईलैंड मे पनाह ले रहे हैं।

बर्मा के चिन (Chin) प्रांत से मिज़ोराम का बोडर 402 km लम्बा पडता है और लाखो Chin और दूसरे शरणार्थी मिज़ोराम, मनीपुर, नागालैंड मे पनाह ले रहे हैं।मिज़ोराम के लोग और सरकार शरणार्थी की मदद कर रही है।डर है कि कहीं यह भी मिलिशिया न बन जायें।

हम को तो यह बर्मा कॉड एक “गृह युद्ध” की शुरूआत हमारे भारत के बोडर पर होता दिख रहा है।बर्मा को चीन-रूस कहीं अमेरिका-भारत के लिये दूसरा सिरिया न बना दें।सिरिया के लिये तो रोने वाले बहुत थे मगर बर्मा के लिये कोई नही रोये गा।

“गलती अंग्रेजों की है। उन्होंने औंग सान को सत्ता दे दिया जिसकी बेटी को अभी हटाया है। बर्मा में कई एथनिक ग्रुप्स हैं, उनको सत्ता में हिस्सा न देकर बामर मूल के लोगों के हाथ मे दे दिया। बामर लोग बामर राष्ट्र बनाने में लगे और माइनॉरिटी को दबाने लगे, सबको जंगलों और पहाड़ों में खदेड़ दिया। चिन, करेन, नागा, लुशाई, शान, रोहिंग्या, कचिन वगैरह पर जुल्म होता गया। जो ट्राइब्स थाईलैंड की साइड में थे उन्होंने मिलिशिया बना लिया और लड़ रहे हैं, हाथियों की पीठ पर बैठ कर। हमारी तरफ की सीमा में ऐसे ग्रुप नही पनपने दिया भारतीय और बर्मी सेना ने मिलकर (Comment of Jitendra Singh on the Post)

“औंग सान नेताजी की तरह ही जापानियों के ट्रेनिंग में सेना बनाया था, अंग्रेजों से देश आजाद कराने को, 1945 में जब जापानी पिटने लगे तो ये अंग्रेजों की तरफ हो लिया, इसके एवज में अंग्रेज इसको बर्मा दे गए। इसकी सेना दक्षिण बर्मा के मैदान के बामरो से बनी थी जिसमे और माइनॉरिटी ग्रुप्स नही थे। सत्ता में आने के बाद से ही इन लोगों ने सभी ग्रुप्स पर जुल्म किया। भारतीय मूल के लोगों को भी 1960 तक भगा दिया, बर्मा का बिजनेस का बड़ा नुकसान हुआ, जैसे युगांडा से भगाने पर हुआ था।(Comment of Jitendra Singh on the Post)