FB Post of 4-06-2021
NAWAB AHMAD SAID KHAN CHHATARI (1888-1982)नवाब छत्तारी खानदान के लोग पढे लिखे और दानिशवर रहे हैं। यह लोग अलीगढ मुस्लिम यूनिवरसीटी से भी बहुत जुड़े रहे हैं और जमीन वगैरह भी दिया था।
नवाब अहमद छत्तारी साहेब आजादी के पहले उत्तर प्रदेश और हैदराबाद वगैरह मे बडे बडे ओहदा पर रहे।यह अलिगढ मुस्लिम यूनिवरसीटी (AMU) के चांसलर (1965-82) भी रहे।
जब भारत आजाद हुआ तो लंदन मे कौमेन वेल्थ वाईस चांसलर की कांफरेंस हुआ (शायद 60 के दश्क मे), उस मे नवाब अहमद छत्तारी साहेब भी भारत से गये थे। वहॉ उन को एक अंग्रेज अफसर से नजर मिली जो आजादी के पहले अलीगढ मे शायद डिस्ट्रीक्ट कलक्टर थे जो उन के हवेली पर भी आते जाते और ठहरते थे। शाम मे वह अंग्रेज अहमद छत्तारी साहेब जहॉ ठहरे थे वहॉ पहुँच गया और खुब पुरानी गप-शप किया। जाते वक्त कहॉ कांफरेंस के बाद हम आप को लंदन घुमाये गें।
नवाब छत्तारी ने कहा हम को इंगलैंड मे वैसी चीज देखाव जो किसी ने नही देखा हो। वह कुछ देर चुप रहा फिर बोला ठीक है अगर सरकारी ऐजाज़त मिल गई तो हम आप को ऐसी जगह ले जायें गे जो शायद ही किसी दूसरे ने देखा हो।
दो दिन के बाद वह शाम को उन के पास आया और कहा कल हम आप को ले चलते हैं मगर आप वहॉ एक लवज नही बोलें गे और न कुछ पूछें गे। दूसरे दिन वह सुबह मे नवाब साहेब को अपनी कार मे ले गया। दो कार बदल कर दो घंटे के सफ़र के बाद एक पूराने महल मे पहुँचें जो क्रिस्चन खानक़ाह (Abbey) था। वहॉ नवाब साहेब ने देखा कई कमरे मे कुछ लडके और मर्द क़ुरान हिफ़ज कर रहे हैं तो दूसरे कमरे मे लडके उस्ताद से हदीस का दरस ले रहे थे।कहीं नेमाज़ सिखाया और पढाया जा रहा था।यानी वह मोकम्मल बडा इस्लामी मद्रसा था।
जब वह वापस आये और उस अंग्रेज ने बताया यह मद्रसा मे पचास साल से ज्यादा अरसे से गोरे और काले गैर मुस्लिम को इस्लाम की तालीम दी जाती है, फिर उन को मुस्लिम मूल्क भेजा जाता है। कुछ मस्जिद मे ईमाम हो जाते हैं, कुछ इस्लामिक सकोलर हो जाते हैं मगर वह सब ब्रिटीश सरकार के जासूस होते हैं।
दस-बीस साल मे वह समाज, ऐलाका या देश मे एक इज़्ज़तदार मुस्लिम की पहचान बना लेते हैं और ब्रिटिश सरकार के लिये बहुत सारी जानकारी जमा कर लेते हैं। कही कही यह लोग मुस्लिम मे गलत या ज़ईफ हदीस बोल कर दो गरोह मे लोगो को बॉट देते हैं।
#नोट: यह बात हम ने मलेरकोटला के उर्दु रेसाला मे 25 साल पहले पढा था। यह इंटरनेट पर भी खोजने से मिले गा। लौरेनंस ऑफ अरबियाँ (1888-1935) इसी मद्रसा के प्रोडक्ट थे जो ब्रिटिश आर्मी मे कैप्टन थे।