Post of 12th October 2021

DAVID CARD, MINIMUM WAGE EXPERT AWARDED NOBEL ECONOMICS PRIZE JOINTLY

कल तीन अर्थशास्त्री को नोबेल पुरस्कार दिया गया जिस मे कनाडा मे पैदा हुऐ डेविड कार्ड को उन के मज़दूरों को “न्यूनतम वेतन” के कार्य पर यह पुरस्कार दिया गया।डेविड को पुरस्कार की आधी राशि मिले गी।

डेविड कार्ड ने 1992 मे अमेरिका के न्यू जर्सी राज्य के मज़दूरों का न्यूनतम वेतन $4.25 से बढा कर $5.25 करने पर शोध किया और पाया की फ़ास्ट फ़ूड व्यवसाय मे रोज़गार बढ गया।

डेविड के इस शोध ने अमेरिका और यूरोप देशो मे न्यूनतम मज़दूरी को बढा कर लोगो का जिवन स्तर को बेहतर बनाने मे बहुत सहयोग दिया।पहले यह कहा जाता था कि न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाने से मज़दूरों और छोटे तथा मंझोले व्यवसाय पर खराब असर पडता है और बेरोजगारी बढ़ती है।

डेविड के शोध को मानते हुऐ इंगलैंड ने अप्रील 1999 मे राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन (National Minimum Wage) लागू किया। आज इंगलैंड मे न्यूनतम वेतन £8.36/hour है।अमेरिका मे न्यूनतम वेतन $7.25/hour है जिस को बाईडेन ने बढा कर $15 फ़ेडरल कांट्रेक्टर/ठेकेदार के मज़दूरों के लिये कर दिया है।

दो दूसरे अर्थशास्त्री ने मिल कर अमेरिका मे रिफ्यूजी या विदेशी प्रवासी के कारण दो राज्यों की अर्थव्यवस्था पर शोध कर पाया कि प्रवासी के कारण दूसरो के जौब पर बूरा असर नही होता है बलकि job opportunity और अर्थव्यवस्था बढ़ती है।

हमारे यहॉ सौ साल के सोंच वाले आसाम और भारत मे बंगलादेशी घुसपैठिया या अल्पसंख्यक को बहुसंखयक के बेरोजगारी का कारण बता कर समाज मे ज़हर घोल कर दंगा फ़साद कर देश की जीडीपी जलाते रहते हैं।इन तीनो अर्थशास्त्री का शोध सौ साल के सोंच वाले पढ कर देश सेवा करें और अमेरिका, चीन और मिडिल इस्ट के तरह देश को विश्वगुरू बनाये।
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Some Comments on the Post

Faisal Mohammad Ali Not only in Assam and north east but now the terminologies are mark jihad, UPSC jihad and land jihad and all

  • Mohammed Seemab Zaman God is great. What about Chinese Jihad in next two years?
  • Faisal Mohammad Ali after latest round of talks both issued strong worded statements. Its stuck they still have vast areas of India with them

Syed Abid Naqvi (FB Post on 12th October 2021)

शोध कार्य और अविष्कारों का सिलसिला नियॉनडरथल मैन से लेकर आज तक लगातार जारी है और जब तक मानव सभ्यता जीवित है तब तक यह सिलसिला जारी रहेगा और मानव सभ्यता नित नई ऊंचाइयां छूती रहेगी।

तमाम विकसित देश या तेज़ी से विकास की तरफ़ अग्रसर देश अपने यहां शोध कार्यों पर अपना सारा ध्यान लगाते हैं और उन्हीं शोधों के आधार पर अपनी ग्रह, विदेश, सामरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक रणनीति बनाते हैं।

लेकिन हमारे देश की नीति बिल्कुल अलग है, भारत में जो लोग शोध कार्य करते हैं उन्हें देश के ऊपर बोझ समझा जाता है, और यह परसेप्शन देशभक्त बिरादरी के लोगों ने बनाया है, JNU का उदाहरण सामने है, वहां के रिसर्चर को टैक्स पेयर का पैसा हज़म करने वालों में रखा गया।

ऐसे में सारे शोध के काम व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के पास हैं, जिनके सारे शोध सामाजिक होते हैं, उनके शोध यह तय करते हैं कि समाज के किस तबके की वजह से बेरोज़गारी है, कौनसा तबका जनसंख्या बढ़ा रहा है, अब्बाजान कहने वाले कितना खा जाते हैं, क्या खाना चाहिए क्या नहीं।

लेकिन काश कि इसी क्षेत्र में ढंग से शोध कर लेते तब भी शायद स्थिति बिल्कुल उलट होती और भारतीय समाज का हर वर्ग ख़ुशहाल होता।

लेकिन हम विश्वगुरु थे, हैं और जब तक मानव सभ्यता है तब तक रहेंगे, हमारी यह कुर्सी हमसे कोई नहीं छीन सकता।।

(Mohammed Seemab Zaman साहब की पोस्ट से प्रेरित)

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NOBEL PEACE PRIZE TO JOURNALISM

Nobel Peace Prize 2021 awarded to journalists Maria Ressa of Philippines & Dmitry Muratov of Russia for their efforts to safeguard freedom of speech, which is pre-condition for democracy and lasting peace.

‬डूब मरो 130 करोड दुनिया के सब से बडे प्रजातंत्र भारत के पत्रकारों और पत्रकारिता के बूद्धिजिवी लोग। लानत है 400 टीवी चैनल पर और भारतीय अखबार और मैगज़ीन पर जो आज 40 साल मे न एक अंतरराष्ट्रीय टीवी चैनल खोल सका न ही एक अखबार निकाल सका न ही कोई वेबसाईट।

#फिलिपिन्स की मारिया रेसा ने जब सूना तो वह चौक गई और कहा “When you don’t have facts you don’t have truth and you don’t have trust. Trust put together able to solve complex problems which we are facing today.” बिना सच के आप विश्वास नही कर सकते हैं।

#रूस की दिमित्रि मूरातोव ने कहा “This award recognises all the journalist who continued to shine even in darkest and to toughest hours” इस बार शांति पुरस्कार के लिये 329 लोगो का नाम था जिस मे दो पत्रकार को चूना गया। 1935 मे शांति पुरस्कार शुरू हुआ और यह पहली बार है कि शांति पुरस्कार किसी पत्रकार को दिया गया है।
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Comments on Post

Faisal Mohammad Ali
Indian journalism, except one or two exceptions, have always been serving those in power and have been anti-poor, those who are last in line. Its true character was visible during the period known as emergency, anti-Mandal agitation and spewing communal hatred.