FB Post of 25 October 2023
“न वह इश्क़ में रहीं गर्मियाँ, न वह हुस्न में रही शोख़ियाँ
न वह ग़ज़नवी में तर्डप रही, न वह ख़म है ज़ुल्फ-ए-ऐयाज़ में”
हमारे आदरणीय विश्वप्रख्यात दार्शनिक, इतिहास वेत्ता, धाराप्रवाह हिन्दी वाचक डाक्टर मोहन जी का विजयादशमी उत्सव का भाषण इस वर्ष बड़ा निराशाजनक रहा। उन्होंने अपने भाषण मे पहली बार हज़ार साल की विक्टिम होने की बात नहीं कही और पूरे भाषण मे एकता पर बल देते रहे।
सब से चौंकाने वाली बात इन्होंने खाँटी संधीतकार और कम्युनिस्ट को जोड़ कर मार्क्सवादी विचारधारा की बात कही और कहा लोगों ने मार्क्स की बात को भुला दिया।
ऐसा तो नहीं संध की सौ साल की पुरानी विचारधारा का अन्त हो गया और अब यह अपनी ही सरकार के खिलाफ मार्कस के सिद्धांतों पर चलने का मन बना लिया है और भारत की विदेशनीति को बदलने का यह प्रयास कर रहे है?
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Some comments on the Post
Qasim Chaudhary ये समझ ही नहीं पाए ओर दुनिया बदल गयी
- Mohammed Seemab Zaman, Qasim Chaudhary साहेब बिल्कुल सही कहा, यह जिस विचारधारा पर सौ साल से चल रहे थे, इन को सत्ता में आने पर पता चला कि “पश्चिमी देशों” ने इन को गले तो लगाया मगर दिया कुछ नहीं।जब वेस्टर्न लॉबी ने इन को छोड़ दिया तो यह मार्क्स को याद कर उन को कोस रहे हैं।
Arshad Rashid सर आदरणीय विश्वविख्यात दार्शनिक व डाक्टर साहब बदले भूगोल को समझ तो गए हैं मगर मानने व बोलने को तैयार नहीं। ये तेजी से बदले वैश्विक हालातों से हिल गए हैं। जिस दिन इन्होंने सार्वजनिक मंच पर ये स्वीकारा की वेस्ट ने इन्हे धोखा दिया इनकी शाखाएं लगना बंद हो जाएगी.
Salim Khan पहले खुद में बदलाव से शुरूआत करनी थी और ये हैं कि दूसरों को सही करने की बजाय तोहमतें लगाए फिरते हैं और क्योंकि चुनाव नजदीक है तभी ज़बान में शिरनी उतर आई है। काम के नाम पर कारनामें जगजाहिर हैं इसलिए सभी के साथ का नारा बुलंद कर रहे हैं।
Mohammad Ishteyaque आरएसएस एक अपने आप में माया है..…ये बहुत गहरे है और अपने लक्ष्य के प्रति तनिक भी इधर या उधर नहीं …. ये अपने मिशन में ज्यादा जल्दबाज नहीं है….पर हां अभी सत्ता में मजबूती से आते ही अपने लक्ष्य प्राप्ति में लगे हुए हैं , अभी इनके ख्वाब वो खयाल में भी नही था कि दुनिया इतनी तेजी से बदलेगी….!! अब ये यहां पर थोड़ा ब्रेक ले सकते है….थोड़ा धीमा हो सकते है….यू टर्न भी ले सकते है …बहुत सारे मामले को ठंडा बसता में रख सकते है…!!
ये बोलते कुछ और करते कुछ है…ये देखते कुछ है और दिखाते कुछ है…. ये बताते कुछ है और भ्रमाते कुछ है…!
ये माकूल समय पर ही अपना काम करते हैं अन्यथा सुषुप्तावस्था पसंद करते हैं….! लक्ष्य प्राप्ति में सौ साल और क्यों न लग जाए…भारत पूर्णरूपेण रसातल में क्यों न चला जाए …ये अपने विचारधारा एवम लक्ष्य से बाज नही आयेंगे ।
अपने जैसे समान विचारधारा वाली एक कौम को अपना मित्र भी बना चुके हैं … अब इनका भविष्य उनके भविष्य पर निर्भर है …..ये अब दुनिया के उतार चढ़ाव के मुताबिक ही अपने क्रियाकलापों को नियंत्रित रखेंगे…!! दुनिया का कोई भी प्रोग्रेसिव मुल्क इनका मित्र नहीं हो सकता और राजनयिक स्तर पर (आरएसएस नियंत्रित) भारत सरकार का भी नहीं । उम्मीद है कि ये अब यहां पर थोड़ा रुकेंगे.
सौबान रजा बहुत शानदार लाइन सर. सर इनकी आंखे खुलेगी लेकिन तबतक भारत अंतर्राष्ट्रीय पटल पर इतना पीछे छूट गया होगा कि इसे फिर से खड़ा करने के लिए दशकों लग जाएगा।
#एकबार_फिर_संघी_सरकार
Kamil Khan इनकी पूरी विचारधारा कमज़ोर मुसलमानो के खिलाफ़ है, अब अचानक मुस्लिम का बढ़ता हुआ उरूज, और वेस्ट की गिरती हुई साख ने इनको कुछ नया सोचने को मजबूर कर दिया होगा, दूसरी तरफ़ अपने ही देश मे अगड़े पिछड़े की लडाई ने इन्हें परेशान कर के रख दिया, है,
सब से मज़ेदार बात तो ये है के कोई मुस्लिम देश संघ के खिलाफ़ भी नहीं दिखता, शायद मुस्लिम देश इनको बहुत हल्के मे लेते हैं, और थाली का बैंगन समझते हैं,