Post of 6th March 2021
“वह सकूते शाम सेहरा मे ग़रूबे आफताब
जिस से रौशन तर हुई चश्म जहॉबीने ख़लील”
यह शेर ईक़बाल ने सौ साल पहले कहा था जब यूरोपियन साम्राज्य ने सकूत शाम कर 1918 मे औटोमन एम्पायर का आखरी झंडा दमिशक़ मे ब्रतानिया ने उतार कर अपने क़ब्ज़ा मे ले लिया था। इंगलैंड ने वह झंडा 2013 मे तुर्की को लौटाया। हम ने उस झंडा को 2015 मे तुर्की की राजधानी अंकरा के म्यूज़ियम मे देखा है।
मगर आज फिर यह शेर सकूते शाम (2012-2021) पिछले आठ साल के क़तल व गारत गिरी के बाद जब यूरोप बरबाद हो गया तो दो हजार साल मे पहली बार पोप फ़्रांसिस पैग़म्बर ख़लील (एलैहिसलाम) के घर (यूर) इराक़ आ कर कह रहे हैं “हम सब एक है और मिल जूल कर रहें”।
वही ईक़बाल एक जगह इब्राहीम एलैहिसलाम के इस्तलाह “ब्राहीमी” इस्तमाल कर इब्राहिमी मजहब के क्रिस्चन और मुसलमान को उसी वक्त कहते है:
“ब्राहीमी नज़र पैदा ज़रा मोशकिल से होती है
हवस छुप छुप के सिने मे बना लेती है तस्वीरें”
1876 से डेह सौ साल यूरोप के उरूज के बाद जब 21वी सदी मे यूरोप बरबाद हो गया तो पोप फ़्रांसिस को इराक़ जाना पडा और तीन दिन रह कर सभो से मिलना और अमन की बात करना ईक़बाल को याद करने पर मजबूर कर देती है।
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