Post of 29 July 2023

रसूल अल्लाह ﷺ की पैदाइश मक्का मे 570 AD में बनी हाशिम के ख़ानदान मे हुई, उन का नानीहाल बनू ज़हरा मे था, क़ुरैश के ख़ानदान मे शब-व-रोज़ गुज़रा और शादी बनी असद में हुई।

मोहम्मद ﷺ की पहली शादी 25 साल की उम्र मे खदीजा से हुई, जिन से उन को छह (6) औलादें हुई, दो बेटा और चार बेटी।दोनों बेटा बच्पन मे इंतक़ाल कर गये मगर चारों बेटियाँ बड़ी हुई और शादी हुई।

मोहम्मद ﷺ की उम्र जब 31 साल थी तो बड़ी बेटी ज़ैनब की पैदाइश हुई, जब 33 साल के उम्र में दूसरी बेटी रोक़्य्यह पैदा हुई, तीसरी बेटी उम्मे कुलसूम और 39 साल की उम्र मे चौथी बेटी फ़ातिमा पैदा हुईं।फ़ातिमा जब सवा साल की थीं तो 40 साल की उम्र मे रसूल अल्लाह ﷺ को नबौवत मिली।

फ़ातिमा बिंत मोहम्मद जब दस साल की थीं तो उन की मॉ खदिजा का इंतकाल मक्का में हुआ। फ़ातिमा 14 साल की उम्र मे हिजरत कर 622 मे मदीना पहुँची और 16 साल की उम्र मे मदीना मे हज़रत अली से उन की शादी हुई।

फ़ातिमा बिंत मोहम्मद को पॉच औलादें हुई, तीन बेटा और दो बेटी और 25 साल के उम्र मे इंतक़ाल हुआ।हज़रत अली और फ़ातिमा के पहली औलाद हसन थे, दूसरे हुसैन, तीसरी बेटी ज़ैनब, फिर बेटी उम्मे कुलसूम और आख़री बेटा मोहसीन थे जो बच्पन मे ही इंतक़ाल कर गये।

ज़ैनब बिंत अली की शादी अबदूलालाह इब्न जाफ़र से हुई और उम्मे कुलसूम की शादी उमर इब्न अल खत्ताब से हुई जो दूसरे ख़लीफ़ा बने।

रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़ातिमा रज़ी अल्लाहो अंह के बारे में कहा कि फ़रिश्ते जिबरईल ने उन को यह ख़ुशख़बरी दी है कि “फ़ातिमा जन्नत में औरतों की सरदार होगी”

मोहम्मद बदीउज़्ज़मॉ साहेब अपनी इक़बाल की इस्तलाह वाली किताब में लिखते हैं कि चौथे ख़लीफ़ा हज़रत अली के इंतक़ाल के बाद 41 हिजरी में अमीर मावीयह ने “बनी उम्मेयह” खिलाफ़त क़ायम किया जिस को अबू अब्बास ने 132 हिजरी में ख़त्म कर बग़दाद मे “खुलफाय बनी अब्बास” क़ायम किया।

अमीर मावीयह के पर-दादा ऊम्मेयह बिन शम्स रसूल अल्लाह ﷺ के दादा अब्दुल मुतल्लिब के चचा ज़ाद भाई थे। अमीर मावीयह का शिजरह नस्ब पॉचवी पुश्त मे रसूल अल्लाह ﷺ के शिजरह नस्ब से जा मिलता है।

ज़मॉ साहेब लिखते हैं कि 60 हिजरी में अमीर मावीयह के वफ़ात के बाद उस का बेटा यज़ीद मसनद ख़िलाफ़त पर बैठा जो कुत्तो, बंदरों और औरतों का शायक़ था। यज़ीदी फ़ौजों के हाथों ईमाम हुसैन की शहादत पर मौलाना मोहम्मद अली ज़ोहरा का शेर है,

“क़त्ल हुसैन असल में मर्ग यज़ीद है
इस्लाम ज़िंदा होता है हर करबला के बाद”

आख़िर में ज़मॉ साहेब इक़बाल के एक शेर के मिसरा लिखते है,
صدقِ خلیل بھی ہے عشق، صبر حسین بھی ہے عشق
معرکۂ وجود میں بدر و حنین بھی ہے عشق
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Some comments on the Post

Mohammed Seemab Zaman दस दिन से देख रहे थे मुहर्रम पर बहुत सारा पोस्ट। आज आशूरा ख़त्म हुआ, पता नहीं कितने लोगों ने रोज़ा रखा या नफिल नेमाज़ आशूरा पढ़ी, या तिलावत क़ुरआन की?

Firoz Siddiki पिछले 10 दिनों से लगातार बहुतों को पढ़ता आ रहा हूं लेकिन कमेंट किसी पर नहीं किया सब अपने अपने तरीके से लिख रहे हैं. लेकिन आपका पोस्ट बेहतरीन है. जजाक अल्लाह.

Misbah Siddiki सर, कौम का हाल देख कर वाकई बहुत अफ़सोस और मलाल वाली कैफियत रही। करबला में अहले बैत ने जान देकर हक़ की शहादत ही नही दी थी बल्कि मोहब्बत की बेमिसाल शहादत(गवाही) भी थी जिससे ज़ाहिर होता है कि मोहब्बत अमल से ज़ाहिर होती है।

बीबी ज़ैनब (رضي الله عنها) ने अपने अल्लाह और नाना जान नबी अलैहिस्सलाम से हकीकी मोहब्बत की शहादत (गवाही) दी थी।

हम सोच कर देखे कि जिसका भाई और खानदान के तमाम अफ़राद शदीद ज़ुल्म ज्यादती के बाद सामने शहीद पड़े हों। भूख प्यास की शिद्दत भी हो, कपड़ों भी बेतरतीब हों, सर की चादर भी सही सलामत न हो, लेकिन उस हालत में भी बीबी ज़ैनब ज़ुहर की नमाज़ अदा करना नहीं भूलीं, क्यों??? असल मोहब्बत का तकाज़ा जो था, “नमाज़ मेरी आंखों की ठंडक है”, “नमाज़ कुफ्र और इस्लाम के बीच की दीवार है” बीबी ज़ैनब ने अपने नानाजान के ये कौल ज़रूर सुने होंगे ही । ज़ुहर की नमाज़ के बाद बीबी ज़ैनब की अल्लाह से की गई मुनाजात को याद कीजिए कि “ऐ अल्लाह इस हालत में अदा की गईं नमाज़ को कूबूल फरमा वर्ना रोज़ मेहशर अपने नाना जान को क्या मुंह दिखाऊंगी”

असल मोहब्बत अमल से ज़ाहिर होती है ना कि नारों, मूर्तियों, स्टेच्यू, दहकते अंगारों के अलाव पे कूदने से या नए नए हथकंडों से, जिसका दीन से, अहले बैत से, और कर्बला से ताल्लुक नही दिखता।

आप रोज़े की सुन्नत, हुक्म ए रसूल अलैहिस्सलाम की बात कर रहे हैं जबकि हमें तो इन्ही दो दिनों में पूरे दिन शरबत बांटना और लंगर करना है।

  • Mohammad Ahmed Tasleem, Misbah Siddiki बहुत खूब सर जी बहुत अच्छा लिखा यह समझना चाहिए लोगों को हम कहां खड़े है.
  • Syed Asif Ali, Misbah Siddiki  सर आपकी कमेंट रुला गई। बहुत खूब लिखा है। 

Jamal Warsi 4 बेटियो के बारे तफसील से जानना चाहता हूं।क्युकी आप बिना तहकीक के नही लिखते है,

  • Mohammed Seemab Zaman *ज़ैनब की शादी अबूल आस (Abu As) से हुई जो उस वक्त मक्का के बहुत इज्जतदार आदमी (Nobel citizen) थे। जिसे से तीन औलाद हुई और वह 31 साल की उम्र मे मदीना हिजरत के दौरान किसी ज़ख़्म की वजह कर इंतकाल हुआ।
    *रोक़य्या की शादी अबू लहब के बेटा उतबा (Utba) से हुई, मगर जब रसूल अल्लाह को पैग़म्बरी मिली तो उन को अबू लहब ने बेटा से तलाक़ दिलवा दिया। बाद मे उन की शादी बनु उम्मीयह के उस्मान बिन अफान से हुई जो बाद मे तीसरे खलिफा बने। रोक़य्या को उस्मान बिन आजान से एक बेटा हुआ जो 6 साल की उम्र मे इंतकाल कर गये। रोक़य्या का इंतकाल 23 साल के उम्र मे हुआ।
    *रोक़य्या के वफात के बाद हज़रत उस्मान की शादी रसूल अल्लाह की तीसरी बेटी उम्म कुलसुम से हुई जिन की उम्र उस वक्त 20 साल थी। सात साल बाद वह 27 साल की उम्र मे उन का इंतक़ाल हुआ, उन को कोई औलाद नही थी।
    *चौथी फ़ातिमा की शादी हज़रत अली से 16 साल की उमर मे हुई और पॉच औलाद हुई, उन का 25 साल के उम्र मे इंतकाल हुआ। वह बहुत बहादुर थी, जंग बदर मे बिमार और ज्खमी लोगो की ऐलाज किया। इकबाल के शेर मे जंग हुनैन और बदर का ज़िकर है।

Kamil Khan आप ने बहुत अच्छी तरह इस्लामी तारीख को सामने रखा, और सुन्नी पक्ष किसको सही और किस को ग़लत लानत जदा मानता है ये भी लिखा, और भी बहुत कुछ समेट कर छोटी सी पोस्ट पेश किया.

Yousuf Burney अमीर मुआविया, रसूलुल्लाह के ही शजरे से बावस्ता थे…ये आज पता लगा…

  • A.K. Siddiqui, Yousuf Burney इमाम हुसैन और यज़ीद के घराने में भी शादी हुई थी,,इसको जानकार बताएंगे,,