Post of 16 May 2024

आज रूसी राष्ट्रपति पुटिन चीन के दो दिन के दौरा पर बीजिंग पहुँचे, जहॉ उन का चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भव्य स्वागत किया।पुटिन और शी, दोनों नेताओं ने इस अवसर पर “एक नए युग” के शुरआत के लिए चीन-रूस रणनीतिक साझेदारी को गहरा करने पर एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किया।

पिछले दस साल मे राष्ट्रपति पुटिन और राष्ट्रपति शी जिनपिंग सब से अधिक 43 बार एक दूसरे से मिले।दूसरे नंबर पर भारतीय प्रधानमंत्री मोदी 19 बार शी जिनपिंग से मिले हैं और तीसरे नम्बर पर अमेरिकी राष्ट्रपति रहे हैं (नीचे ग्राफ़ देखे)।

पुटिन के साथ रूस के नये रक्षामंत्री जो एक अर्थशास्त्री हैं और चीन के बहुत गहरे दोस्त हैं वह भी गये हैं ताकि रक्षा क्षेत्र के साथ आर्थिक संबंधों को मज़बूती प्रदान हो।पिछले एक दशक में चीन-रूस का व्यापार तक़रीबन तीन गुना बढ़ कर $240 billion का हो गया है जबकि भारत का बढ़ कर $125 billion हो गया है।

2013 मे शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बन्ने पर चीन दुनिया में एक महाशक्ति बन कर उभर गया है, जिस का मुख्य कारण चीन की दुनिया की दूसरी बड़ी $17 trillion की अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति है। पिछले दस साल मे शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बन्ने के बाद अमेरिका का वर्चस्व दुनिया में समाप्त होना शुरू हुआ।अब रूस-यूक्रेन युद्ध तथा इसराइल-प्रतिरोधी ताक़तों के मार-काट ने अमेरिका के युग का अंत कर दिया और “एशिया युग” का उदय हो गया।

कल सिंगापुर मे लॉरेंस वोंग ने 1965 मे सिंगापुर के आज़ादी के बाद चौथे प्रधानमंत्री का शपथ लिया और The Economist, London को दिये एक साक्षात्कार में कहा कि “हम चिंतित हैं क्योंकि जियोपौलिटिक्स परिवर्तनशील स्थिति में है। वैश्विक व्यवस्था बदल रही है। अमेरिका के लिए एकध्रुवीय क्षण समाप्त हो गया है। दुनिया बहुध्रुवीय दुनिया में परिवर्तित हो रही है और यह परिवर्तन अव्यवस्थित होगा क्योंकि नई व्यवस्था अभी तक स्थापित नहीं हुई है। मुझे लगता है कि यह कुछ वर्षों, शायद एक दशक तक अव्यवस्थित रहेगा। और हम सभी को दुनिया में अपना रास्ता खोजना होगा……..”

#नोट: भारत में जो अभी चार महीना से चुनाव का महा-पर्व चल रहा है, उस में कोई भी भारतीय नेता ने सिंगापुर के नये प्रधानमंत्री वोंग के तरह दुनिया के किसी मीडिया को साक्षात्कार नहीं दिया क्योंकि वह सभी अपने सौ साल के सोंच; हिन्दु-मुस्लिम, पाकिस्तान-ईरान, बैकवर्ड-फ़ॉर्वर्ड, उत्तर भारत-दक्षिण भारत, 5 किलो-10 किलो अनाज की राजनीति का ही खेल खेल रहे हैं।

चुनाव का रिज़ल्ट जो भी हो, भारत का कोई नेता “परिवर्तनशील वैश्विक व्यवस्था” को समझने और भारत को विश्वगुरु बनाने में सक्षम नही है।

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