30 January 2023

राहुल गॉधी की कन्याकुमारी से कशमीर की 135 दिन, 14 राज्य और 3960 किलोमीटर की लम्बी “भारत जोड़ो यात्रा” आज खुशी खुशी श्रीनगर मे ख़त्म हुई।हम सब को मोबारक हो।

भारत के कथित वरिष्ठ पत्रकार या दूसरे लोग इस यात्रा पर जो भी टिका टिप्पणी करें मगर मेरे एनेलेसिस से “#दुनिया ने राहुल गॉधी की इस यात्रा को सफल मान लिया”

राहुल के यात्रा के आखरी फ़ेज़ मे ब्रिटिश विदेश विभाग का वीडियो तथा एक इस्राईली ड्राईवर की हिंडनबर्ग रिपोर्ट इस बात का सबूत है कि दुनिया ने राहुल की यात्रा को सफल स्वीकार कर लिया।वरना कोई जरूरत नही थी 22 साल पूराने गड़े मुर्दा को पुन: जिंदा करने की या अदानी के सरकारी दौलत को उजागर करने की।सब को वीडियो और अदानी की असलियत मालूम है, यह कोई नई बात नही है।

आम आदमी राहुल के इस सफल यात्रा को सरकार बदलने या सीमा पर शांति की उमीद से नही देखें।राहुल गॉधी केन्द्र मे सत्ता परिवर्तन के जल्दी मे नही हैं क्योकि वह चाहते हैं कि जिन लोगो ने यह सरकार बनाई है और चीन का तुष्टीकरण किया है, वही इस को भूगतें और अंजाम को पहुचें।

इस यात्रा से राहुल गॉधी एक “नया कांग्रेस” बनायें गें जिस मे बहुत सारा नया चेहरा नज़र आये गा।अगले दस साल बाद सुंदर भारत बनता नज़र आये गा जिस मे सब का साथ, सब का विकास होगा। जय अल हिन्द।
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Some comments on Post

Mohammed Seemab Zaman अब विपक्ष को सोंचना है कि उन को क्या करना है? यह जो हर राज्यों मे एक एक नेता एक पार्टी बना कर अपना Kingdom बनाये हुऐ हैं, अब वह लोग एक जुट हों और साथ मे मिल कर चुनाव लडें और देश की अर्थव्यवस्था को सुधारे मगर विपक्ष भी सीमा पर शांति नही ला सकता है।

  • Mehndi RazaMohammed Seemab Zaman दिल जीतने वाली बात कही सर.
  • Misbah Siddiki, Mohammed Seemab Zaman सर,पार्टी को विरासत राज्य सत्ता को किंगडम समझने वाला कथित विपक्ष ही संघ का असली टूल्स है, संघ को अपने पचासवें साल ही समझ आ गया था कि वो अकेले नेहरू, आज़ाद, पटेल और शास्त्री की कांग्रेस से पार नहीं पा सकता और 1977 आते आते उसे कामयाबी और मुस्तकबिल के लिए ज़रूरी हिम्मत मिल ही गई थी। और अगले पंद्रह सालों में राज्य स्तरीय सूरमाओं और उनके किंगडम की झड़ी लग थी। यही वजह थी कि 1992 आते आते उत्तर प्रदेश सूबे में उसका कारकुन मुख्यमंत्री बन चुका था। आप बेहतर से जानते हैं ज्यादातर रियासती सूरमाओं के पीछे शुरुआती ताक़त, मौक़ा, मजमा, में कहीं न कहीं संघ शामिल था। और दूसरी बात विपक्ष के नाम पर ऐसे कितने लोग हैं जो संघ नीत भाजपा/एन डी ए सरकार में शामिल न रहे हों।अब ऐसे विपक्षी सूरमाओं से कोई बड़ी उम्मीद राहुल गांधी को भी नहीं होगी तभी तेलंगाना वाले केसीआर की दो मुंहेपन पोलपट्टी राहुल गांधी ने ख़ुद ही खोल दी थी।
  • Mohammed Seemab Zaman, Misbah Siddiki साहेब, आप ने बिल्कुल सही लिखा “संघ को अपने पचासवें साल ही समझ आ गया था कि वो अकेले नेहरू, आजाद …….से पार नही पा सकते हैं और 1977..”लेकिन सौवें साल संघ को अपनी हुशयारी की किमत चूकानी होगी।

Saurabh Prasad लेकिन अगर आरएसएस को दया दिखाकर छोड़ा गया तो वो फिर जहर फैलाने एक दिन लौट आएगा

  • Mohammed Seemab Zaman, Saurabh Prasad साहेब, आरएसएस से 1/3 हिन्दु आबादी जुड़ी है, उस को कोई सरकार ख़त्म नही कर सकती है, उस को उस से जुड़े लोग ख़त्म कर सकते हैं। मगर हम चाहते हैं आरएसएस रहे वरना हर गली हर मुहल्ला मे हर जाति, हर संप्रदाय के एक आरएसएस खुल जाये गा। आरएसएस से अल्पसंख्यक को घाटा कम भायदा ज्यादा है मगर बहुसंखयक को घाटा ज्यादा, फायदा कम है।