Post of 24-09-2022

Faisal Mohammad Ali, BBC Hindi लिखते हैं “गुरुवार को दो ख़बरें प्रमुखता से छाई रहीं, एक ‘कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन’ पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई) से जुड़े ठिकानों पर छापे और गिरफ़्तारियाँ और दूसरी, आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत का एक मस्जिद में जाना।” उन्होंने लिखा “माना जा रहा है कि आरएसएस अपनी मुस्लिम विरोधी छवि को तोड़ने और मुसलमानों के एक #तबके को अपने साथ जोड़ने की कोशिश के तहत संपर्क अभियान चला रहा है.”

फैसल साहेब लिखते हैं कि “आरएसएस प्रमुख का दिल्ली मस्जिद जाना ठीक उसी दिन हुआ जिस दिन दिल्ली के कई अख़बारों और वेबसाइट्स के माध्यम से मोहन भागवत और पाँच मुस्लिम बुद्धिजीवियों की भेंट की ख़बर आम हुई, जब कि ये मुलाक़ात एक महीने पहले 22 अगस्त को हुई थी।”

फैसल साहेब के लेख मे लिखे #एक_तबक़ा ने मुझे तबलीग़ी जमात के इतिहास की याद देला दिया।इसी मुस्लिम गुमराह तब्क़ा के वजह कर 1920 के दश्क मे दिल्ली के नेजामउद्दीन बसती मे तबलीग़ी जमात भारत मे शुरू हुआ जो आज पूरी दुनिया मे मुस्लमानो को गुमराही से बचा कर इस्लाम के मूल सिद्धांत को पालन करने की शिक्षा मे लगा है।

यह गुमराह तब्क़ा आजादी के बाद पंजाब से लाखो की संख्या मे पाकिस्तान चला गया था मगर फिर 1954 मे पंडित नेहरू से मिला और कहा हम वापस आना चाहते हैं तो नेहरू ने सब को वापस बोला लिया।मुस्लिम घर्म मे आने के बाद भी इन के यहॉ हिन्दु से शादी करने का रेवाज आज भी चला आ रहा है क्योकि यह अपने को कृष्ण का वंशज कहते हैं।एक ही घर मे मर्द नेमाज पढ़ता है और औरत पूजा करती है।सूनते हैं कि तबलीग़ के कारण अब इनकी गुमराही कम हुई है, वल्लाहो आलम।

पंजाब के बँटवारे के बाद अब इस तब्क़ा का एलाक़ा हरियाणा मे पडता है जिस का नाम अभी भी शायद मेवात है।इस हरियाणा के बहुत से राजपूत 1857 के बाद मुस्लिम हुऐ थे अपने नाम मे खॉन या कायमखानी लिखते हैं, यह राजिस्थान मे बहुत हैं और अपने पूराने रसम-व-रेवाज को भी मानते हैं।

बूद्धजीवियों के मिलने पर फैसल साहेब सवाल पूछते हैं कि क्या संघ को मालूम है कि “समुदाय में उनकी कितनी पैठ है?” इस सवाल का जवाब तो हम ने अपने पोस्ट मे अपने मित्र S M Taqui Imam साहेब के हवाले से दे ही दिया था कि “हर दौर मे धार्मीक विवाद से लोग अपनी राजनीतिक पहचान बना कर सत्ता का लाभ उठाते हैं।” शायद फैसल साहेब मेरा पोस्ट नही पढते हैं वरना उन को कई आदमी को फोन कर बुद्धिजीवियों के मुस्लिम समाज मे #पैठ की जानकारी प्राप्त करने की जरूरत नही होती।

#नोट: फैसल साहेब के लेख को एक बार ज़रूर पढिये, बहुत अच्छा लिखा है।वरना इस विवाद से हम परदा नही हटा पाते।

https://www.bbc.com/hindi/india-63005244?fbclid=IwAR37XjbW4NoGrjguS8HFySO_YZ_qehtMlsA_kAKiHWcxb2EPh2t_EeEcrdQ
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Some comments on Post

Mohammed Seemab Zaman जहाँ तक हम को जानकारी मिली है मौलाना इलियासी मेवाती हैं। इस वजह कर इस टौपिक को ख़त्म किजये, वह किस से मिले या किस को राष्ट्रपिता कहा।

  • Kamran Rafiq, Mohammed Seemab Zaman सर जैसे रूस कुछ इलाकों को क़ब्ज़ा कर रायशुमारी करवा रहा है क्या ऐसा कुछ भविष्य में भी मुमकिन है?
  • Hasan Rajput, Mohammed Seemab Zaman सर में मौलाना इल्यासी के खानदान को जानता हूं यह खानजादे ज़मीदार है और यह नूह मेवात से हैं और इनको इनकी आरएसएस और बीजेपी संबंध और बयानबाजी की वजह से इनको कोई वहां इज्जत नहीं देता है इसी लिए यह इनकी फैमिली देहली में रहती है! जो बड़े ज़मीदार और खास शाख थी राजा हसन खां मेवाती की वो पाक चली गई वही आबाद है ।
  • Ashif Khan, Mohammed Seemab Zaman साहब यह नाम निहाद मौलाना नूह के पास मान्डीखेड़ा गांव का हैं ।
  • Faisal Mohammad Ali, Mohammed Seemab Zaman पढ़ने और हौसला अफज़ाई के लिेए बेहद शुक्रिया साहब. वैसे उन बातों का ज़िक्र नहीं लेख में जिसपर कुछ बहस छिड़ी है यहां! हम आख़िरी लफ़्ज़ लिखने का दावा भी क्योंकर कर सकते हैं.

Hasan Rajput में मुत्तफिक नहीं हू इस लेख में क्यू के कायमखानी और खांजादे राजपुत इतिहास बहुत पुराना है एक पूरी तारीख है फिरोजशाह तुगलक और मुहम्मद गौरी के वक्त से !!

  • Mohammed Seemab Zaman आप कायमखानी और खांजादे को कंफ्यूज़ड कर रहे हैं।

Hasan Rajput रही बात उमेर इल्यासी की इनको नूह मेवात में कोई पूछता भी नहीं है कोई इज़्ज़त नहीं है इनकी खांजादों और मेवों में।

Shahzad Arshi Gujarat gea haath se jo vote Aap ,owaisi,ya Congress le gi musalman ka us main kuch hissa agar ban jae muslim vote kuch humko bhi aa jae bus usi ki taiyari men hai.

Aabid Khan Sir hum bhi kayamkhani he rajsthan ke. Or jo apne likha h wo ek dam sahi h

  • Mohammed Seemab Zaman हमारे बहुत सारे कायमखानी दोस्त हैं, उन लोगो से बात होती रहती है तो यह सब जानकारी मिलती है।
  • Javed Ali, Aabid Khan क्या सही है कि कायमखानी 1857 के बाद मुसलमान हुए हैं??मेवात में रहने वाले मेव मुसलमान हैं। उनका खुद का समृद्ध इतिहास रहा है।कायमखानी इतिहास पर बहुत सारी किताबें हैं,अगर सम्भव हो तो पढ़ने की कोशिश कीजिएगा।।मरहूम दादा कायम खान फिरोज तुगलक के समय हुए हैं।
  • Hasan Rajput #मेव (मेवाती) मूलतः एक जातीय संगठन है..! जिनमें कुल,12 खापें (गण) और 52 गोत्र (वर्ग) हैं जिनमे आधी, यानि..6 खापों अहीरों से 18 गोत्र है।बाकी 6 खापों में से, 14 गोत्र जाटों से,10 गोत्र क्षत्रिय राजपूतों से, 10 गोत्र गुज्जरों से हैं।बहादुर नहार द्वार 1353 ईसवीं में स्थापित मेवात राज्य का वह सातवां शासक था। अलवर उनके राज्य की राजधानी थी। अलवर के उत्तर-पश्चिम अरावली पर्वत श्रंखला की एक चोटी पर हसन खां ने एक मजबूत किले का निर्माण कराया था। इस किले की बुलंदी तकरीबन एक हजार फीट है, इसकी लम्बाई तीन मील और चौडाई एक मील है। उनके किले मे 15 बडी और 52 छोटी बुर्जियां है। इस किले पर करीब तीन हजार पांच सौं कंगूरे हैं। यह किला बाला किला के नाम से मशहूर है।फिरोज तुगलक के समय में बहुत से राजपूत खानदानों ने इस्लाम धर्म कबूल किया था,उनमें सरहेटा राजस्थान के ‘राजकुमार समरपाल’ थे। समरपाल की पांचवीं पीढी में सन् 1492 में हसनखां के पिता ‘अलावल खां’ मेवात के राजा बने। मुस्लिम धर्म अपनाने के बाद खान जादू एवं खानजादा कहलाए। हसन खां सन् 1505 में मेवात के राजा बनें।मेवात के खानजादे राजपुत पूर्वी उत्तर प्रदेश और अवधि खानजादे राजपुत से अलग है।
  • Hasan Rajput, Mohammed Seemab Zaman सर मेवात के रहने वालों को मेव या मेवाती बोलते हैं जैसे पंजाब पंजाबी , गुजरात, गुजराती, काश्मीर कश्मीरी, अफ़गान अफगानी ,प्रसिद्ध हैं बाकी इनमे वंश जाती उपजाति जनजाति सब अपने अपने खानदानी पेशा निज़ाम के तौर तरीकों से रहते हैं और पहचान से.
  • Mohammed Seemab Zaman, Hasan Rajput साहेब, मव/मेवाती मे यह गोत्र वाली बात हम को नही मालूम थी। बहुत बहुत शुक्रिया यह बताने का।
  • Aabid Khan, Javed Ali kayamkhani last me hi Muslim huve he rajputo se, or aaj bhi shadi rajputo ki tarah hoti h, tablig jamat se bahut kuch badla h.

Sirajuddin Zainul Khan हर दौर में धार्मिक विवाद से लोग अपनी पहचान बनाके सत्ता का लाभ उठाते है सौ परसेंट सहमत और उम्मत को बाट कर फिरका ग्रुप बना कर मजा करते है यही लोग, उम्मत इनको अपना इमाम रहनुमा मान लेती है और एक दूसरे को नफरत से देखती है.

Tur Khan इनका मस्जिद जाना इंटरनेशनल लेवल पर हुई छी छी को साफ करने की एक असफल कोशिश मात्र है लेकिन मोलाना इलियासी ने अंजाने में ही सही लेकिन इनको राष्ट्रपिता बोलकर और ज्यादा छी छी करदी

राणा शावेज यूसुफ हम मुस्लिम राजपूत ओर 22 साल की उम्र मेरी भी हो गई है लेकिन मेने आजतक ऐसा कोई मुस्लिम राजपूत नही देखा जो मुसलमान होकर हिन्दू रीति रिवाज फॉलो करता हो।

  • Abdul Haq Ibn-Alam, राणा शावेज यूसुफ मेरे गांव के अक्सर राजपूत वलीमा नही करते , मढ़ा करते है जोकि तबलीग जमात की बदौलत वलीमा करना सुरु किया है ।
  • Hasan Rajput, Abdul Haq Ibn-Alam मंढा तो हमारे यहां सक्के फकीर कसाई जुलाहे धोबी भटियारे नाई बढई तेली आदि इत्यादि करते हैं और कसाई गद्दी टेलियन में गांठ भी होती है हर छेत्र का अपना रीति रिवाज है इसका देश से कोई लेना देना नहीं है चाहे हिंद हो सिंध अरब इराक ईरान मिस्र सूडान इथोपिया तुर्की शाम रूसिया स्पेन फ्रांस जर्मनी यमन ओमान अफ़गान लीबिया उजबेक किरगिस चाइना जापान माले इंडो बंगला कुछ भी आदि!!
  • Asghar Ali Khan, Abdul Haq Ibn-Alam मढ़ा क्या है ? यह किस समुदाय में होता है.
  • Abdul Haq Ibn-Alam, राणा शावेज यूसुफ शेरपुर मुजफ्फरनगर
  • राणा शावेज यूसुफ, Abdul Haq Ibn-Alam कौनसा गांव है भाई.

Javed Ali कायमखानी मुसलमान 1857 से बहुत पहले ही हो गए थे।पुख्ता ऐतिहासिक प्रमाण हैं।कायमखानी मुसलमान फ़िरोज़ तुगलक के समय से हुए हैं जो चौहान राजपूतों से मुसलमान बने हैं। इनकी बड़ी संख्या झुंझुनूं, चुरू,सीकर,नागौर और राजस्थान के दूसरे अन्य जिलों में भी हैं।मरहूम दादा कायम खान के वंशज भारतीय सेना में बड़ी संख्या में रहे हैं। लगभग 225 वीर सपूत देश की हिफाज़त में शहादत पा चुके हैं। सेना भर्ती में विशेष तौर पर शामिल किए जाते हैं।61 कैवेलरी में राजपूत,मराठा और कायमखानी चुने जाते हैं।शौर्यपूर्ण इतिहास की गवाह कौम है साहब।

  • Hasan Rajput, Javed Ali और इन्होने वहां काफी शहर आबाद किए है तारीख में फतेहपुर शेखावाटी क्षेत्र झुंझुनूं वगेरह जैसे मेव खांजादो ने फिरोजपुर झिरका नूह आदि !!

Majid Ali Khan बीबीसी की रिपोर्ट बिला वजह की बातों पर लिखी गई है, तबलीगी जमात की जानकारी भी नहीं है फैसल साहब को, अधूरी जानकारी दी गई है

  • Mohammed Seemab Zaman आप ने भी तो अपने article मे तबलीगी जमात की बात नही लिखी। या हम ने जो मेवात की बात लिखी वह आप ने नही लिखी। बीबीसी के रिपोर्ट “एक तब्क़ा” के वजह कर ही यह पोस्ट हम ने लिखा, वरना नही लिखते।
  • Mohammed Seemab Zaman तबलीगी जमात से इस का ताल्लुक़ कैसे नही है। तबलीग़ के वजह कर ही यह मेवाती लोग जो इस्लाम के दाईं बने वह आजादी के बाद उजडी मस्जिदों को हरियाणा, पंजाब मे आबाद किया। हम पोस्ट मे सब बात नही लिख सकते हैं क्योकि बडा हो जाता है।
  • Majid Ali Khan, Mohammed Seemab Zaman तबलीगी जमात का इनसे कोई लेना देना भी नहीं है और इस विषय से भी, लोग अब किसी के मिलने मिलाने में शिद्दत से काम ले रहे हैं और अब वक्त जिद्दत का है.

ख़ुर्शीद खाँ रतनगढ़ जनाब, Mohammed Seemab Zaman आदाब के साथ कहना चाहता हु ये लेख में क़ायमखानीयो के बारे में जानकारी सही नही है – “इस हरियाणा के बहुत से राजपूत 1857 के बाद मुस्लिम हुऐ थे अपने नाम मे खॉन या कायमखानी लिखते हैं, यह राजिस्थान मे बहुत हैं और अपने पूराने रसम-व-रेवाज को मानते हैं।” माजरत के साथ बताना चाहता हु की सही इतिहास ये है -“राजा मोटे राय चौहान (ददरेवा, चुरू, राजस्थान) राजपूत के घराने में जन्में राज कुंवर राणा कर्मचंद ने 1357 के आसपास इस्लाम कुबूल करने से पहले चार साल तक उसका गहरा मुताला किया ।इनका नाम कायमुद्दीन रखा गया, बाद में आप कायम खाँ नाम से मशहूर हुए। फिर उनके दो सगे भाई जैनुद्दीन खान व जुबेरुद्दीन खान भी ईमान लाये । इन तीनो भाइयों की आल कायमखानी कहलाई।”

Lalit Mohan बहुत जानकारी भरी पोस्ट है। सिमब जमान साहब!

Aftab Ali, Mohammed Seemab Zaman सर हम भी मेवात से ही हैं, मौलाना इलियासी को मेवात में कोई जानता ही नहीं है। और जो जानते है उन्हें पता है कि ये संघी टाइप आदमी है।बाकी रही मेवात की बात तो मेवात में गुमराही तो है ये आप कह सकते हैं। लोग हिंदू रीति रिवाज को अभी भी फॉलो करते हैं जैसे कि गौत्र पाल, खुद को कृष्ण का वंशज कहना, वगैरा वगैरा। और एक चीज, जिसको मैं गुमराहि नहीं जाहिलीयत कहूंगा, शादियों में दहेज एक दूसरे से बढ़ चढ़ कर देना।वैसे अब तबलीगी जमात की वजह से काफी हद तक सुधार हो गया है, सिर्फ दहेज को छोड़कर।

arvez Alam Khan सर हम कायमखानी है ददरेवा चूरू के नवाब कायम सिंह के वंसज लेकिन क़ायम सिंह जी ने फिरोजशाह के समय ही इस्लाम को अपना लिया था ।दूसरी बात, आर्मी में कायमखानी कॉम की अलग से भर्ती होती थी 2014 से पहले लेकिन bjp ने इसको बंद करवा दिया. केवलरी एक ऐसी यूनिट है जिसमे आज भी राजपूत, कायमखानी, मराठा के अलावा किसी और को भर्ती नही करते ।लेकिन मेवात छेत्र में कायमखानीयो की कोई उप जाती नही है ये सिर्फ आर्मी में आसानी से भर्ती हो सके इसके लिये अपने आगे कायमखानी लगाने लग गये है