Post of 18 December 2023
रूमी का नाम मोहम्मद और लक़्ब जलालुद्दीन है, पैदाईश 604 हिजरी मे बल्ख़ में हुई, 6 साल की उम्र में वालिद के साथ हिजरत कर निशापुर आये। इसी उम्र में खाजा फरीदऊद्दीन अत्तार उन के वालिद शेख़ बहाऊद्दीन से मिलने आये और कहा इस जौहर से ग़ाफ़िल न होना।
रूमी के वालिद निशापुर से बग़दाद, हेजाज़ और शाम होते हुए क़ौनिया ( روم रूम) पहुँचे, जो मौजूदा तुर्की का एक शहर है।
रूमी का इंतक़ाल 5 जमादिउस्सानी 672 हिजरी मे मग़रीब के वक्त हुआ।जनाज़ा में बादशाह वक्त मौजूद थे।जनाज़ा में यहूदी, ईसाई तौरात और इंजील पढ़ते और नोहा (نوحہ) करते आगे आगे चल रहे थे।
750 साल बाद भी मज़ार आज तक बोसा गाह खलायक़ है।नीचे एक विडियो है जो उन के मज़ार के अंदर का मंज़र है। सहन में एक वज़ू करने की जगह है।अंदर का रास्ता बहुत पतला है जहॉ उन के मज़ार के सामने लोग खड़े होकर फ़ातिहा पढ़ते हैं।
विडियो के आख़िर में जहॉ लोग खड़े हैं उस के पिछे ऊपर नेमाज़ पढ़ने की जगह है जहॉ हम ने भी नफिल नेमाज़ पढ़ी है। बाहर एक बहुत बड़ी सल्तनत उस्मानी के वक्त की मसजिद है और खुली जगह है।
اِس عصر کو بھی اُس نے دیا ہے کوئ پیغام
کہتے ہیں چراغِِ رہِ احرار ہے رومی (اقبال)