Post of 8th Nov 2023
रसूल अल्लाह ﷺ की एक बीवी का नाम सफिया (صفیہ) था जो हज़रत हारून की औलाद से थीं। उन के वालिद का नाम हैय्य बिन अख्तब (حیؔ بن اخطب) था जो यहूदियों के मशहूर क़बिला “नज़ीर” का सरदार था, और मॉ का नाम बर्रह या ज़रह था जो बनू “क़रियज़ह” के मशहूर सरदार सुमोयल (سموئیل) की बेटी थीं।
सफिया की शादी मशहूर घुड़सवार सलाम बिन मशकुम अल फरज़ी से हुई मगर आपस में नहीं बनी तो तलाक़ हो गया।उस के बाद उन के वालिद हैय्य ने उन की शादी बनी क़रिज़ा के इज़्ज़तदार आदमी कनानह बिन अल हक़ीक़ से कर दिया।
सात हिजरी में खैबर की जंग मे सफिया के शौहर कनानह और सफिया के बाप और भाई मारे गये। माले ग़नीमत जब बांटा गया तो वहीयह कलबी (وحیہ کلبی) नाम के शख़्स के माँगने पर सफिया कनीज़ के तौर पर कलबी को दे दीं गईं।
मगर एक बुज़ुर्ग सहाबी ने रसूल अल्लाह ﷺ से आ कर कहा कि बनू नज़ीर और बनू क़रियज़ह की “रईस ख़ातून” तो सिर्फ़ आप ﷺ के पास रहनी चाहिये।उस पर रसूल अल्लाह ﷺ ने वहीयह कलबी को बुलाया और उन्हें दूसरी कनीज़ दे दिया और सफिया को आज़ाद फ़रमा दिया।सफिया ने इस्लाम क़बूल किया और रसूल अल्लाह ने उन्हें निकाह में ले लिया और वलीमा हुआ।इस निकाह ने यहूदियों के दिल इस्लाम से जोड़ दिये।हज़रत सफिया 60 साल की उम्र मे रमज़ान के महीना 50 हिजरी में वफ़ात पाईं।
इस निकाह की वजह कर यहूदी फिर इस्लाम के खिलाफ नहीं खड़े हुए क्योंकि उस वक्त के अरबी रेवायत (संस्कृति) के मुताबिक़ जिस शख़्स से किसी क़बिले की बेटी की शादी की जाती थी वह आदमी सिर्फ़ लड़की के ख़ानदान का ही नहीं बल्कि पूरे क़बिला का दामाद समझा जाता था और दामाद से लड़ना अच्छा नहीं समझा जाता था।
हज़रत सफिया यहूदियों और अपने रिश्तेदारों को माली मद्द, सदक़ह ख़ैरात देतीं थी।किसी ने यह चूग़ली और शिकायत हज़रत उमर से कर दी केह वह शनिवार के दिन का बहुत एहतराम करती हैं क्योंकि यह पहले यहूदी थी और अपने लोगों की आर्थिक मद्द करती है।
हज़रत उमर ने जब यह बात सफिया से पूछा तो उन्होंने यह जवाब दिया कि वह इस्लाम क़बूल करने के बाद जुमा के दिन का एहतराम करती हैं और जहॉ तक यहूदियों की इज़्ज़त और माली मद्द का सवाल है तो मैं ऐसा रसूल अल्लाह ﷺ के एजाज़त से करतीं हूँ क्योंकि वह मेरे रिश्तेदार हैं।
#नोट: यह पोस्ट हम ने मोहम्मद बदिउज़्ज़मॉ साहेब की किताब “मुसलमान औरत क़ुरआन की रौशनी” से हज़रत सफिया पर लिखे लेख को छोटा कर लिखा है।