आज Balraj Kataria साहेब अपने एक पोसट पर लिखते हैं “औरंगज़ेब के शासन के आख़िर में, या उसकी मृत्यु के बाद धर्मांतरण काफ़ी हुआ था, मुग़ल काल में इससे पहले इतने बड़े पैमाने पर धर्मांतरण नहीं हुआ था। औरंगज़ेब के शासन काल में एक मुस्लिम विद्वान हुए थे, जिनका नाम शाह वलीउल्लाह है, उन्होंने क़ुरआन शरीफ़ की महीन व्याख्या किया था। नॉर्थ में इनका बड़ा नाम था, धर्म से पीड़ित किसान और कमजोर जनता के झुंड इनके पास इंसाफ़ की गुहार लेकर आते थे, और इनकी सत्संग से अपनी फ़रियाद भूलकर मुस्लिम बनकर वापस लौटते थे। शाह वलीउल्लाह का इतिहास कोई खोजकर सोशल मीडिया पर डाले”

हम ने पढा है, शाह वलीउल्लाह देहलवी बहुत बडे आलिमे दीन थे वह कई बार और कई साल मक्का मे भी गुज़ारा। वह सब एक अलग कहानी है कि कैसे फिकह हंफिया को हिनदुसतान के लिये उनहोने बेहतर समझा। इन का सब से बडा कारनामा है कि इन्होने क़ुरान का तरजुमा और तफ़सीर पहली बार गैर अरबी जबान मे लिखा और वह था “फारसी” ज़बान। उस पर उन को काफ़िर तक का फतवा दिया गया। मगर आम लोग भी कुरान समझने लगे और लिख कर नुस्ख़ा बाटने लगे। भारत मे मौलवी लोग इसलाम को ब्राह्मण की तरह अपनी जागीर समझते थे वह ख़त्म हुआ इस तरजुमा से।

बाद मे फारसी से उर्दू मे भी तरजुमा हुआ। आज तो सऊदी अरब ने 11 जबान मे तरजुमा कर के छाप दिय़ा है।मेरे वालिद बदिउजजमा साहेब ने इकबाल के फारसी शेर को उस तरजुमा से भी समझा और मज़मून मे लिखा।

जमाँ साहेब ने अपनी एक किताब मे लिखा है, शाह वलीउल्लाह की पैदाईश 1114 H (1703 AD) मे दिल्ली मे हुई। उन की मशहुर किताब “हुजतुल बालग़ा” है। गरचे वह मुतकलमीन (متکلمین) के ज़मरे मे नही आते हैं लेकिन उन की किताब दर हक़ीक़त “इल्म कलाम” की रूहे-रवॉ है जिस मे उन्होंने शरीयत के हक़ायक व इसरार ब्यान किये हैं।

“शाह साहेब लिखते हैं, जिस तरह से मोहम्मद सल्लाह एलैहेवसल्लम को कुरान का मोएज्ज़ा अता हुआ था जिस का जवाब अरब व अजम से न हो सका, उसी तरह से मोहम्मद सल्लाह एलैहेवसल्लम को जो शरीयत अता हुई थी वह भी मोएज्ज़ा थी।क्योकि ऐसी शरीयत का वज़ा करना जो हर फर्द पर हर लेहाज़ से कामिल हो इंसानी ताकत से बाहर है”

जमाँ साहेब लिखते हैं इकबाल इस “इल्म कलाम” को इस्लाम के बुनयादी अकायद के लिये मुज़र ख़्याल करते थे, इकबाल अपने नज़म तौहिद मे कहते हैं:

“ज़िन्दा कुवत थी जहाँ मे यही तौहिद कभी
आज क्या है? फक्त एक मसलै इल्म कलाम”