इक़बाल के आब-व-अज्दाद कश्मीरी ब्राह्मण थे जिन का गोत्र सपरू था। 17वी सदी के दरम्यान एक सैयद द्रवेश के हाथो यह खानदान ने इस्लाम कबूल किया। पहले शक्स जिस ने इस्लाम कबूल किया उन का नाम सालेह रखा गया, जो अपनी सूफ़ी खस्लत की वजह कर बाबा सालेह के नाम से मशहूर हुऐ।
सैयद साहेब ने सालेह की सूफ़ी ख़स्लत देख कर अपनी बेटी की शादी सालेह से कर दी।इक़बाल ने अपने इस ख़ानदानी पसेमंज़र की वजह कर अपने को अपने उर्दु कलाम मे तीन जगह “काफिरे हिन्दी” कहा है।
“मै असल का खास सोमनाती
आबा मेरे लाती व मनाती
तू सैयद हाशमी की औलाद
मेरे कफे ख़ाक ब्रह्मण ज़ाद”
इक़बाल का यह खानदान कशमीर के तहसील कोलगाम के रहने वाले थे।बाबा सालेह से ले कर इक़बाल तक छ: (6) पुश्त गुज़र चूकी थीं। इस खानदान के एक बुज़ुर्ग ने कई बार पैदल हज किया था और वह कशमीर के मशहूर मशाएख मे थे।राजा के जुल्म से इक़बाल के दादा कशमीर छोड कर स्यालकोट हिजरत कर गये।
इक़बाल के दादा शेख मोहम्मद रफ़ीक की शादी स्यालकोट के कश्मीरी लडकी से हुई जो बहुत खूबसूरत थी। ख़ूबसूरती की वजह कर उन को “गजरी” कहते थे।उन को दस लडके हुए जो सब एक के बाद एक वफात पा गये।इक़बाल के वालिद शेख नूर मोहम्मद 11वी औलाद थे।इन को मोक़ामी टोटका के मोताबिक नाक छेद कर चॉदी की नथ पहना दी गई ताकि यह बच जायें। उन को लोग “नथ्थू” कह कर पुकारते थे।
इक़बाल के वालिद की शादी इमाम बीबी से हुई जिन्हें प्यार से लोग “बेजी” नाम से पुकारते थे। बेजी को दो लडके और तीन लड़कियॉ हुईं।इक़बाल छोटे बेटा थे। इक़बाल के मॉ का इंतक़ाल 1914 और वालिद का 1930 मे स्यालकोट मे हुआ।
इक़बाल के वालिद नूर मोहम्मद ने इक़बाल के पैदाईश से चंद रोज़ क़ब्ल एक ख्वाब देखा के “एक ख़ुशनुमा परिंदा जमीन के सतह से कुछ ऊँचाई पर उड़ रहा था और बहुत लोग उस को पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं मगर वह गैर मामूली परिंदा एक ब एक मेरे आग़ोश मे आ गिरा। मै बहुत खुश हुआ” चंद रोज़ बाद यह परिंदा पैदा हुआ और उनकी मॉ ने परिंदा का नाम शेख मोहम्मद इक़बाल रखा।
जब इक़बाल पढ़ाई के लिए तीन साल इंगलैण्ड और जर्मनी गये तो उन की मॉ रात मे उठ उठ कर बेटे की बखैरियत वतन वापसी की दुआएँ मॉगा करती थी। इक़बाल ने एक तवील नज़म अपने मॉ की याद मे लिखी है,
“जब तेरे दामन मे पलती थी वह जाने नतवॉ
बात से अच्छी तरह महरम न थी जिस की ज़बॉ”
#नोट: आज Javed Hasan साहेब की खास फ़रमाइश थी कि हम मोहम्मद बदीउज़्ज़मॉ साहेब का हवाला दे कर इक़बाल पर एक पोस्ट करें। ज़मॉ साहेब की किताब “इक़बाल शायर क़ोरान” के दो मज़मून को हम ने पढ कर बहुत छोटा कर के यह लिखा है।
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Some Comments on the Post
Misbah Siddiki جزاک الله خَيْرًا كَثِيْرًا बहुत शानदार।आपकी तरफ़ से आज अल्लामा इक़बाल पर ऐसी ही पोस्ट की पूरी उम्मीद थी।
- Mohammed Seemab Zamanशुक्रिया जनाब। आज सुबह मे मेसिंजर पर जावेद साहेब का हुक्म था तो बजा लाना लाज़मी था। बस एक किताब खोला और उस मे इकबाल की सवानेह उम्री पर मज़मून खुला। उसी को पढ कर लिख दिया।
Mohammad Ismaeel Misbah
باپ کا علم نہ بیٹے کو اگر ازبر ہو
پھر پسر قابل میراث پدر کیونکر ہو
میں نے آدھا ہی پڑھا تھا کہ دل سے بے اختیار نکلا ۔۔۔ آج فرزند ِ ماہر اقبالیات نے لکھا ہے اللہ پاک آپ کو شاد و آباد رکھے دارین کی آسودگی عطاء فرمائے آمین
- Mohammed Seemab Zaman بھت بھت شکریہ- دعا میں یاد رکھے گا-
Sandy G माशा अल्लाह , बहुत बेहतरीन !! आप के लेखन की बदौलत आज की नस्ल को जानकारी से लबरेज़ ऐसे पोस्ट पढ़ने नसीब हो रहें हैं !
- Mohammed Seemab Zaman इक़बाल की मॉ पंजाबी थी। पंजाबी के बहुत से लवज को वह बोलते थे और कहते थे मॉ की गोदी मे यही सिखा था। जैसे कोटी और बंडी को वह मॉ के सामने बंडी बोलते थे।
- Sandy G ये नई जानकारी है मेरे लिए !! एक बार किसी मेहमान ने बाबा नानक के बारे में विचार सांझा करने को मुतालबा किया , तो जैसे थे वैसे ही मसहरी से उठे , गुसल किया और तैयार होकर उनके सामने आ बैठे , कहते ; “हां अब बात करें बाबा नानक के बारे में ” मैं उस लिखत का एहसास , शब्दों का लज्जत मासा भर भी नही बियां कर पाऊंगा !! पर पढ़ते हुए आंखे नम हो गई थीं !!
Salim Qidwai सर आपने जो बात लिखी इक़बाल साहब के बारे में ये मैं कभी सुना भी नही था…जज़ाक़ अल्लाह
- Mohammed Seemab Zaman Salim Qidwai साहेब, आप इस को कही भी कोट और बोल सकते हैं। यह माहिरे इकबाल के किताब से है। इस मे बहुत सी बात हम ने नही लिखी है, जो ज़रूरी समझा वह लिख दिया।
Kuldeep Singh सर आपका हर लेख अपने आप में इतिहास समेटे हुए रहता है
Muntazim Ahmad Amrohvi बेहतरीन जानकारी दी है सर आपने, इसके लिए आपका शुक्रिया
Kamil Khan सर आज आप की वजह से अल्लामा इक़बाल के बारे में और उनके खानदान के बारे में बहुत कुछ समझा जाना
Mohd Kamran अल्लामा इक़बाल पर अब तक की सबसे अच्छी जानकारी, अल्लाह आपके वालिद साहब की मग़फ़िरत फरमाए जन्नत में आला मुक़ाम अता फरमाए- अमीन
Azad Hashmi बहुत खूब सर…उम्मत ऐ मुस्लिमा के लिए इक़बाल एक तोहफा थे जो 19वी सदी की सोई हुई कौम को जगाने के लिए भेजे गए थे।
Javed Hasan बहुत बहुत शुक्रिया सरअल्लाह आपको तवील उम्र और अच्छी सेहत दे
Syed Faizan Siddiqui बोहोत शुक्रिया इस बेहद इल्म वाली पोस्ट के लिए सर