मोहम्मद बदिउज़्ज़मॉ साहेब ने अपनी किताब “इक़बाल की जोग़राफियाई और शख़्सियतों से मनसूब इस्तलाहात” मे लिखा है कि ग़ज़नी सल्तनत की बुनियाद अल्पतगिन ने डाली थी जो सामानी (سامانی) सल्तनत जिस की राजधानी बोखारा (उज़बेकिस्तान) था के हाकिम अबदूल मलिक बिन नूह का तुर्की गोलाम था। अल्पतगिन ने उस सामानी सल्तनत से बग़ावत कर के ग़ज़नी और क़ंधार पर अपनी ख़ुद मोखतसर हकूमत क़ायम कर ली।उस का इंतक़ाल 943 ईस्वी मे हुआ।
अमीर सुबुक्तिगिन के इंतक़ाल के बाद 998 ईस्वी मे महमूद ग़ज़नवी तख़्त पर बैठा।महमूद ग़ज़नवी का जन्म अफ़ग़ानिस्तान के ग़ज़ना नगर में हुआ था। आप के वालिद का नाम सुबुक्तिगिन था। महमूद ग़ज़नवी पहला आज़ाद हुक़्मरां था जिसे ‘सुल्तान’ का लक़ब मिला।उस ने सारी ज़िन्दगी जंग मे गुज़ारी और बहुत सा एलाक़ा जिता और हिन्दुस्तान पर 17 बार हमला किया जिस मे 1025 ईस्वी मे उस ने सोमनात मन्दिर को गिरा दिया। महमूद ग़ज़नवी ने मग़रिबी और शिमाल-मग़रिबी हिंद पर भी हुक़ूमत की है। उस का इंतक़ाल 63 साल की उम्र मे 1030 ईस्वी मे हुआ।
“क्या नहीं और ग़ज़नवी कारगह-ए-हयात में
बैठे हैं कब से मुंतज़िर अहल-ए-हरम के सोमनात”
यह शेर इक़बाल के कलाम “बाले जिबरिल” की नज़म “ज़ोक व शोक” के दूसरे बंद का है। ज़मॉ साहेब अपनी किताब मे लिखते हैं इस शेर मे “ग़ज़नवी” से मुराद बुतशिकन है और इस को मुनासबत से शेर मे “अहले हरम के सोमनात” की तरकीब लाई गई है जिस से मुराद दुनिया के सनम खानों के बुत है।
“एक ही सफ़ में खड़े हो गए महमूद-ओ-अयाज़
न कोई बंदा रहा और न कोई बंदा-नवाज़”
यह शेर इक़बाल के “शिकवा” के 11वॉ बंद का बहुत मशहूर शेर है।ज़मॉ साहेब ने अपनी किताब मे लिखा है, महमूद से मुराद सुल्तान महमूद ग़ज़नवी हैं और अयाज़ से मुराद उन का ख़ादिम जिस के खमशुदा (خمشدہ) बालों पर सुल्तान आशिक़ थे। अजमी ज़बान मे यह दोनो इस्तलाहें मोहब्बत का तर्जुमान बन गई हैं।
ज़मॉ साहेब लिखते हैं “महमूद” की इस्तलाह से मुराद बादशाह, उमराए और सलातिन हैं जिन्हें दूसरे मिसरे मे “बंदा नवाज़” कहा गया है, और “अयाज़” से मुराद गरीब, अदना और कमतर दर्जे के लोग हैं जिन्हें “बंदा” कहा गया है।
01/05/2020 at 6:03 PM
सुल्तान महमूद ग़ज़नी का ज़िक्र मोहम्मद क़ासिम फिरिश्ता (मोहम्मद क़ासिम हिंदु शाह फिरिश्ता) ने भी अपनी तारीख़ में किया है .. फिरिश्ता ने सुल्तान महमूद के वालिद नासिरउद्दीन सुबकतगीन के बारे में लिखा है कि एक बार जब सुबकतगीन जंगल में शिकार के लिए गया तो उसे एक हिरणी अपने बच्चे के साथ जंगल में खेलती कूदती दिखी, सुबकतगीन ने उस बच्चे को पकड़ लिया और अपने साथ ले कर आ रहा था कि उसकी नज़र उस हिरणी पर पड़ी जो अपने बच्चे के लिए परेशान हो रही थी, सुबकतगीन के दिल में रहम आया और उस ने इस बच्चे को छोड़ दिया..सुबकतगीन ने लौटते हुए कई बार मुड़ मुड़ कर देखा और हिरणी को भी उसे मुड़ मुड़ कर देखता हुआ पाया जैसे एहसान पर शुक्र गुज़ार हो .. उसी रात सुबकतगीन ने रसूल अल्लाह सल्ल अल्लाह ओ अलैहे वसल्लम की ज़ियारत की ख़्वाब में, आप फ़ार्मा रहे थे कि नासिरउद्दीन तू ने जिस तरह एक बे ज़ुबान जानवर पर रहम किया है उसे अल्लाह ने पसंद फ़रमाया और ख़ुश हो कर तुझे हुकूमत और सल्तनत अता की जाती है, जब तुझे ख़ल्क़ ए ख़ुदा पर हाकिम बनाया जाए तो उनके साथ रहम का मुआमला रखे…..
जूज़जानी ने अपनी किताब मिंहाज उस सिराज में लिखा है कि सुल्तान महमूद की क़िस्मत का सितारा और नबी ए करीम सल्ल अल्लाह ओ अलैह ए वस्सल्लम के नसीब ए मुबारक का सितारा एक ही था, उसी का सदक़ा है कि सुल्तान बुत्त शिकन हुआ …उस के पैदा होने से कुछ देर क़बल उसके बाप ने ख़्वाब देखा कि घर के आतिशदान के अंदर से एक दरख़्त निकला और इतना बड़ा हुआ कि सारी दुनिया उसके साये में आ गई… उसी वक़्त उसे महमूद के पैदा होने की ख़ुश ख़बरी सुनाई गई …
फिरिश्ता ने लिखा है कि महमूद शकल ओ सूरत का बहुत अच्छा नहीं था, एक बार आइना देख कर रंजीदा हुआ और वहाँ खड़े अपने वज़ीर से बोला कि बादशाहों की सूरत देख कर इंसान की आँखों में रौशनी आती है मगर मेरी शक्ल देख कर मेरी रियाया को रंज पहुँचता होगा .. उस के वज़ीर ने कहा कि आपकी सूरत तो कम ही लोग देखते है अलबत्ता आपकी सीरत से हर आदमी का वास्ता पड़ता है अपनी सीरत अच्छी रखिए तो हर दिल अज़ीज़ी मिलेगी .. उस दिन से महमूद को अपने अंदर हर अच्छाई उतारने का जैसे धुन सवार हो गया …
महमूद की पहुँच और शोहरत, तुर्की, ईरान और बग़दाद तक हुई और ख़लीफ़ा ने इन’आमात भी अता किया …
सुल्तान की फतूहात से तारीख़ के सफ़हात भरे पड़े हैं …फ़िरदौसी ने भी अपने शाहनामा में सुल्तान का ज़िक्र किया है … और बेशक हमारे शायर ए मशरिक़ अल्लामा इक़बाल ने भी अश’आर कहे हैं..
01/05/2020 at 7:38 PM
जमान साहब इस कमेन्ट को भी पोस्ट में डाल दीजिए।
03/05/2020 at 4:34 PM
bahut bahut shukria