रशीद ख़ालीदी ने अपनी किताब मे लिखा है कि उन के चचेरे पर-दादा यूसुफ ख़ालीदी जब 1860 के देहाई (decade) मे माल्टा, इसतांबूल, विएना से लौटे तो अंग्रेज़ी, फ़्रेंच, जर्मन जबान सिख कर लौटे। वह इसतांबूल से डाक्टर की पढ़ाई पढ़ी।उसी वक्त यूरोप और विएना (औस्ट्रिया) मे उन्होने ने Christian missionaries मे यहूदियो के खेलाफ फैलती महक महसूस किया। जब वह 1860s मे फलसतीन लौटे तो उन को यहूदियो से हमदर्दी हो गई।

1897 से जर्मनी से यहूदी फलस्तीन मे आकर बसने लगे फिर यूसुफ ख़ालदी को डर होने लगा कि यह लोग कही पूरे मिडिल ईस्ट को यहूदी कोलोनाईज़ न कर लें।

WWI के दौरान ही यूरोप से यहूदी फलस्तीन आने लगे और बाजार को कब्जा कर लिया और 1917 मे सलतन्ते उसमानिया के बाद पूरे यूरोप से आकर बसने लगे और बहुत सारे (40 लाख) बीस साल मे अमेरिका मे जा कर बस गये।

इधर 1920-1938 तक सऊदी अरब का सब से अच्छा दोस्त सोवियत यूनियन था।रूस पहला देश था जिस ने शाह सलमान के पिता शाह अबदुल अज़ीज अल सऊद के शासन को 1926 मे माना था जब लंदन अब्दुल अज़ीज़ को शक के नजर से देखता था।

रूस के करीम खाकिमोख जो बोल्शेविक रिवोलूशन के बाद 1924 से रेयाद मे राजदूत थे उनहोने दोस्ती की ऐसी गाँठ बाँधी के उन की डाक्टर बीवी रूस से दवा लाकर मक्का मे हाजी लोगो का ऐलाज करती थी। बादशाह के साथ करीम ऊमरा करते थे।रूस से केरासन तेल आता था तो बादशाह के महल और मक्का-मदीना मे चिराग जलता था।

मगर स्टैलिन के कम्यूनिसट शासन के मज़बूती, मुसलमानो को कमज़ोर और बरबाद क़ौम समझ कर जनवरी 1938 मे करीम को फॉसी दे दिया और फिर सऊदी अरब ने रूस की एम्बैसी जद्दाह मे बंद कर दिया। फिर 54 साल बाद अफगानिस्तान लडाई से 1992 मे सोवियत यूनियन के टूटने के बाद रेयाद मे रूस का दूतावास खुला।

तीन महीना बाद एप्रिल 1938 मे अमेरिका ने “दहरान” मे दुनिया का सब से बडा तेल का ज़ख़ीरा खोजा और फिर शाह अब्दुल अज़ीज़ ने अमेरिकी राष्ट्रपति फ़्रैंकलिन रूज़वेल्ट से अक्टूबर 1938 मे जो समझौता किया वह आज तक चल रहा है।

यहूदियो के खेलाफ तो यूरोप मे क्रिस्चन मिशनरीज़ तो पहले से थी ही जिस को WWII (1938-45) मे हिटलर ने क़त्ले आम कर के इंसानियत को शर्मसार कर दिया।