रशीद ख़ालीदी ने अपनी किताब The Hundred Years’ War on Palestine के आखरी चैपटर के आखरी पैराग्राफ़ मे लिखा है कि

“Configuration of global power have been changing, based on their growing energy needs, China and India will have more to say about the Middle East in twenty-first century than they did in the previous one”.

ख़ालीदी साहेब ने जो लिखा है वही बात हम 2015 से लिख रहे हैं कि विश्व मे सुपर पावर का epicentre बदला है, अब एशिया मे अगले सौ साल रहे गा। दूसरे हम लिखते है भारत और चीन 80% तेल विदेश (मुस्लिम दुनिया) से ख़रीदता है और अगले 40 साल उन्ही देशो पर निर्भर रहे गा।मगर मेरे लोग यह नही समझते हैं।

रशीद ख़ालीदी साहेब भारत के बारे मे भ्रमित हैं कि तेल और गैस (energy needs) और भारत मे अल्पसंख्यक वर्गो की demography को संघीय ढाँचे मे जोड़े रखने के लिये सेकूलर-वाद का प्रचलन बनाये रखे गा इस की ही वजह कर फलस्तीन मे ज्यादा दिलचस्पी ले गा।ख़ालीदी साहेब को यह पता नही है कि हकिकतन स्थिती कुछ और है।गत सौ वर्षो से भारत मे संप्रदायिकता की #कोख और #गोद का खेल चल रहा है।

कांग्रेस के ब्राह्मण प्रघानमंत्री नरसिमहा राव दिसंबर 1992 को बाबरी शहादत न रोक कर उसे बम से उड़ने दिया तो मिडिल ईस्ट ने subsidised तेल देना भारत को बंद कर दिया बिहार के तीन बार मुख्य मंत्री रहे डॉ० जगन्नाथ मिश्र जिन को बिहार मे कुछ हिन्दु मौलाना जगन्नाथ कहते थे उन्होंने कहा था मिडिल ईस्ट से हम लोग तेल नही ले गें अब हम लोग अफ्रिका (नाईजेरिया) से तेल लें गें।

कांग्रेसी डॉ० मिश्र जब 1992 मे यह बोलते हैं और 2019 मे समाजवादी नेता मोलायम सिंह संसद मे गुजरात मॉडेल की सरकार को दोबारा चुनाव जीत कर सरकार बनाने का आशीर्वाद देते हैं, तो भारत के नेत्रत्व से आशा रखना बेकार है। सम्प्रदायिकता जब तक रहे गी, भारत का विश्व पटल पर गिरती क्षवी और आर्थिक गिरावट भारत की कहानी का उनवान बनता रहे गा। इस्राईल अनाथ बच्चे की तरह हो जाये गा।

ख़ालीदी साहेब को यह पता नही है कि सौ साल (1923) से संध द्वारा जो भारतीय समाज, बूद्धिजिवी, पत्रकार, लेखक के दिल व दिमाग मे ज़हर घोला गया है वह पिछले आठ साल मे अपनी इंतहा को पहुँच गया है।भारत अब किसी को क्या बचाये गा (?) वह खुद चीन से बच जाये यही बहुत है।